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चरकसंहिता-भा० टी०।
आयुके नाम । शरीरेन्द्रियसत्त्वात्मसंयोगोधारिजीवितम् ।
नित्यगश्चानुवन्धश्च पर्यायैरायुरुच्यते ॥ ४० ॥' शरीर, इंद्रिये, मन, आत्मा, इनके संयोगको आयु कहते हैं। उसीको धारी, जीवित, नित्यग, और अनुबंध भी कहतेह यह आयुके पर्यायवाचक शब्द हैं ॥४०॥
आयुर्वेदका महत्त्व। तस्यायुषःपुण्यतमोवेदोवेदविदांमतः ।
वक्ष्यतेयन्मनुष्याणांलोकयोरुभयोर्हितः ॥ ४१ ।। वेदके जाननेवालोंने उस आयुके वेदको अर्थात् इसआयुर्वेद (वैद्यक ) शास्त्रको परमोत्तम मानाहै, यह मनुष्योंके लिये इस लोकमें और परलोकमें परमाहतकारी है। सो उसीका यहां वर्णन करतेहैं ॥ ४१॥
वृद्धिदासके कारण व सामान्य और विशेषके लक्षण । सर्वदासर्वभावानांसामान्यंवृद्धिकारणम् । ह्रासहेतुर्विशेषश्चप्रवृत्तिरुभयस्यतु ॥ ४२ ॥ सामान्यमेकत्वकरंविशेषस्तुपृथक्त्वकृत् ।
तुल्यार्थताहिसामान्यविशेषस्तविपर्यायः॥४३॥ द्रव्य गुण काँकी समानता उनकी वृद्धि करनेमें कारण होती है जैसे चिकनें पदार्थके सेवनसे उसीके समान चिकने स्वभाववाली मेदकी वृद्धि होती है । और शोकातुर अवस्थामें शोकयुक्त वात सुननेसे शोकवृद्धि होती है सर्दीके मौसममें उसीके स्वभाववाली शीतल पवन चलनेसे शीतकी वृद्धि होती है। आठ घटॉमें समान गुणवाले दो घट और मिलादेनेसे घटौंकी संख्यामें वृद्धि होती है. वातप्रकृतिवालेको वातकारक समानगुणवाले पदार्थसे वातवृदि होती है । इसी प्रकार द्रव्यादिकांकी असमानता घटानेका कारण है, जैते-मेदसे यसमान गुणवाला सूक्षपदार्य मेदको घटाने (दास) का कारण होता है । शोकातुर चित्तमें आनंददायक वातके आनेसे शोक कम होताहै इस प्रकार द्रव्य गुण काकी समानतासे प्रवृत्तिवृद्धि और असमानतासे प्रतिमासका कारण होती हैं। यहां सामान्यका अर्थ एकत्व करनेवाला जानना । और विशेषका अर्थ अलग २ करनेवाला जानना । तुलमार्थता जैसे मेदम