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मन की शुद्धि का महत्त्व और लेश्या का वर्णन
योगशास्त्र चतुर्थ प्रकाश श्लोक ४४ |आदि लेश्याद्रव्य को लेकर ही आत्मा में लेश्या-शब्द का व्यवहार होता है। काले रंग के अशुभपुद्गलों के सन्निपात से आत्मा के परिणाम अशुद्धतम होते हैं। इस कारण वह आत्मा कृष्णलेश्याधिकारी माना जाता है। नीले रंग के द्रव्यों के सन्निकर्ष से आत्मा के परिणाम अशुद्धतर होते हैं, इसलिए वह आत्मा नीललेश्याधिकारी माना जाता है। कापोतवर्ण वाले द्रव्य के सन्निधान से आत्मा के परिणाम अशुद्ध होते हैं, इस कारण वह आत्मा कापोतलेश्यावान् कहलाता है। पीतवर्ण वाले द्रव्य के सन्निधान से आत्मा के परिणाम तदनुरूप शुद्ध होते हैं, इससे आत्मा तेजोलेश्या वाला कहलाता है। पद्मवर्ण वाले द्रव्यों के सन्निकट होने से आत्मा के परिणाम तदनुरूप शुद्धतर होते हैं, इसलिए वह आत्मा | पद्मलेश्यायुक्त माना जाता है। और शुक्लवर्ण वाले द्रव्यों के सानिध्य से आत्मा के परिणाम शुद्धतम (बिलकुल शुद्ध) होते हैं, इसलिए वह आत्मा शुक्ललेश्यावान् होता है। कृष्ण, नील आदि समस्त द्रव्यकर्मप्रकृतियों का निःस्यंद (निचोड़) उस-उसकी उपाधि से निष्पन्न होने वाली भावलेश्या है। वही कर्म के स्थितिबंध में कारणभूत है। प्रशमरतिप्रकरण की ३८वीं गाथा में कहा है-कृष्ण, नील, कापोत, तैजस, पद्म और शुक्ल नाम की ये ६ लेश्याएँ है; जो कर्मबंध की स्थिति को उसी तरह सुदृढ़ कर देती है, जिस तरह चित्रकर्म में सरस रंग को स्थायी व पक्का बना देता है। इस तरह पूर्वोक्त छह लेश्याएँ आत्मा के परिणाम रूप होने से अशुद्धतमा, अशुद्धतरा, अशुद्धा, शुद्धा, शुद्धतरा और शुद्धतमा कहलाती है। लेश्याओं का स्वरूप समझाने के लिए जामुन के पेड़ का तथा ग्रामघातक का दृष्टांत विस्तृत रूप से दिया जाता है।
अतः इस विषय को समझाने वाली आगमोक्त गाथाओं का भावार्थ यहां प्रस्तत कर रहे हैं एक जंगल में छह पुरुषों ने एक जामन का पेड देखा. जो पके हए फलों से परिपर्ण था और उसकी डालियाँ भार से नमी हई थी। पेड
सी हालत में देखकर सभी ने जामुन खाने की अपनी-अपनी इच्छा प्रकट की और कहने लगे-जामन कैसे खाएँ? उनमें से एक ने कहा-इस पेड़ पर चढ़ना तो बहुत मुश्किल है, जान का खतरा है। इसलिए इसे जड़ से ही काट दिया जाय, ताकि निश्चिन्त होकर जामुन खा सकें। दूसरे ने कहा-अजी! इतने बड़े पेड़ को काटने से क्या फायदा होगा? हमें फल ही खाने हैं, तो सिर्फ इस पेड़ की बड़ी-बड़ी डालियाँ काटकर नीचे गिरा लें, और फिर खाएँ। तीसरे ने कहाहमारा काम तो छोटी डालियाँ काट लेने से ही चल जायगा, फिर बड़ी डालियाँ काटने से क्या मतलब? चौथे ने कहाअजी! फल के गुच्छे-गुच्छे तोड़ लेने से ही हमारा काम बन जायेगा। पांचवे ने कहा-हमें तो सिर्फ पके हुए खाने लायक फलों को ही तोड़ लेना चाहिए। सबसे अंत में छटे ने कहा-हमें पेड़ से फल तोड़ने की क्या आवश्यकता है? जितने फल खाने हैं, उतने तो पेड़ के नीचे गिरे पड़े हैं, उन्हें ही लेकर खा लें।
इस दृष्टांत का उपनय करते हुए कहते हैं-जिसने पेड़ को जड़ से काटने का कहा था, वह कृष्णलेश्यावाला है; जिसने बड़ी शाखाएँ काटने का कहा था, वह नीललेश्या वाला है; जिसने छोटी टहनियाँ काटने का कहा था, वह
कापोतलेश्या वाला है; जिसने गुच्छे-गुच्छे तोड़ लेने का कहा था, वह तेजोलेश्या वाला है; जिसने सिर्फ पके फल | तोड़ने का कहा था, वह पद्मलेश्यावान् है और जिसने पेड़ से टूटकर अपने आप धरती पर पड़े हुए फलों को लेने का कहा था; वह शुक्ललेश्यावाला है।
इसे एक दूसरे दृष्टांत द्वारा समझाते हैं एक बार छह लुटेरे किसी गांव को लूटने के लिए चले। उनमें से एक लुटेरे ने कहा-गांव में दो पैर वाले या चार पैर वाले जो भी प्राणी मिलें, सबको मार डालो। दूसरे ने कहा-चार पैर वाले पशुओं को क्यों मारा जाय, सिर्फ दो पैर वाले मनुष्यों को मारना चाहिए। तीसरे ने कहा-अजी! स्त्रियों को क्यों मारा जाय! सिर्फ पुरुषों को ही मार डाला जाय! चौथे ने कहा-सभी पुरुषों को न मारकर जिनके पास हथियार हों, उन्हें| ही मार डाला जाय! पांचवें ने कहा-अजी! हमें तो उनको मारना चाहिए: जो हमारे सामने आकर लडाई करे। तब छद्रे ने कहा-छोड़ो मारने की बात को! हमें तो केवल धन ले लेना चाहिए
इसका उपसंहार यों है-जो सभी को मारने का कहता था, वह कृष्णलेश्या के परिणाम वाला था; जो मनुष्यों को मारने का कहता था, वह नीललेश्यावान्, जो केवल पुरुषों को मारने का कहता था, वह कापोतलेश्यायुक्त, जो केवल | शस्त्र-अस्त्रवालों को मारने का कहता था, वह तेजोलेश्यावान्, जो सामने आकर लड़ने वाले को मारने का कहता था, वह पद्मलेश्यावान् एवं जो केवल धन ले लेने की बात कहता था, वह शुक्ललेश्या के परिणामों से युक्त था।
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