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कार्यसिद्धि-असिद्धि - पुत्र-पुत्री-विषयक प्रश्नों के उत्तर
अर्थ :
योगशास्त्र पंचम प्रकाश श्लोक २३१ से २३९ पहले ४४ वें श्लोक में कहे अनुसार यदि वारुणमंडल से वामनाडी पूर्ण बह रही हो तो उस समय प्रारंभ किये गये कार्य अवश्यमेव सफल होते हैं ।। २३० ।। तथा
|| ६९३ | जय - जीवित - लाभादि कार्याणि निखिलान्यपि । निष्फलान्येव जायन्ते पवने दक्षिणास्थिते ॥२३१॥ यदि वारुणमण्डल के उदय में पवन दाहिनी नासिका में चल रहा हो तो विजय, जीवन, लाभ आदि समग्र कार्य निष्फल ही होते हैं ।। २३१ ।। तथा
अर्थ :
| | ६९४ |ज्ञानी बुध्वा निलं सम्यक्, पुष्पं हस्तात् प्रपातयेत् । मृत जीवितविज्ञाने, ततः कुर्वीत निश्चयम्।।२३२|| अर्थ :- जीवन और मृत्यु के विशेष ज्ञान की प्राप्ति के लिए ज्ञानी पुरुष वायु को भली-भांति जानकर अपने हाथ से पुष्प नीचे गिराकर उसका निर्णय करते हैं। उसी निर्णय का तरीका बताते हैं ।। २३२ ।।
| । ६९५ । त्वरितो वरुणे लाभ:, चिरेण तु पुरन्दरे । जायते पवने स्वल्पः, सिद्धोऽप्यग्नौ विनश्यति ॥ २३३ ॥ अर्थ :- प्रश्न के उत्तरदाता के यदि वरुणमंडल का उदय हो तो उसका तत्काल लाभ होता है, पुरंदर ( पृथ्वीमंडल) का उदय होने पर से लाभ होता है, पवनमंडल चलता हो तो साधारण लाभ होता है और अग्निमंडल `चलता हो तो सिद्ध हुआ कार्य भी नष्ट हो जाता है ।। २३३ ।। तथा
अर्थ :
।६९६। आयाति वरुणे यातः, तत्रैवास्ते सुखं क्षितौ । प्रयाति पवनेऽन्यत्र, मृत इत्यनले वदेत् ||२३४|| किसी गांव या देश गये हुए मनुष्य के लिए जिस समय प्रश्न किया जाय, उस समय वरुणमंडल चालू हो तो वह शीघ्र ही लौटकर आने वाला है, पुरंदरमंडल में प्रश्न करे तो वह जहां गया है, वहां सुखी है, पवन मंडल में प्रश्न करे तो वहां से अन्यत्र चला गया है और अग्निमंडल में प्रश्न करे तो कहे कि उसकी मृत्यु हो गयी है ।। २३४ । । तथा
।६९७। दहने युद्धपृच्छायां युद्धं भङ्गश्च दारुणः । मृत्युः सैन्यविनाशो वा, पवने जायते पुनः || २३५ ||
अर्थ :- यदि अग्निमंडल में युद्धविषयक प्रश्न करे तो महाभयंकर युद्ध होगा और पराजय होगी, पवनमण्डल में प्रश्न करे तो जिसके लिए प्रश्न किया गया हो, उसकी मृत्यु होगी और सेना का विनाश होगा । । २३५ । ।
अर्थ :
| ६९८ । महेन्द्रे विजयो युद्धे, वरुणे वाञ्छिताधिकः । रिपुभङ्गेन सन्धिर्वा स्वसिद्धिपरिसूचकः ॥ २३६ ॥ महेन्द्रमंडल अर्थात् पृथ्वीतत्त्व के चलते प्रश्न करे तो युद्ध में विजय होगी, वरुणमंडल में प्रश्न करे तो मनोरथ से अधिक लाभ होता है तथा शत्रु का मानभंग होकर अपनी सिद्धि को सूचित करने वाली संधि होगी ।। २३६ ।। तथा
||६९९ । भौमे वर्षति पर्जन्यो, वरुणे तु मनोमतम् । पवने दुर्दिनाम्भोदौ, वह्नौ वृष्टिः कियत्यपि ॥ २३७॥ अर्थ :- यदि पृथ्वीमंडल में वर्षा - संबंधी प्रश्न किया जाय तो वर्षा होगी, वरुणमंडल में प्रश्न करे तो आशा से अधिक वर्षा होगी, पवनमंडल में प्रश्न करे तो दुर्दिन व बादल होंगे, परंतु वर्षा नहीं होगी और अग्निमंडल में प्रश्न करे तो मामूली वर्षा होगी ।। २३७ ||
||७०० | वरुणे सस्यनिष्पत्तिः, अतिश्लाघ्या पुरन्दरे । मध्यस्था पवने च स्यात्, न स्वलाऽपि हुताशने । । २३८ || अर्थ :- धान्य- उत्पत्ति के विषय में वरुणमंडल में प्रश्न करे तो धान्य की उत्पत्ति होगी, पुरंदरमंडल में प्रश्न करे तो बहुत अधिक धान्योत्पत्ती होगी पवन मंडल में प्रश्न करे तो - मध्यम ढंग की धान्योत्पत्ति होगी; कहीं होगी और कहीं नहीं होगी और अग्निमंडल में प्रश्न करे तो धान्य थोड़ा सा भी उत्पन्न नहीं होगा । । २३८ । । ।७०१ । महेन्द्रवरुणौ शस्तौ, गर्भप्रश्रे सुतप्रदौ । समीरदहनौ स्त्रीदौ, शून्यं गर्भस्य नाशकम् ॥२३९|| अर्थ :- गर्भसंबंधी प्रश्न में महेन्द्र और वरुणमंडल श्रेष्ठ है, इनमें प्रश्न करे तो पुत्र की प्राप्ति होती है, वायु और
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