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सातवें श्राविकाक्षेत्र की महिमा और महाश्रावकपद का रहस्य
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक ११९ | जो भी कल्पनीय साधन सामग्री हो, वह सब प्रत्यन पूर्वक उन्हें देनी चाहिए। परंतु यदि कोई साधु जिनवचनविरोधी हो अथवा जो सामग्री साधुधर्म की निंदा कराने वाली हो, उसे अपनी शक्ति-अनुसार रोकना चाहिए। इसलिए कहा है कि- समर्थ श्रावक पूर्वोक्त कारणों से प्रभु-आज्ञा से भ्रष्ट साधु की उपेक्षा न करे। अपितु अनुकूल या प्रतिकूल उपायों से उसे हितशिक्षा देकर मूलमार्ग पर आरूढ़ करने का प्रत्यन करे। (जब देखें कि यह साधु-साध्वी हित शिक्षा | के योग्य नहीं है तब उपेक्षा करें)
५. साध्वीक्षेत्र ज्ञान-दर्शन- चारित्र रूपी रत्नत्रयसंपन्न साध्वीक्षेत्र में भी साधु के समान यथोचित आहार आदि | का दान देकर अपने धन का सदुपयोग करना चाहिए। यहां शंका करते हैं कि 'स्त्रियों में सत्त्वरहितता तथा दुःशीलता | आदि दुर्गुण होते हैं इसी कारण स्त्रियों को मोक्ष पाने का अधिकार नहीं है; तो फिर उनको दिया हुआ दान साधु को | दिये गये दान के समान कैसे माना जाय?' इसका समाधान यों देते हैं- स्त्रियों में सत्त्वहीनता की बात मिथ्या है; क्योंकि | ब्राह्मी आदि कई साध्वियां घर-बार छोड़कर साधुधर्म की अनुपम आराधना करने वाली हुई है; ऐसी महासत्त्वशाली | साध्वियों को सत्त्वहीन कहना उचित नहीं है। कहा है कि 'शील-सत्त्व गुणों से प्रसिद्ध आर्या ब्राह्मी, सुंदरी, राजीमती, प्रवर्तिनी चंदनबाला आदि महासाध्वियां देवों तथा मनुष्यों द्वारा पूजनीय हुई है, तथा गृहस्थ-अवस्था में भी इस जगत् | में सुंदर सत्त्व और निर्मलशील से प्रसिद्ध सती सीता आदि स्त्रियों को सत्त्वहीन या शीलरहित कैसे कहा जा सकता है? राज्य, लक्ष्मी, पति, पुत्र, भाई, कुटुंब आदि के स्नेहसंबंधों का परित्याग कर दीक्षा का भार उठाने वाली सत्यभामा आदि स्त्रियों को असत्त्वशाली कैसे कहा जा सकता है? (स्त्री निर्वाण ३४-३६) इस कारण से रत्नत्रय की आराधिका, प्राणांत कष्ट में भी शील को सुरक्षित रखने वाली और महाघोर तपस्या करने में सत्त्व वाली साध्वियां दुश्चरित्र कैसे हो सकती है? यहां फिर प्रश्न उठाया जाता है कि महापाप और मिथ्यात्व के कारण ही जीव स्त्रीत्व प्राप्त करता है; अतः सम्यग्दृष्टि | जीव कदापि स्त्रीत्व प्राप्त नहीं करता है, तो फिर स्त्रीत्व - शरीर में रहा हुआ आत्मा मोक्ष कैसे जा सकता है? इसके उत्तर | में कहते हैं- ऐसा कहना यथार्थ नहीं है। सम्यक्त्व की प्राप्ति के समय ही सभी कर्मों की स्थिति एक कोटाकोटी सागरोपम से कम हो जाती है और उस समय मिथ्यात्व मोहनीय आदि का भी क्षयोपशम होता है। मिथ्यात्व - सहित पापकर्म के होने का कोई कारण नहीं । स्त्री को सम्यक्त्व - प्राप्ति होते ही मिथ्यात्व आदि का उदय समाप्त हो जाता है। अतः स्त्री को भी सम्यक्त्वप्राप्ति की असंभावना नहीं कह सकते और स्त्री मोक्षसाधना नहीं कर सकती, ऐसा भी नहीं कह सकते । | कहा भी है
'आर्या अर्थात् साध्वी जिनवचन जानती है, उस पर श्रद्धा करती है, समग्र रूप से चारित्र का पालन भी करती। है। इस कारण उसके लिए मोक्षप्राप्ति असंभव नहीं है।' अदृष्ट (न देखी हुई) चीज विरोध का कारण नहीं हो सकती | अर्थात् मोक्ष की असंभाव्यता का कारण देखे बिना स्त्रियों के लिए मोक्ष प्राप्ति असंभव मानना योग्य नहीं माना जा सकता। | ( स्त्री निर्वाण - ४ ) इससे सिद्ध हुआ कि मुक्ति-साधनामूर्ति साध्वियों में साधु के समान अपना धन लगाना योग्य है। साध्वियों की सेवाभक्ति में इतना विशेष समझना चाहिए - दुराचारी नास्तिकों के जाल से साध्वियों की सुरक्षा करनी | चाहिए तथा उन्हें निवास के लिए अपने घर के नजदीक, चारों तरफ से सुरक्षित और गुप्त द्वार वाला; मकान, उपाश्रय | या रहने का स्थान देना चाहिए। अपने घर की स्त्रियों द्वारा उनकी सेवा करवानी चाहिए; अपनी पुत्रियों को उनके संपर्क में रखना चाहिए, उनसे परिचित कराना चाहिए और अपनी किसी कन्या को दीक्षा लेने की भावना हो तो उसे निःसंकोच | समर्पित करना चाहिए। वे कोई करने योग्य कार्य भूल जाय तो याद दिला देना चाहिए। साध्वीजी गलत प्रवृत्ति करती हों तो विनयपूर्वक रोकना चाहिए। अपनी लड़कियां या घर की स्त्रियां अगर उनकी सेवाभक्ति करना भूल जाय तो उन्हें | सावधान करना चाहिए। बार-बार चेतावनी देने पर भी न माने तो उन्हें शिक्षा देनी चाहिए। बार-बार भूल करें तो कठोर | वचन से उपालंभ आदि देना चाहिए। संयमोचित वस्तुएँ देकर उनकी सेवा करनी चाहिए ।
६. श्रावक - क्षेत्र - छट्ठा क्षेत्र श्रावक का है। इस क्षेत्र में अपना धन लगाना चाहिए। श्रावक श्रावक का साधर्मिक | माना जाता है। समानधर्मी पुरुषों का समागम जब महापुण्योदय से होता है, तो फिर उनके अनुरूप सेवा करने की तो बात ही क्या? अपने पुत्र-पुत्री आदि के जन्मोत्सव, विवाह आदि अवसरों पर साधर्मिकों को निमंत्रण देना, विशिष्ट
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