Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रथम प्रतिपत्ति : जीवामिगम का स्वरूप और प्रकार] [17 मधुर, कटु, तिक्त, आम्ल और कसैला-इन पांच रसों में 5 वर्ण, 2 गन्ध, 8 स्पर्श और 5 संस्थान, ये 20 बोल पाये जाते हैं अतः 204 5 = 100 भेद रसाश्रित हुए / गुरु और लघु स्पर्श में 5 वर्ण, 2 गन्ध, 5 रस और 6 स्पर्श (गुरु और लघु छोड़कर) और पांच संस्थान, ये 23 बोल पाये जाते हैं अतः 234 2 = 46 भेद गुरु-लघुस्पर्शाश्रित हुए। शीत और उष्ण स्पर्श में भी इसी प्रकार 46 भेद पाये जाते हैं / अन्तर यह है कि आठ स्पर्शों में से शीत, उष्ण को छोड़कर छह स्पर्श लेने चाहिए / स्निग्ध, रूक्ष, कोमल तथा कठोर इन में भी पूर्वोक्त छह-छह स्पर्श लेकर 23-23 बोल पाये जाते हैं, अत: 23 4 4 = 92 भेद हुए / 46+46+92 = 184 भेद स्पर्शाश्रित हुए। वृत्त, व्यस्र, चतुरस्र, परिमंडल और आयत इन पांच संस्थानों में 5 वर्ण, 2 गन्ध, 5 रस और 9 स्पर्श ये बीस-बीस बोल पाये जाते हैं अत: 2045=100 भेद संस्थान-प्राश्रित हुए / इस तरह वर्णाश्रित 100, गन्धाश्रित 46, रसाश्रित 100, स्पर्शाश्रित 184 और संस्थानआश्रित 100, ये सब मिलकर 530 विकल्प रूपी अजीव के होते हैं। ___ अरूपी अजीव के धर्मास्तिकाय आदि के स्कंध, देश, प्रदेश प्रादि 10 भेद पूर्व में बताये हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, प्राकाशास्तिकाय और काल-इन चार के द्रव्य. क्षेत्र. काल गुण की अपेक्षा से 20 भेद भी होते हैं। अतः 10+20 मिलाकर 30 अरूपो अजीव के बन जाते हैं। ___ इस प्रकार रूपी अजीव के 530 तथा अरूपी अजीव के 30 भेद मिलाकर 560 भेद अजीवाभिगम के हो जाते हैं। वर्णादि के परिणाम का अवस्थान-काल जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल है। इस प्रकार अजीवाभिगम का निरूपण पूरा हुआ। जीवाभिगम का स्वरूप और प्रकार 6. से किं तं जीवाभिगमे? जीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-संसारसमावण्णग-जीवाभिगमे य असंसारसमावण्णग-जीवाभिगमे य / [6] जीवाभिगम क्या है ? जीवाभिगम दो प्रकार का कहा गया है, जैसे---संसारसमापनक जीवाभिगम और प्रसंसारसमापन्नक जीवाभिगम / 7. से कि तं असंसारसमावण्णग-जीवाभिगमे ? असंसारसमावण्णग-जीवाभिगमे दुविहे पण्णत्ते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org