Book Title: Gommatsara Jivkand
Author(s): Nemichandra Siddhant Chakravarti, Jawaharlal Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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२२/गो. मा. जीवकाण्ड
गाथा १६-२०
समीचीन रुचि का अभाव होने से सम्यग्दष्टि भी नहीं है तथा इन दोनों को विषय करने वाली सम्यग्मिथ्यात्वरूप रुचि का प्रभाव होने से सम्यग्मिश्यावृष्टि भी नहीं है। इनके अतिरिक्त अन्य कोई चौथी दृष्टि है नहीं, क्योंकि समीचीन और असमीचीन तथा उभयरूप दृष्टि के आलम्बन भूत वस्तु के अतिरिक्त दूसरी कोई वस्तु पाई नहीं जाती इसलिए सासादनगुणस्थान असत्स्वरूप ही है ?
समाधान-सासादनगुणस्थान का प्रभाव नहीं है, क्योंकि सासादनगुणस्थान में विपरीताभिनिवेश (विपरीत अभिप्राय) रहता है, इसलिए वह असदृष्टि है।
शङ्खा–यदि असदुष्टि है तो वह मिथ्यादृष्टि है, उसको सासादन नहीं कहना चाहिए।
समाधान-यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन और चारित्र का प्रतिबन्ध करने वाली अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से उत्पन्न हुअा विपरीताभिनिवेश सासादन गृगस्थान में पाया जाता है अतः द्वितीयगुणस्थानवी जीव मिथ्या दृष्टि है, किन्तु मिथ्यात्व कमोदय से उत्पन्न हुअा विपरीताभिनिवेश वहां नहीं पाया जाता इसलिए वह मिथ्यादृष्टि नहीं कहा गया परन्तु सासादन सम्यग्दृष्टि कहा गया है।
शङ्का-मिश्यादृष्टि संज्ञा क्यों नहीं दी गई ?
समाधान-मिथ्यादृष्टि संज्ञा नहीं दी गई क्योंकि सासादन को स्वतंत्र कहने से अनन्तानुबन्धी प्रकृतियों की द्विस्वभावता का कथन सिद्ध हो जाता है ।
दर्शनमोहनीय कर्म के उदय, उपशम. क्षय और क्षयोपशम से सासादनरूप परिणाम उत्पन्न नहीं होता, इसलिए सासादन को मिथ्याष्टि, सम्यग्दृष्टि अथवा सम्यग्मिथ्यादष्टि नहीं कहा गया । जिस अनन्तानुबन्धी के उदय से द्वितीयगुणस्थान में जो विपरीताभिनिवेश होता है, वह अनन्तानुबन्धी दर्शनमोहनीय का भेद न होकर चारित्र का प्रावरण होने से चारित्रमोहनीय का भेद है, इसलिए द्वितीयगुणस्थान को मिथ्याष्टि न कहकर सासादनसम्यग्दृष्टि कहा गया है ।
शा-अनन्तानृबन्धी यदि सम्यक्त्व और चारित्र इन गेनों की प्रतिबन्धक है तो उसे उभयरूप (दर्शन-चारित्रमोहनीय) संज्ञा देना न्यायसंगत है ?
समाधान--यह आरोप ठीक नहीं है, क्योंकि यह तो इष्ट ही है, फिर भी परमागम में मुख्य की अपेक्षा इस प्रकार का उपदेश नहीं दिया गया, किन्तु उसे चारित्रमोहनीय कहा गया है ।'
ये चारों ही अनन्तानुबन्धीकपाय सम्यक्त्व और चारित्र के विरोधक हैं, क्योंकि ये सम्यक्त्व और चारित्र इन दोनों को घातने वाली दो प्रकार की शक्ति से संयुक्त होते हैं।
शङ्का—यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान--गुरु के उपदेश से और युक्ति से जाना जाता है कि अनन्तानुबन्धीकायों की शक्ति दो प्रकार की होती है।
१. प्र. पु. १ पृ. १६३-१६५ ।