________________
चंडप्रद्योत को अभयकुमार सुपुर्द किया
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ११४ किसी भी उपाय से अब इसे मार दिया जाय।' ऐसा विचारकर उन्होंने उसके रास्ते के खाने में विषमिश्रित लड्डू दिये
और उसके पास से दूसरा भाता (पाथेय) आदि सभी वस्तुएँ छीन लीं। लोहजंघ चलते-चलते बहुत-सा मार्ग तयकर लेने के बाद एक नदी के किनारे भोजन करने बैठा। परंतु उस समय अपशकुन हुआ जानकर वह बिना खाये ही आगे चल पड़ा। भूखा होने से खाने के लिए फिर वह एक जगह रुका; शकुन ने उसे इस बार भी न खाने का संकेत किया। वह बिना खाये ही सीधा चंडप्रद्योत राजा के पास पहुंचा। और सारी आपबीती सुनायी। चंडप्रद्योत ने अभयकुमार को बुलाकर पूछा कि क्या उपाय करना चाहिए? बुद्धिशाली अभयकुमार ने थैली में रखा हुआ भोजन सूंघकर कहा- 'इसमें अमुक द्रव्य के संयोग से उत्पन्न होने वाला दृष्टिविष सर्प है। अगर इस चमड़े की थैली को खोल दिया जायेगा तो यह अवश्य ही जलकर भस्म हो जायगा।' अभयकुमार के कहे अनुसार सेवक को भेजकर राजा ने वह थैली जंगल में उलटी करवाकर वहीं छोड़ दी। इससे वहां के वृक्ष जलकर भस्म हो गये और वह सर्प भी मर गया। अभयकुमार की बुद्धिकुशलता से प्रसन्न होकर चंडप्रद्योत ने उसे कहा-बंधनमुक्ति के सिवाय कोई भी वरदान मांगो। अभयकुमार ने कहा-'मेरा वरदान अभी आपके पास अमानत रहने दीजिए।'
एक दिन चंडप्रद्योत राजा के नलगिरि हाथी ने, जिस खंभे से बंधा हुआ था, उसे जड़ से उखाड़कर दो महावतों को जमीन पर पटक दिया। फिर मतवाला होकर नगर में स्वच्छंद घुमता हुआ नगरवासियों को हैरान करने लगा। राजा ने अभयकुमार से पूछा-'स्वच्छंद हाथी को कैसे वश में किया जाय?' अभयकुमार ने उपाय बताया कि अगर उदयन राजा संगीत सुनाए तो हाथी वश में हो सकता है।' वासवदत्ता नामकी पुत्री को गांधर्व विद्या पढ़ाने के लिए कैद किये हुए उदयन ने वासवदत्ता के साथ वहां गीत गाया। नलगिरि हाथी संगीत से आकर्षित होकर सुनने के लिए वहां रुका, तभी उसे मजबूत सांकल से बांध दिया। 'राजा ने फिर प्रसन्न होकर अभयकुमार से वरदान मांगने को कहा। उसे भी अभयकुमार ने अनामत के रूप में रखवा दिया।
एक बार अवंति में ऐसी आग लगी, जो बुझाई नहीं जा सकती थी। राजा चंडप्रद्योत ने फिर घबराकर अभयकुमार से आग बुझाने का उपाय पूछा। अभयकुमार ने कहा- 'जहर से जहर मरता है, इसी तरह आग से आग बुझती है। इसलिए आप उस आग के सामने दूसरी आग जलाओ, जिससे वह आग स्वतः बुझ जायेगी।' ऐसा ही किया गया। फलतः वह प्रचंड आग बुझ गयी। अब क्या था, राजा ने अभयकुमार को तीसरा वरदान मांगने को कहा। वह भी उसने | अमानत के रूप में रखवा दिया। ____एक बार उज्जयिनी में महामारी का उपद्रव हुआ। लोग टपाटप मरने लगे। राजा ने महामारी की शांति के लिए |अभयकुमार से उपाय पूछा तो उसने कहा-सभी रानियाँ अलंकारों से सुसज्जित होकर आपके पास अंतःपुर में आवे, जो रानी आपको दृष्टि से जीत ले, तब उसे मुझे बताना। फिर मैं आगे का उपाय बताऊंगा। राजा ने उसी प्रकार किया। दृष्टियुद्ध में और तो सभी रानियाँ हार गयी, किन्तु शिवादेवी ने राजा को जीत लिया। अभयकुमार को बुलाकर सारी हकीकत बतायी। उसने कहा-शिवादेवी रात को स्वयं क्रूरबलि से भूतों की पूजा करे। जो-जो भूत सियार का रूप बनाकर उठे और आवाज करें, उसके मुंह में देवी स्वयं क्रूरबलि डाले। शिवादेवी ने इसी तरह किया, फलतः महामारी का उपद्रव शांत हो गया। इससे खुश होकर राजा ने अभयकुमार को चौथा वरदान दिया। उस समय अभयकुमार ने मांग की-'आप नलगिरि हाथी पर महावत बनकर बैठे हों और मैं शिवादेवी की गोद में बैठा होऊं और इसी स्थिति में ही अग्निभीरु रथ की लकड़ी की बनायी हुई चिता में प्रवेश करूं।' इस वरदान को देने में असमर्थ चंडप्रद्योत राजा ने उदास होकर हाथ जोड़कर श्रेणिकपुत्र अभयकुमार को अपनी नगरी में जाने की आज्ञा दी। अभयकुमार ने भी जाते समय प्रतिज्ञा की-आपने मुझे कपट पूर्वक पकड़वाकर मंगाया है, लेकिन मैं दिन-दहाड़े जोर-जोर से चिल्लाते हुए आपको नगर से ले जाऊंगा। वहां से अभयकुमार राजगृह पहुंचा। और बुद्धिमान अभय ने कुछ समय राजगृही में ही शांति से बिताया।
एक दिन दो रूपवती गणिका-पुत्रियों को लेकर अभयकुमार एक व्यापारी के वेश में अवंति पहुंचा। राजमार्ग के
184