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सुदाम राजा की कथा
योगशास्त्र चतुर्थ प्रकाश श्लोक २६ से २७
भावार्थ :- इंद्रियों को यहां घोड़े की उपमा दी है। घोड़े का स्वभाव चंचल होता है अगर सवार उस पर काबू न रखे तो वह झटपट उजड़ बीहड़ जंगल में भगा ले जाता है; इंद्रियों को वश में नहीं रखने वाले को वे जबरन उन्मार्ग पर चढ़ा देती हैं और जीव को नरक में ले जाती है। मतलब यह है कि इंद्रियों को नहीं जीतने पर जीव नरकगामी होता है ।। २५ ।।
इंद्रियों का गुलाम कैसे नरक में जाता है? इसे कहते हैं
| | ३५२ । इन्द्रियैर्विजितो जन्तुः कषायैरभिभूयते । वीरैः कृष्टेष्टकः पूर्वं वप्रः कैः कैर्न खण्ड्यते ? ||२६|| जो जीव इंद्रियों से पराजित हो जाता है, उस पर कषाय हावी हो जाता है। वीर लोग जब किले की एक ईंट खींचकर खिसका देते हैं तो उसके बाद कौन उसे खंडित नहीं कर देते? फिर तो कमजोर आदमी भी उसे नष्टभ्रष्ट कर देते हैं ।। २६ ।।
अर्थ
:
व्याख्या :
• जो आत्मा इंद्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर सकता, उसे कषाय भी दबा देते हैं; वे उस पर चढ़ बैठते हैं। इसलिए कषायों को जीतने के लिए इंद्रियों पर विजय पाने का पहले उपदेश दिया है। इसके विपरीत जो इंद्रियविजय का पराक्रम नहीं करता; वह इंद्रियों के द्वारा कषायों के अधीन होकर नरकगामी बनता है। यहां शंका होती है कि कोई | व्यक्ति इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने में असमर्थ हो तो उसे इंद्रियविजय में रुकावट आ सकती है, कषायविजय में रुकावट आने का तो अवसर ही कैसे आ सकता है? इसीका समाधान एक दृष्टांत द्वारा करते हैं- एक बहादुर योद्धा किले की | एक इंट खींच लेता है तो उसके दुर्बल साथी भी टपाटप एक-एक इंट खींचकर उस किले को ढहा देते हैं, इसी प्रकार | इंद्रियों से पराजित व्यक्ति साधारण मनुष्य के समान कषायों से तुरंत पराजित हो जाता है। क्योंकि कषाय प्रायः इंद्रियों का ही अनुसरण करते हैं। इसलिए जिसने इंद्रियाँ वश में नहीं की; वह कषायों से पराभूत होकर नरक में जाता है, तथा | इस लोक व इस जन्म में अपना नुकसान कर बैठता है ।। २६ ।।
इसे ही कहते हैं
। ३५३। कुलघाताय पाताय, बन्धाय च वधाय च । अनिर्जितानि जायन्ते, करणानि शरीरिणाम् ||२७|| अर्थ :- अविजित (काबू में नहीं की हुई) इंद्रियाँ शरीरधारियों के कुल को नष्ट कराने वाली, पतन, बंधन और वध कराने वाली होती हैं ||२७||
व्याख्या :
• इंद्रियों का दमन न करने से वे उच्छृंखल इंद्रियाँ इसी जन्म में वंश का विनाश, राज्यभ्रष्टता कैदखाने (जेल) के बंधन और प्राणनाश को न्यौता दे देती है। रावण इंद्रियों को वश न कर सका, उसने परस्त्री के साथ रमण | करने की इच्छा की; इस कारण राम-लक्ष्मण ने उसके कुल का विनाश कर दिया था। यह दृष्टांत पहले बता चुके हैं। इंद्रियाँ वश में न होने से सुदामराजा के समान शासक राज्यच्युत या पतित हो जाता है।
| सुदाम राजा की कथा :
एक नगर में सुदामराजा राज्य करता था । उसे अलग-अलग किस्म का मांस खाने का बहुत शौक था। वह अत्यंत | आसक्तिपूर्वक मांस खाता और अपने आप में बहुत खुश रहता था। एक दिन उसके रसोइए ने मांस पकाकर रखा था कि जरा से इधर-उधर होते ही उसे बिल्ली चट कर गयी। नगर के श्रद्धालु श्रावकों ने राजा को प्रसन्न करके उस दिन अमारिपटह की घोषणा करवायी थी; इसलिए उस दिन किसी जीव का वध न होने से कहीं किसी प्रकार का मांस न | मिला। अतः राजा की नाराजगी के डर से रसोइये ने किसी बालक को लाकर उसका मांस पकाया और राजा को खिलाकर | संतुष्ट किया। राजा को वह मांस बहुत स्वादिष्ट लगा, अतः उसने एकांत में ले जाकर रसोईए को शपथ दिलाकर पूछा | तो रसोईये ने सारी बात सच-सच कह दी। राजा को अब मनुष्य के मांस खाने की चाट लग गयी। उसने नगरभर में | जितने बालक थे, उन्हें पकड़ लाने के लिए जगह-जगह सेवकों को तैनात कर दिया । नगरनिवासियों को इस बात का पता लगा तो उन्होंने मंत्री, राज्याधिकारी आदि सब को अपने पक्ष में करके एकमत होकर राजा को खूब शराब पिलाकर मूर्च्छित कर दिया। बाद में उसे बांधकर जंगल में छोड़ आये । जिह्वेन्द्रिय के वश होकर सुदामराजा अपने राज्य से च्युत हुआ, परिवार और कुल से अलग हुआ और जंगल में पड़ा पड़ा कुत्ते की तरह कराहता रहा।
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