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अमोघ शक्ति का प्रयोग, लक्ष्मण मूर्च्छित
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ९९
| रावण घबराकर जोर से चिल्लाया- 'अरे ! है कोई यहां ? पकड़ो इसे, मारो इस बदमाश को ।' हनुमान ने तत्काल वहां से छलांग लगायी और थोड़ी ही देर में सारी नगरी में घूम-घूमकर उसे उजाड़ दी ; अनाथ-की-सी बना दी। पैर से | ढोल को तोड़ने की तरह नगरी की कई ईमारतें तोड़ डाली। इस प्रकार क्रीड़ा करते हुए हनुमान गरुड़ के समान उड़कर | श्रीराम के पास पहुंचे। नमस्कार करके हनुमान ने आद्योपांत सारा वृत्तांत सुनाया। राम ने अपने प्रियसेवक का छाती से | गाढ़ आलिंगन किया। फिर सुग्रीव आदि को विजययात्रा के लिए लंका जाने की आज्ञा दी। रावण की रक्षा करने वाले समुद्र पर सेतुबंध (पुल) बांधकर श्रीराम की सेना ने समुद्र पार किया । सुग्रीव आदि के साथ श्रीराम विमान में बैठकर | लंका पहुंचे। वहां हंसद्वीप में अपनी सेना का पड़ाव डाला और लंकानगरी को एक छोटे-से मार्ग के समान सेना ने घेर लिया।
विभीषण ने रावण की राजसभा में पहुंचकर प्रणाम करके रावण से निवेदन किया- 'बड़े भाई ! यद्यपि मैं आपसे छोटा हूं। आपको कुछ कहना मेरे लिये उचित नहीं है; तथापि नगरी में फैली हुई एक बात देखकर मुझे हितैषी के नाते | कुछ कहने को बाध्य होना पड़ा है। आशा है, आप मेरी बात अवश्य मानेंगे। हमारी नगरी में श्रीराम आये हैं, और | वे केवल अपनी सीता वापिस लौटा देने की मांग आप से कर रहे हैं। आप इस पर दीर्घदृष्टि से विचारे और मेरी नम्र राय में तो सीता उन्हें ससम्मान सौंप दे, जिससे धर्महानि न हो, लोक में अपकीर्ति भी न हो ।' रावण ने सुनते ही | रोषपूर्वक कहा - 'अरे विभीषण ! मालूम होता है तूं उससे डर गया है; तभी तो कायर पुरुष की तरह मुझे उपदेश दे रहा है!' तब विभीषण ने कहा- 'बड़े भाई ! राम और लक्ष्मण की बात तो एक ओर रही, उनके केवल एक सैनिक| हनुमान ने क्या नहीं कर दिया ? क्या आपने नहीं देखा-सुना?' रावण बोला- तूं हमारे विपक्षी शत्रु में मिला हुआ दीखता है, तभी ऐसी बहकी-बहकी बातें करता है। तूं नालायक है, निकल जा यहां से।' इस प्रकार अपमानित करके | विभीषण को निकाल दिया । अतः विभीषण श्रीराम के पास पहुंचा। श्रीराम ने उसे लंका का राज्य देने का वचन दिया। क्योंकि 'महापुरुष औचित्य का स्वीकार करने में कभी नहीं हिचकिचाते।' कांस्यताल के साथ कांस्यताल टकराता है, | वैसे ही लंका से बाहर निकलकर श्री राम की और रावण की सेना प्रकट रूप से परस्पर टकराने लगी। विजयलक्ष्मी भी साहूकार और कर्जदार दोनों की लक्ष्मी के समान कभी इधर तो कभी उधर दोनों पक्ष की प्राण होमने वाली सेनाओं | में जाने - आने लगी। बाद में राम की भ्रूसंज्ञा से आज्ञा प्राप्त करके एक के बाद एक हनुमान आदि सुभट उसी तरह | महासमररूपी समुद्र में उसी तरह शत्रुसेना में अवगाहन करने लगे, जैसे समुद्रमंथन के समय देवों ने समुद्र में अवगाहन किया था।
इधर दुर्दान्त हाथियों के समान चारों ओर फैलते हुए राम के पराक्रमी एवं दुर्दमनीय सुभटों ने कई राक्षसों को मार गिराया; कईयों को पकड़कर कैदकर लिया, कितने ही सैनिकों को भगा दिये। यह बुरी खबर सुनकर जलते हुए अंगारे के समान क्रुद्ध होकर कुंभकर्ण और अहंकारी मेघनाद ने युद्धभूमि में प्रवेश किया।
प्रलयकालीन तूफान और आग के समान दोनों सुभट युद्ध में कूद पड़े। राम की सेना के लिए यह असह्य था। | सुग्रीव ने रोषवश एक पर्वत को शिला के समान उठाकर कुंभकर्ण पर फेंका; कुंभकर्ण ने भी अपनी गदा से उसे चूरचूरकर डाला। फिर गदा के प्रहार से सुग्रीव को नीचे पटककर अपनी कांख में दबाया और उसे लेकर कुंभकर्ण लंका | की ओर चला। इसे देखकर मेघ के समान गर्जना करने वाला मेघनाद भी हर्षित हुआ । और तीक्ष्णबाणवर्षा से वानरद्वीप की सेना घायलकर दी। श्रीराम ने आंखें लाल करके कुंभकर्ण को और लक्ष्मण ने मेघनाद को ललकारा - 'ठहरो, ठहरो | अभी तुम्हें मजा चखाते हैं।' सुग्रीव भी तुरंत जोश में आकर वहां कूद पड़ा। 'पारा कब तक मुट्ठी में पकड़े हुए रखा जा सकता है।' अतः कुंभकर्ण वहां से लौटकर राम के साथ भिड़ पड़ा। दूसरी ओर जगत् को क्षुब्ध करने वाला मेघनाद भी फुर्ती से लक्ष्मण के साथ भिड़ गया। पूर्व और पश्चिम के समुद्र के समान राम और कुंभकर्ण परस्पर युद्ध के दांवपेच लगा रहे थे, उधर उत्तरी और दक्षिणी समुद्र के समान रावणपुत्र मेघनाद और लक्ष्मण भी अपने-अपने दांवपेच लगाने | लगे। थोड़ी ही देर में राक्षसों पर काबू करने के लिए राक्षससम श्रीराम ने रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण को तथा लक्ष्मण 1. अन्य कथा में हनुमान को बगल में दबाने का वर्णन है।
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