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मद्य से नुकशान
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक ८ १७
आदि द्विदल (दालें), फूलन (काई) पड़े हुए चावल, दो दिन के बाद का दही, सड़ा बासी अन्न; इन सबका सेवन करना छोड़े ।।६-७।।
अब मद्य से होने वाले कुपरिणामों (दोषों) का विवरण दस श्लोकों में प्रस्तुत करते हैं।१७९। मदिरापानमात्रेण, बुद्धिर्नश्यति दूरतः । वैदग्धीबन्धुरस्यापि दौर्भाग्येणव कामिनी ॥८॥
अर्थ :- जैसे चतुर से चतुर पुरुष को भी दुर्भाग्यवश कामिनी दूर से ही छोड़कर भाग जाती है, वैसे ही मदिरा पीने मात्र से बुद्धिशाली पुरुष को भी बुद्धि छोड़कर पलायन कर जाती है ||८||
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। १८०। पापाः कादम्बरीपानविवशीकृतचेतसः । जननीं हा प्रियीयन्ति, जननीयन्ति च प्रियाम् ॥९॥ मदिरा पीने से चित्त काबू से बाहर हो जाने के कारण पापात्मा शराबी भान खोकर माता के साथ पत्नी जैसा और पत्नी के साथ माता-सा व्यवहार करने लगता है ।।९।।
अर्थ :
| | १८१ । न जानाति परं स्वं वा, मद्याच्चलितचेतनः । स्वामीयति वराकः स्वं स्वामिनं किङ्करीयति ॥ १० ॥ अर्थ :- मदिरा पीने से अव्यवस्थित ( चंचल) चित्त व्यक्ति अपने पराये को भी नहीं पहचान सकता। वह बेचारा अपने नौकर को मालिक और मालिक को अपना नौकर मानकर व्यवहार करने लगता है। बेसुध होने से बेचारा दयनीय बन जाता है ||१०|
। १८२। मद्यपस्य शबस्येव, लुठितस्य चतुष्पथे । मूत्रयन्ति मुखे श्वानो, व्यात्ते विवरशङ्कया ॥११॥ अर्थ :- शराब पीने वाला शराब पीकर जब मुर्दे की तरह सरेआम चौराहे पर लौटता है तो खड्डे की आशंका से उसके खुले हुए मुंह में कुत्ते पेशाब कर देते हैं ।। ११ ।।
। १८३ । मद्यपानरसे मग्नो नग्नः स्वपिति चत्वरे । गूढं च स्वमभिप्रायं, प्रकाशयति लीलया ॥ १२॥ अर्थ :- शराब पीने में मस्त शराबी बाजार में कपड़े अस्त-व्यस्त करके सरेआम नंगा सो जाता है और अपनी गुप्त बात को या राज्यद्रोह आदि गुप्त रखे जाने वाले अपराध को बिना ही किसी मारपीट या गिरफ्तारी के अनायास ही प्रकट कर देता है ।। १२ ।।
। १८४ । वारुणीपानतो यान्ति, कान्तिकीर्तिमतिश्रियः । विचित्राश्चित्ररचना, विलुण्ठत् कज्जलादिव ॥१३॥ जैसे अतिसुंदर बनाये हुए चित्रों पर काजल पोत देने से वे नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही मदिरापान से मनुष्य की कांति, कीर्ति, बुद्धि - प्रतिभा और संपत्ति नष्ट हो जाती है ।।१३।।
अर्थ :
। १८५ । भूतात्तवन्नरीनर्त्ति, रारटीति सशोकवत् । दाहज्वरार्त्तवद् भूमौ सुरापो लोलुठीति च ॥१४॥ अर्थ :- मद्यपान करने वाला भूत लगे हुए की तरह बार-बार नाचता - कूदता है, मृतक के पीछे शोक करने वाले की तरह जोर-जोर से रोता- चिल्लाता है, दाहज्वर से पीड़ित व्यक्ति की तरह इधर-उधर लोटता है, छटपटाता है || १४ ।।
इसी प्रकार
||१८६ । विदधत्यङ्गशैथिल्यं, ग्लपयन्तीन्द्रियाणि च । मूर्च्छामतुच्छां यच्छन्ती, हाला हालाहलोपमा ॥ १५ ॥ अर्थ :- हलाहल जहर की तरह शराब पीने वाले के अंगों को शराब सुस्त कर देती है, इंद्रियों की कार्यशक्ति क्षीण कर देती है, बहुत जोर की बेहोशी पैदा कर देती है ।। १५ ।।
|| १८७ | विवेकः संयमो ज्ञानं, सत्यं शौचं दया क्षमा । मद्यात्प्रलीयते सर्वं तृण्या वह्निकणादिव ॥ १६ ॥ अर्थ :जैसे आग की एक ही चिनगारी से घास का बड़ा भारी ढेर जलकर भस्म हो जाता है; वैसे ही मद्यपान से हेयोपादेय का विवेक, संयम, ज्ञान, सत्यवाणी, आचारशुद्धि रूप शौच, दया, क्षमा आदि समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ।। १६ ।।
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