________________
तीर्थंकर और सिद्धोंकी फलापेक्षी स्तुति और उसका अर्थ
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक १२३ दर्शन आदि गुणों से जो निर्मल है, वह विमल होता है तथा प्रभु गर्भ में आये तब उनके प्रभाव से माता की मति और | शरीर निर्मल होने से भगवान् का नाम विमल रखा । १४. अनंतनाथ - अनंत कर्मों पर विजय पाने वाले अथवा अनंत | ज्ञान-दर्शन आदि गुणों से विजयवान होने से अनंतजित् कहलाते हैं; तथा जब प्रभु गर्भ में थे, तब माता ने अनंत | रत्नमाला देखी थी अथवा आकाश में अनंतरहित महाचक्र देखा था, जो तीनों जगत् में विजयी बनाता हैं, इस कारण अनंतजित् का संक्षिप्त नाम अनंत रखा। भीमसेन को जैसे भीम कहा जाता है, वैसे ही अनंतजित् को अनंत कहा जाने | लगा। १५. धर्मनाथ - दुर्गति में पड़ते हुए जीवों को जो धारण करता है, वह धर्म है और भगवान् जब गर्भ में आये थे, तब से माता दानादि धर्म में तत्पर बनी, इससे उनका नाम धर्मनाथ रखा । १६. शांतिनाथ शांति का योग होने से, स्वयं शांति - स्वरूप होने से और दूसरों के लिए शांतिदाता होने से शांतिनाथ नाम हुआ । और प्रभु गर्भ में थे तब | उनके प्रभाव से देश में उत्पन्न हुई महामारी आदि उपद्रव की शांति होने से पुत्र का नाम शांति रखा। १७. कुंथुनाथकु अर्थात् पृथ्वी, उसमें रहने वाले होने से निरुक्त अर्थ कुन्थु हुआ । प्रभु जब गर्भ में आये थे, तब उनके प्रभाव से माता ने रत्नों के कुन्थु यानी ढेर को देखा था, इससे उनका नाम कुंथुनाथ रखा । १८. अरनाथ - सर्वोत्तम महा सात्त्विक, कुल की समृद्धि के लिए उत्पन्न हुए, अतः उनका नाम वृद्ध पुरुषों ने 'अर' रखा। और गर्भ के प्रभाव से माता ने स्वप्न में रत्नों का अर अर्थात् आरा देखा था, इससे उनका नाम 'अर' रखा। १९. मल्लिनाथ परिषह आदि मल्लों को जीतने | वाले; निरुक्त के अनुसार मल्लि का यह अर्थ किया गया तथा भगवान् जब गर्भ में थे तब माता को छह ऋतुओं के फूलों की सुगंधमय मालाओं की शय्या में सोने का दोहद उत्पन्न हुआ था। जिसे देवता ने पूर्ण किया। इससे उनका नाम | मल्लि रखा । २०. मुनिसुव्रतस्वामी - जगत् की त्रिकाल अवस्था को जाने अथवा उस पर मनन करे उसे मुनि कहते हैं; मनेरुदेती चास्य वा उणादि ६१२, व्याकरण के इस सूत्रानुसार मन् धातु के इ प्रत्यय लगकर उपान्त्य अ को उ होने से मुनि शब्द बना तथा सुंदर व्रत वाले होने से सुव्रत हुआ । इस तरह मुनिसुव्रत शब्द निष्पन्न हुआ। तथा भगवान् जब गर्भ में आये तब उनके प्रभाव से माता को मुनि के समान सुव्रत पालन की इच्छा हुई, इससे उनका नाम मुनिसुव्रत रखा। | २१. नमिनाथ- परिषह और उपसर्ग को नमाने (हराने वाले होने से नमि कहलाये, नमेस्तु वा उणादि ६१३ सूत्र के द्वारा विकल्प से उपान्त्य में इकार करने से नमि रूप बनता है। जब गर्भ में थे, तब उनके प्रभाव से नगर पर चढकर आया | हुआ शत्रुराजा भी नम ( झुक गया इस कारण उनका नाम 'नमि' रखा। २२. नेमिनाथ चक्र की वर्तुलाकार नेमि के | समान धर्मचक्र को चलाने वाले और गर्भ के प्रभाव से माता ने रिष्टरत्नों का महानेमि (गोलाकार चक्र) स्वप्न में देखा था, इससे रिष्टनेमि तथा पूर्वदिशा के लिए जैसे अपश्चिम शब्द का प्रयोग किया जाता है, वैसे ही वहां निषेधवाचक 'अ' | लगाने से अरिष्टनेमि नाम रखा। २३. पार्श्वनाथ जो सभी भावों को देखता है, वह पार्श्व है, यह निरुक्त अर्थ है, तथा | प्रभु जब गर्भ में थे, तब उनके प्रभाव से माता ने अंधकार में सर्प देखा था, यह गर्भ का प्रभाव है, ऐसा जानकर पश्यति | अर्थात् दिखायी दे वह पार्श्व है, तथा पार्श्व नाम के वैयावृत्य (सेवा) करने वाले यक्ष के नाथ होने | भीमसेन को भीम कहा जाता है, वैसे पार्श्वनाथ को पार्श्व भी कहा जाता है। २४. वर्धमानस्वामी
से पार्श्वनाथ नाम पड़ा।
-
- जब से उत्पन्न हुए तब से ज्ञान आदि गुणों में वृद्धि की अथवा भगवान् जब माता के गर्भ में आये थे तब उनके ज्ञाति, कुल, धन, धान्य | आदि समृद्धि में वृद्धि होने लगी, इससे पुत्र का नाम वर्धमान रखा। आगे चलकर इनका अतुल पराक्रम देखकर देवों ने 'महावीर' नाम रखा । नामों के अर्थ वाली श्री भद्रबाहुस्वामी - रचित यहां (आ. वि. १०९३ से ११०४) बारह गाथाएँ अंकित हैं, जिनका अर्थ ऊपर कहे हुए अर्थ में आजाने से यहां पर दुबारा नहीं लिखते ।
इस तरह चौबीस तीर्थंकर भगवान् के नामपूर्वक कीर्तन करके अब चित्त की शुद्धि के लिए प्रार्थना करते हैंएवं मए अभित्थुआ, विहुअरयमला पहीणजरमरणा । चउवीसं पि जिणयरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥५॥ अर्थ :- इस प्रकार मेरे द्वारा नामपूर्वक स्तुति किये गये, कर्म रूपी मल से रहित और जरा और मरण से मुक्त चौवीस जिनवर श्री तीर्थंकर मुझ पर प्रसन्न हो ||५||
एवं=इस तरह मया=मेरे द्वारा, अभित्थुआ= नामोल्लेख पूर्वक मैंने जिनकी स्तुति की है, वे जिनेश्वर तीर्थंकरदेव मुझ
273
-
—