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चरकसंहिता-भा० टी०। ऋषियोंने भी दीर्घायु होनेकी इच्छा करतेहुए प्रजाके हितके लिये इस आयुव. ईक शास्त्रको भलीभांति ग्रहण किया। फिर इस शास्त्र के ज्ञानरूपी नेत्रद्वारा ऋषि याने सामान्यतासे और आधिकतासे द्रव्योंके गुण व स्वरूप तथा प्रयोग और कर्मको भलीप्रकार जाना । फिर इन सबके सूक्ष्म स्थूल समवायको तथा जिसप्रकार पांच भूतोंसे आरंभ हो शारीरिक व द्रव्योंके सूक्ष्म अशोद्वारा चयापचय कोप शमन होताहै इन सवको जानकर आयुर्वेदोक्त विधिका अनुसरण करतेहुए परमः आनंद और रोगरहित जीवनको प्राप्त किया ॥ २५ ॥ २६ ॥ २७ ॥
पुनर्वसुका छः शिष्योंको आयुर्वेद उपदेश । अथमैत्रीपरःपुण्यमायुर्वेदपुनर्वसुः। शिष्येभ्योदत्तवान्षड्भ्यः सर्वभूतानुकल्पया॥२८॥आग्नवेशश्चभेलश्चजतूकर्णःपराशरः॥ हारीतःक्षारपाणिश्चजगृहुस्तन्मुनेर्वचः ॥ २९ ॥ बुद्धोवशेषस्तत्रासीन्नोपदेशान्तरं मुनेः । तन्त्रप्रणेताप्रथममग्निवेशो यतोऽभवत् ॥३०॥अतोभलादयश्चक्रुःस्वस्वंतन्त्रकृतानिच। श्रावयामासुरानेयसषिसंघसुमेधसः ॥ ३१॥ इसके अनंतर मित्रतापरायण पुनर्वसुजीने संपूर्ण प्राणियोंपर कृपा करके यह पवित्र आयुर्वेद ६ शिष्योंको पढाया और १ अग्निवेश २ भेल ३ जतूकर्ण ४ पराशर
हारीत ६ क्षारपाणी इन छहां शिष्यांने भी मुनिके कहे आयुर्वदको ग्रहण किया। यद्यपि । महर्षि आत्रेय (पुनर्वसु )जीके उपदेशमं कुछ भेद न था वह सवकेलिये एकसाही था परंतु इन छः शिष्यामें आग्निवेश सवमं आधक बुद्धिवाले थे इसलिये प्रथम तंत्र (ग्रंथ) कर्ता अग्निवेश ही हुए फिर भेल आदि पांचोंने भी अपने २ नामसे संहिताएँ बनाकर ऋपियाम विराजमान आत्रेयजीको ( अपने गुरु पुनर्व: सुलो) सुनाई ॥ २८ ॥ २९ ॥ ३० ॥ ३१॥
अमिवेशादि छ. संहिताआम ऋषियोंकी अनुमति । श्रुत्वालत्रणमर्थानामृपयःपुण्यकर्मणाम् । यथावत्सत्रितमितिप्रहृष्टास्तेऽनुमेनिरे ॥ ३२ ॥ सर्वएवाऽस्तुवस्तांश्चसर्वभूतहितपिणः । सर्वभूतेष्वनुक्रोशइत्युच्चेरब्रुवन्समम् ॥ ३३ ॥ तंपुण्यंगुश्रुवुः शब्द दिविदेवर्षयः स्थिताः। सामराःपरमपीणांश्रुत्वामुमुदिरेपरम् ॥ ३४ ॥ अहोसाध्वितिघोपश्चलोकां