________________
पोरिसी और 'पुरिमड्ड' - पच्चक्खाण के पाठ और उन पर विवेचन
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक १२९ के अनुपात में ही तो उसका फल मिलेगा! अतः यह नमुक्कारसी (नमस्कारसहित) का प्रत्याख्यान एक मुहूर्त प्रमाण का ही समझना । वह अल्पकाल का पच्चक्खाण भी नमस्कारमंत्र के साथ है। अर्थात् सूर्योदय होने के बाद एक मुहूर्त पूर्ण | होने के बाद भी जब तक नवकार मंत्र का उच्चारण न करे, तब तक वह पच्चक्खाण पूर्ण नहीं होता । किन्तु दो घड़ी | से पहले ही यदि नवकार मंत्र बोलकर पच्चक्खाण पार ले तो, प्रत्याख्यानकालमर्यादा के अनुसार उसका काल अपूर्ण | होने से प्रत्याख्यान भंग हो जाता है। इससे सिद्ध हुआ कि नमुक्कारसी पच्चक्खाण सूर्योदय से मुहूर्तप्रमाणकाल और | नवकारमंत्र के उच्चारणसहित होता है। अब प्रथम मुहूर्त किस तरह लेना ? सूत्र प्रमाण से पोरसी के समान वह सूत्र इस प्रकार है
उग्गए सूरे नमोक्कार - सहियं पच्चक्खाइ, चउविहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं साइमं अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं योसिर ।
सूत्र व्याख्यार्थ . - उग्गए सूरे अर्थात् सूर्य उदय से लेकर नमोक्कार-सहिअं अर्थात् पंचपरमेष्ठि- नमस्कार - महामंत्र | सहित और समस्त धातु करना अर्थ में व्याप्त होते हैं, इस न्याय से पच्चक्खाइ अर्थात् नमस्कार सहित प्रत्याख्यान | करता है। इसमें पच्चक्खाण देने वाले गुरुमहाराज के अनुवाद - रूप कहे जाने वाले वचन हैं, उसका स्वीकार करने वाला | शिष्य पच्चक्खामि अर्थात् – मैं पच्चक्खाण करता हूं ऐसा बोले, इसी तरह वोसिरइ ( व्युत्सृजति) के स्थान में भी गुरु| महाराज के कथित वचन का स्वीकार करने के लिए शिष्य अनुवाद के रूप में वोसिरामि= (त्याग करता हूं) बोले । व्युत्सर्ग (त्याग) किसका किया जाय ? इसे बताते हैं - चउव्विहं पि आहारं =चार प्रकार के आहार का त्याग करता हूं। इस विषय | में संप्रदाय-परंपरागत अर्थ इस प्रकार है - प्रत्याख्यान करने के पूर्व रात्रि से लेकर चारों आहार का त्याग करना नौकारी | है अथवा रात्रिभोजन - त्याग व्रत को उसकी तटीय सीमा तक पहुंचकर पार उतरते हुए सूर्योदय से एक मुहूर्त (४८= मिनट) काल पूर्ण होने पर नमस्कारमंत्र के उच्चारणपूर्वक पारणा करने से नौकारसी पच्चक्खाण पूर्ण होता है। अशन-पान आदि चार प्रकार के आहार की व्याख्या पहले की जा चुकी है। यहां प्रत्याख्यान भंग न होने के कारण बताते हैं - अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं। यहां पंचमी के अर्थ में तृतीया विभक्ति का प्रयोग किया गया है। अनाभोग | और सहसाकार, इन दो कारणों से प्रत्याख्यान खंडित नहीं होता । अनाभोग का अर्थ है - अत्यंत विस्मृति के कारण से | लिये हुए पच्चक्खाण को भूल जाना और सहसाकार का अर्थ है - उतावली या हड़बड़ी में की गयी प्रवृत्ति अथवा | अकस्मात् = हठात् (एकाएक) मुंह में चीज डाल लेने या पड़ जाने की क्रिया हुई। जैसे गाय दुहते समय अचानक दूध के छीटे या स्नान करते समय सहसा उछलकर पानी के छीटे मुंह में पड़ जाना सहसाकार है । ऐसा हो जाने पर | पच्चक्खाण भंग नहीं होता । वोसिरइ का अर्थ पहले कह चुके है।
अब पोरसी के पच्चक्खाण का पाठ कहते हैं
उग्गए सूरे, पोरिसी पच्चक्खाइ चउब्विहं पि आहारं असणं, पाणं, खाइमं साइमं, अण्णत्थणाभोगेणं सहसागारेणं, पच्छन्न-कालेणं दिसामोहेणं साहुययणेणं सव्वसमाहिवित्तिआगारेणं योसिर ।
पोरिसी (पौरुषी) का अर्थ है - सूर्योदय के बाद पुरुष के शरीर प्रमाण छाया आ जाय, उतने समय को पौरुषी (पोरसी) कहते हैं। उसे प्रहर (पहर ) भी कहते हैं। इतने काल प्रमाण तक चारों प्रकार के आहार का त्याग (पच्चक्खाण) करना पौरुषी या पौरसी पच्चक्खाण कहलाता है। वह पच्चक्खाण किस रूप में होता है - अशन, पान, | खाद्य और स्वाद्य रूप चारों प्रकार के आहार का त्याग करता हूं। 'वोसिरइ' क्रियापद के साथ इस वाक्य का संबंध | जोड़ना । इस प्रत्याख्यान में ६ आगार है; पहला और दूसरा दोनों आगार नमुक्कारसी के पच्चक्खाण के समान ही समझ | लेने चाहिए। बाकी के पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्तिआगारेणं ये ४ आगार हैं। अतः ये ६ | आगार रखकर पोरसीपच्चक्खाण (सूर्योदय से लेकर एक प्रहर तक) में चारों आहार का त्याग करता हूं। पच्छन्नकालेणं | का अर्थ है - बादलों के कारण, आकाश में रज उड़ने से या पर्वत की आड़ में सूर्य के ढक जाने से, परछाई के न दिखने के कारण प्रत्याख्यान पूर्ण होने के समय का मालूम न होने के कारण कदाचित् पोरसी आने से पहले पच्चक्खाण पार | लेने पर भी उसका भंग नहीं होता । परंतु जिस समय वह खा रहा हो, उस समय कोई ठीक समय बता दे, या ठीक
300