Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 432
________________ काल ज्ञान के उपाय योगशास्त्र पंचम प्रकाश श्लोक १३२ से १३९ एकादशी तिथि की कल्पना करे। अंगूठे के निचले, मध्य के और ऊपर के पौर में पंचमी, दशमी और पूर्णिमा की कल्पना करनी चाहिए। अनामिका अंगुली के तीनों पौरों में दूज, तीज और चौथ की; मध्यमा के तीनों पौरों में सप्तमी, अष्टमी और नवमी की तथा तर्जनी के तीनों पौरों में द्वादशी, त्रयोदशी और चतुर्दशी की कल्पना करनी चाहिए ।।१३०-१३१।। ।।५९४। वामपाणिं कृष्णपक्षं, तिथीस्तद्वच्च कल्पयेत् । ततश्च निर्जने देशे, बद्धपद्मासनः सुधी ॥१३२॥ ।५९५। प्रसन्नः सितसंव्यानः, कोशीकृत्य करद्वयम् । ततस्तदन्तःशून्यं तु, कृष्णं वर्णं विचिन्तयेत् ॥१३३।। अर्थ :- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा के दिन बाएँ हाथ में दाहिने हाथ के समान कृष्ण पक्ष की तिथियों की कल्पना करे, उसके बाद बुद्धिशाली मनुष्य साधक निर्जन में जाकर पद्मासन लगाकर बैठे और प्रसन्नतापूर्वक उज्ज्वल ध्यान करके, दोनों हाथों को कमल-कोश के आकार में जोड़ ले और हाथ में काले वर्ण के एक बिन्दु का चिंतन करे ॥१३२-१३३।। तथा१५९६। उद्घाटितकराम्भोजस्ततो यत्राङ्गुलीतिथौ । वीक्ष्यते कालबिन्दुः स, काल इत्येव कीर्त्यते ॥१३४॥ अर्थ :- उसके बाद हस्तकमल खोलने पर जिस-जिस अंगुली के अंदर कल्पित अंधेरी या उजली तिथि में काला बिन्दु दिखायी दे, उसी अंधेरी या उजली तिथि के दिन मृत्यु होगी, ऐसा समझ लेना चाहिए।।१३४।। कालनिर्णय के लिए अन्य उपाय भी बताते हैं।५९७। आंतविण्मेदमूत्राणि, भवन्ति युगपद यदि । मासे तत्र तिथौ तत्र, वर्षान्ते मरणं तदा ॥१३५।। अर्थ :- जिस मनुष्य को छींक, विष्ठा, वीर्यपात और पेशाब; ये चारों एक साथ हो जाये, उसकी एक वर्ष के अंत | में उसी मास और उसी तिथि में मृत्यु होगी ।।१३५।। तथा1५९८। रोहिणीं शशभृल्लक्ष्म, महापथमरुन्धतीम् । ध्रुवं च न यदा पश्येद्, वर्षेण स्यात् तदा मृतिः ॥१३६।। अर्थ :- रोहिणी नक्षत्र, चंद्रमा चिह्न, छायापथ-आकाशमार्ग, अरूंधती तारा और ध्रुव यह पांच या इनमें से एक भी दिखायी न दे तो उसकी एक वर्ष में मृत्यु होती है ॥१३६।। इस विषय में टीका में अन्य आचार्य का मत दो श्लोकों द्वारा उद्धृत किया गया है, वह इस प्रकार हैअरुन्धतीं ध्रुवं चैव, विष्णोत्रीणि पदानि च । क्षीणायुषो न पश्यंति, चतुर्थ मातृमण्डलम् । अरुन्धती भवेत् जिह्वा, धूयो नासाग्रमुच्यते । तारा विष्णुपदं प्रोक्तं, धूवौ स्यान्मातृमण्डलम् ॥ जिनकी आयु क्षीण हो चली है, वे अरूंधती, ध्रुव, विष्णुपद और मातृमंडल को नहीं देख सकते। यहां अरुन्धती का अर्थ जिह्वा, ध्रुव का अर्थ नासिका का अग्रभाग, विष्णुपद का अर्थ दूसरे के नेत्र की पुतली देखने पर दिखाई देने वाली अपनी पुतली और मातृमंडल का अर्थ भृकुटी जानना चाहिए। ।५९९। स्वप्ने स्वं भक्ष्यमाणं श्व-गृध्र-काक-निशाचरैः । उह्यमानं खरोष्ट्राधैर्यदा पश्येत् तदा मृतिः।।१३७।। अर्थ :- यदि कोई मनुष्य स्वप्न में कुत्ते, गिद्ध, कौएँ या अन्य निशाचर आदि जीव द्वारा अपने शरीर को भक्षण करते देखे या गधा, ऊंट, सअर, कुत्ते आदि पर सवारी करता देखे या उनके द्वारा अपने को घसीटकर ले जाते देखे तो उसकी एक वर्ष में मृत्यु होगी ।।१३७।। तथा।६००। रश्मिनिर्मुक्तादित्यं, रश्मियुक्तं हविर्भुजम् । यदा पश्येद् विपद्येत, तदैकादशमासतः ॥१३८॥ अर्थ :- यदि कोई पुरुष सूर्य को किरण रहित देखे और अग्नि को किरण-युक्त देखे तो वह ग्यारह मास में मर जाता है ।।१३८।। ।६०१॥ वृक्षाग्रे कुत्रचित् पश्येद्, गन्धर्वनगरं यदि । पश्येत्प्रेतान् पिशाचान् वा, दशमे मासि तन्मृतिः ॥१३९।। अर्थ :- यदि किसी मनुष्य को किसी स्थान पर गंधर्वनगर का प्रतिबिम्ब वृक्ष पर दिखायी दे अथवा प्रेत या पिशाच प्रत्यक्ष रूप में दिखायी दे तो उसकी दसवें महीने में मृत्यु होती है ॥१३९।। 410

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