Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 447
________________ धारणा के स्थान योगशास्त्र पंचम प्रकाश श्लोक ७ से ८ ।७४२। नाभि-हृदय-नासाग्रभाल-भ्रू-तालु-दृष्टयः । मुखं कणौ शिरश्चेति, ध्यान-स्थानान्यकीर्तयन् ।।७।। अर्थ :- नाभि, हृदय, नासिका का अग्रभाग, कपाल, भ्रूकुटि, तालु, नेत्र, मुख, कान और मस्तक; ये सब ___ ध्यान करने के लिए धारणा के स्थान बताये हैं ॥७॥ इन्हें ध्यान के निमित्तभूत धारणा के स्थान समझने चाहिए। अब धारणा का फल कहते हैं। १७४३। एषामेकत्र कुत्रापि, स्थाने स्थापयतो मनः । उत्पद्यन्ते स्वसंवित्तेः, बहवः प्रत्ययाः किल ।।८।। अर्थ :- ऊपर कहे हुए स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर अधिक समय तक मन को स्थापित करने से निश्चय ही स्वानुभवज्ञान के अनेक प्रत्यय उत्पन्न होते हैं ॥८॥ प्रत्ययों के संबंध में आगे बतायेंगे। ॥ इस प्रकार परमार्हत् श्रीकुमारपाल राजा की जिज्ञासा से आचार्यश्री हेमचंद्राचार्यसूरीश्वर रचित अध्यात्मोपनिषद् नामक पट्टबद्ध अपरनाम योगशाख का खोपज्ञविवरणसहित षष्ठम प्रकाश संपूर्ण हुआ ।। 425

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