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दृढ़प्रहारी का वर्णन
योगशास्त्र प्रथम प्रकाश श्लोक १२ प्राप्त कर लिया था। मगर जो अत्यंत क्रूरकर्मी है, क्या वह भी योग के प्रभाव से सफलता प्राप्त कर सकता है? इस प्रश्न का समाधान निम्नोक्त श्लोक द्वारा प्रस्तुत करते हैं।१२। ब्रह्म-स्त्री भ्रूण-गो-घात-पातकान्नरकातिथेः । दृढप्रहारिप्रभूते र्योगो हस्तावलम्बनम् ॥१२॥ अर्थ :- ब्राह्मण, स्त्री, गर्भहत्या (बालहत्या) और गाय की हत्या के महापाप करने से नरक के अतिथि-समान
दृढ़प्रहारी आदि को योग ही आलंबन था ।।१२।। व्याख्या :- ब्राह्मण, नारी, गर्भस्थ बालक और गाय इन चारों की हत्या लोक में महापाप माना जाता है। यद्यपि | सभी आत्माएँ समान मानने वाले के लिए ब्राह्मण हो या अब्राह्मण, स्त्री हो या पुरुष, गर्भस्थ बालक हो अथवा युवक, गाय हो या अन्य पशु, किसी भी पंचेंद्रिय प्राणी की हत्या का पाप तो प्रायः समान ही होता है। कहा भी है कि-'किसी की भी हिंसा नहीं करनी चाहिए, राजा हो या पानी भरने वाला नौकर।' अभयदानव्रती (अहिंसाव्रती) को किसी भी | जीव की हिंसा नहीं करनी चाहिए। फिर भी लोकव्यवहार में ब्राह्मण, स्त्री, बालक और गाय इन चारों की हत्या करने वाला महापापी माना जाता है। दूसरे लोग अन्य जीवों का वध करने में उतना पाप नहीं मानते, जितना पाप इन चारों के वध में मानते हैं। इसलिए यहाँ पर इन चारों की हत्या को महापातक कहा है। ऐसे महापातक के फल स्वरूप नरकगमन के अधिकारी बने हुए दृढ़प्रहारी आदि को योगबल प्राप्त होने से वे उसी जन्म में मोक्ष के अधिकारी बन जाते हैं। इसी प्रकार दूसरे महापापी भी जिन्होंने जिनवचन को समझा है और उससे योग संपत्ति प्राप्त की है। उन्होंने नरकगमन-योग्य कर्मों का निर्मल करके परमपद-मोक्षसंपत्ति प्राप्त की है। कहा भी है-'कोई व्यक्ति स्वभाव से कर हो| गया हो, अत्यंत विषयासक्त हो गया हो, किंतु अगर उसका चित्त जिनवचन के प्रति भक्ति युक्त हो जाय तो वह भी तीनों लोकों के सुख का भागी बन सकता है। दृढ़प्रहारी का हृदय-परिवर्तन :.. किसी नगर में अत्यंत उद्दण्ड स्वभाव का एक ब्राह्मण रहता था। वह इतना पापबुद्धि था कि जब देखो, तब निर्दोष जनता को हैरान करता था, उन पर जुल्म ढहाता था। राज्य-रक्षक पुरुषों ने उसे नगर से बाहर निकाल दिया। अतः बाजपक्षी जैसे शिकारी के हाथ में चला जाता है, वैसे ही वह चोरपल्ली में पहुँच गया। वहाँ चोरों के सेनापति (अगुआ मुखिया) ने उसके निर्दय-व्यवहार और हिंसक आचरण से प्रभावित होकर तथा उसे अपने काम के लिए योग्य समझकर पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया। एक दिन अकस्मात् किसी जगह मुठभेड़ में चोरों का सेनापति मारा गया। अतः उस क्रूर युवक को उसका पुत्र समझकर तथा पराक्रमी जानकर सेनापति की जगह स्वीकार कर लिया। वह निर्दयता पूर्वक जीव हत्या करने में जरा भी संकोच एवं विलंब नहीं करता था। इस कारण लोगों में वह दृढ़प्रहारी नाम से प्रसिद्ध हो गया। एक दिन लूटपाट करने में साहसी कुछ वीर सुभटों को साथ लेकर वह कुशस्थल नामक गाँव को लूटने गया। उस गांव में देवशर्मा नाम का एक महादरिद्र ब्राह्मण रहता था। उसके बच्चों ने एक दिन फल रहित वृक्ष से फल की आशा रखने के समान अपने पिता के सामने खीर खाने की इच्छा प्रकट की। ब्राह्मण ने सारे गाँव में घूमकर कहीं से चावल मांगा, कहीं से दूध और कहीं से खाँड मांगी। यों खीर की सामग्री इकट्ठी करके घर में खीर बनाने को कहकर स्वयं नदी पर स्नान करने चला गया। इतने में वे ही चोर उसी के घर पर आ धमके। 'दैव भी दुर्बल को ही मारता है, इस न्याय से उन चोरों में से एक चोर तैयार की हुई खीर को देखकर क्षुधातुर प्रेत के समान लपककर खीर की हंडिया उठाकर | ले भागा। अपने प्राण के समान खीर लुट जाने से ब्राह्मणपुत्रों ने अपने पिता से रोते-चिल्लाते हुए सारी शिकायत की'हम तो मुंह बाएँ हुए खीर खाने की इंतजार कर ही रहे थे, इतने में तो जैसे फटी हुई आँख वाले के काजल को वायु हरण कर लेता है, वैसे ही हमारे देखते-देखते एक चोर आकर हमारी खीर उठा ले गया। बच्चों की बात सुनकर क्रोधाग्नि से जलता हुआ ब्राह्मण एकदम अर्गला लेकर यमदूत-सा दौड़ा। अपना सारा साहस और बल बटोर कर राक्षस की तरह अर्गला से वह चोरों पर टूट पड़ा और चोरों को धड़ाधड़ पीटने लगा। अपने साथी चोरों को पिटते देखकर दृढ़प्रहारी उसका सामना करने के लिए दौड़ा। जब वह दौड़ रहा था तब, दैवयोग से रास्ते में उसकी गति को रोकने के लिए एक गाय बीच में आ गयी। मानों वह गाय उसके दुर्गतिपथ को रोकने आयी हो। अधम चोरों के इस अगुआ
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