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५. पंचम प्रकाश
प्राणायाम का स्वरूप - ॐ सर्वज्ञ परमात्मा श्री जिनेन्द्र भगवान् को नमस्कार हो। पतंजलि आदि अन्यमत के योगाचार्यों ने योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि; ये आठ अंग मोक्ष के अंग रूप माने हैं; परंतु जैनदर्शनकारों ने प्राणायाम को मुक्ति के वास्तविक साधन रूप ध्यान में स्वीकार नहीं किया है। क्योंकि अभ्यास के बिना वह असमाधि पैदा करता है। कहा भी है कि 'अभिग्रह करने वाला भी श्वासोच्छ्वास रोक नहीं सकता; तो फिर दूसरी चेष्टा करने वाला श्वासोच्छ्वास कैसे रोक सकता है? (हठयोग के अभ्यास के बिना वह नहीं रोक सकता है) अन्यथा तत्काल मृत्यु हो जाना संभव है। सूक्ष्म उच्छ्वास भी शास्त्रविधि के अनुसार यतनापूर्वक जानना चाहिए। फिर भी प्राणायाम की उपयोगिता शरीर की निरोगता और कालज्ञान के लिए है। इस कारण यहां उसका वर्णन किया जाता है।४६३। प्राणायामस्ततः कैश्चिद्, आश्रितो ध्यानसिद्धये । शक्यो नेतरथा कर्तुं, मनः-पवन-निर्जयः ॥१॥ अर्थ :- आसन को सिद्ध करने के बाद ध्यान की सिद्धि के लिए पतंजलि आदि योगाचार्यों ने प्राणायाम का आश्रय
लिया है। मुख और नासिका के अंदर संचार करने वाला वायु 'प्राण' कहलाता है, उसके संचार का
निरोध करना 'प्राणायाम' है। प्राणायाम के बिना मन और पवन जीता नहीं जा सकता।।१।। यहां प्रश्न करते हैं कि 'प्राणायाम से पवन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, परंतु मन पर विजय कैसे हो सकता है? इसका समाधान करते हैं कि।४६४। मनो यत्र मरुत् तत्र, मरुद् यत्र मनस्ततः । अतस्तुल्यक्रियावैतौ, संवीतौ क्षीरनीरवत् ।।२।। अर्थ :- जहां मन है, वहीं पवन है और जहां पवन है, वहां मन है। इस कारण समान क्रिया वाले मन और पवन,
दूध और जल की भांति आपस में मिले हुए हैं ।।२।। दोनों की समान क्रिया समझाते हैं।४६५। एकस्य नाशेऽन्यस्य स्यान्नाशो वृत्तौ च वर्तनम् । ध्वस्तयोरिन्द्रियमतिध्वंसान्मोक्षश्च जायते ॥३॥ अर्थ :- मन और पवन इन दोनों में से किसी एक का नाश होने पर दूसरे का नाश हो जाता है और एक की प्रवृत्ति
होने पर दूसरे की प्रवृत्ति होती है। जब इन दोनों का विनाश होता है, तब इंद्रिय और बुद्धि के व्यापार
का नाश होता है और इंद्रिय और बुद्धि के नाश से मोक्ष होता है ॥३॥ अब प्राणायाम के लक्षण और उसके भेद बताते हैं।४६६। प्राणायामो गतिच्छेदः, श्वासप्रश्वासयोर्मतः । रेचकः पूरकश्चैव, कुम्भकश्चेति स त्रिधा ॥४॥ अर्थ :- बाहर की वायु को ग्रहण करना, श्वास है। उदर के कोष्ठ में रहे हुए वायु को बाहर निकालना, निश्वास
अथवा प्रश्वास कहलाता है तथा इन दोनों की गति को रोकना, प्राणायाम है। वह रेचक, पूरक और
कुंभक के भेद से तीन प्रकार का है ।।४।। अन्य आचार्यों के मत से इसके सात भेद हैं, उसे बताते हैं।४६७। प्रत्याहारस्तथा शांतः, उत्तरश्चाधरस्तथा । एभिर्भेदैश्चतुर्भिस्तु, सप्तधा कीर्त्यते परैः ॥५॥ अर्थ :- पूर्वोक्त तीन के साथ में प्रत्याहार, शांत, उत्तर और अधर यह चार भेद मिलाने से प्राणायाम सात प्रकार
का होता है; ऐसा अन्य आचार्य मानते हैं ।।५।। अब क्रमशः प्रत्येक के लक्षण कहते हैं।४६८। यत् कोष्ठादतियत्नेन, नासाब्रह्म-पुराननैः । बहिः प्रक्षेपणं वायोः, स रेचक इति स्मृतः ॥६।।
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