Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 431
________________ आंख, कान, मस्तक तथा अन्य प्रकार से होने वाला कालज्ञान योगशास्त्र पंचम प्रकाश श्लोक १२३ से १३१ समीप की पंखुड़ी दिखायी न दे तो तीन महीने में, आंख के कोने की पंखुड़ी न दिखायी दे तो दो महीने में और नाक के पास की पंखुड़ी दिखायी नहीं दे तो एक महीने में मृत्यु होती है ।।१२२।। ।५८५। अयमेव क्रमः पद्मे, भानवीये यदा भवेत्। दश-पञ्च-त्रि-द्विदिनैः, क्रमान्मृत्युस्तदा भवेत्।।१२३।। ____ अर्थ :- इसी क्रमानुसार सूर्यसंबंधी कमल की पंखुडियां दिखाई नहीं देने पर क्रमशः दस, पांच, तीन और दो | दिन में मृत्यु होती है ॥१२३।। तथा१५८६। एतान्यपीड्यमानानि, द्वयोरपि हि पद्मयोः । दलानि यदि वीक्षेत मृत्युदिनशतात् तदा ॥१२४।। अर्थ :- यदि आंख को अंगुली से दबाये बिना दोनों कमलों की पंखुड़ियाँ दिखायी न दे तो सो दिनों में मृत्यु होती है ॥१२४॥ अब दो श्लोक द्वारा कान से होने वाला आयुष्यज्ञान कहते हैं।५८७। ध्यात्वा हृद्यष्टपत्राब्जं श्रोत्रे हस्ताग्र-पीड़िते । न श्रूयेताग्निनिर्घोषो, यदि स्वः पञ्चवासरान् ॥१२५।। १५८८। दश वा पञ्चदश वा, विंशति पञ्चविंशतिम् । तदा पञ्च-चतुस्त्रिद्वयेकवर्षे मरणं क्रमात् ॥१२६।। . अर्थ:- हृदय में आठ पंखुड़ी वाले कमल का चिंतन करके दोनों हाथों की तर्जनी अंगुलियों को दोनों कानों में डालने पर यदि अपना अग्नि-निर्घोष (शब्द) पांच दिन तक सुनायी न दे तो पांच वर्ष, दस दिन तक . सुनायी न दे तो चार वर्ष, पंद्रह दिन तक सुनायी न दे तो तीन वर्ष, वीस दिन तक सुनायी न दे तो दो वर्ष और पच्चीस दिन तक नहीं सुनायी दे तो एक वर्ष में मृत्यु होती है।।१२५-१२६।। तथा।५८९। एक-द्वि-त्रि-चतुः-पञ्च-चतुर्विशत्यहःक्षयात् । षडादि षोडशदिनान्यान्तराण्यपि शोधयेत् ॥१२७।। अर्थ :- यदि छह दिन से लेकर सोलह दिन तक अंगुली से दबाने पर भी कान में अग्नि का शब्द न सुनायी दे तो पांच वर्ष के दिनों में से क्रमशः एक, दो, तीन, चार आदि सोलह चौवीसियाँ कम करते हुए मृत्यु होती है। वह इस प्रकार-पांच दिन तक कान में शब्द सुनायी न दे तो पांच वर्ष में मृत्यु होती है, यह बात पहले कह गये हैं। उसके बाद छह दिन तक अग्नि का शब्द सुनायी न दे तो पांच वर्ष में २४ दिन कम करना अर्थात् १८०० दिनों में से २४ दिन कम यानी १७७६ दिनों में मृत्यु होती है। सात दिन तक सुनायी न देने पर १७७६ दिनों में से दो चौवीस अर्थात् ४८ दिन कम करने से १७२८ दिन में मृत्यु होती है। आठवें दिन भी नहीं सुनायी न दे तो पूर्वोक्त में से पांच चौवीस-१२० दिन कम करने से १४४० दिन अर्थात् चार वर्ष में मृत्यु होती है। इसी तरह ग्यारह दिन से सोलह दिन और इक्कीस दिन तक उपर्युक्त चौवीसी कम करके मरणकाल का निश्चय करना चाहिए। अब मस्तक से कालज्ञान का निर्णय बताते हैं1५९०। ब्रह्मद्वारे प्रसर्पन्ती, पञ्चाहं धूममालिकाम् । न चेत् पश्येत् तदा ज्ञेयो, मृत्युः संवत्सरैस्त्रिभिः ।।१२८।। अर्थ :- ब्रह्मरन्ध्र में फैलती हुई (गुरु महाराज के उपदेश से दर्शनीय) धूमरेखा यदि पांच दिन तक दृष्टिगोचर न हो तो तीन वर्ष में मृत्यु होती है ।।१२८॥ . अन्य प्रकार से कालज्ञान छह श्लोकों द्वारा बताते हैं।५९१। प्रतिपद्दिवसे काल-चक्रज्ञानाय शौचवान् । आत्मनो दक्षिणं पाणिं शुक्लपक्षं प्रकल्पयेत् ।।१२९।। अर्थ :- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन पवित्र होकर कालचक्र को जानने के लिए अपने दाहिने हाथ की शुक्लपक्ष के रूप में कल्पना करनी चाहिए ॥१२८|| तथा५९२।अधोमध्योर्ध्वपर्वाणि, कनिष्ठाङ्गुलिगानि तु । क्रमेण प्रतिपत्षष्ठ्येकादशीः कल्पयेत् तिथीः ॥१३०॥ ।५९३।अवशेषाङ्गुली-पर्वाण्यवशेष-तिथीस्तथा । पञ्चमी-दशमी-राकाः, पर्वाण्यङ्गुष्ठगानि तु ॥१३१॥ | अर्थ :- अपनी कनिष्ठा अंगुली के नीचे के पौर में प्रतिपदा, मध्यम पौर में षष्ठी तिथि और ऊपर के पौर में 409

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