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अतिचारों का वर्णन
योगशास्त्र तृतीय प्रकाश श्लोक ८८ से ८९ | ली। शालिभद्र ने जब यह सुना तो मैं पीछे रह गया, यों मानकर दीक्षा के लिए उतावल करने लगा। फलतः | महापराक्रमी सम्राट् श्रेणिक ने भी उसका अनुमोदन किया । अतः शालिभद्र ने भी श्री वीरप्रभु के चरणकमलों में दीक्षा ग्रहणकर ली। 1
जैसे गजराज अपने दलसहित विचरण करता है, वैसे सिद्धार्थनंदन श्रीवीरप्रभु भी अपने शिष्यपरिवार सहित क्रमशः ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए अन्यत्र पधार गये। धन्ना और शालिभद्र दोनों शास्त्राध्ययन करके बहुश्रुत ज्ञानी बने, उसी प्रकार घोर तपश्चर्या भी करने लगे। वे दोनों शरीर पर ममत्वभाव से रहित होकर पक्ष, महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने आदि का उग्र तप करते थे। इस प्रकार की उग्रतपस्या से दोनों का शरीर मांस रुधिर रहित केवल | अस्थिपंजर - सा एवं मशक के समान हो गया। विचरण करते-करते एक बार भगवान् महावीर के साथ वे दोनों मुनि अपनी जन्मभूमि राजगृह पधारे। समवसरणस्थ त्रिलोकीनाथ भगवान् महावीर के अखंड श्रद्धातिशय से बहुत-से | नगरनिवासी उनके दर्शन वंदन के लिए उमड़ने लगे। धन्नाशालिभद्र ने भी मासक्षपण ( मासिक उपवास) के पारणे पर | भगवान को नमस्कार करके भिक्षा के लिए जाने की आज्ञा प्राप्त की। श्री भगवान् ने शालिभद्र से कहा- आज तुम्हारा पारणा अपनी माता के हाथ से होगा। शालिभद्र और धन्ना दोनों आहार के लिए चल पड़े। भद्रा के महल के दरवाजे पर आकर दोनों मुनि खड़े रहे; परंतु तपस्या के कारण कृशकाय दोनों मुनियों को किसी ने पहचाना नहीं । भद्रा भी श्री वीरप्रभु, धन्ना एवं शालिभद्र को वंदना करने की उत्कंठा से जाने की तैयारी में व्यग्र थी, इसलिए उतावल में उन्हें नहीं पहचान सकी। दोनों मुनि कुछ देर रुककर फिर आगे बढ़ गये। वे नगर के मुख्यद्वार वाली गली से जा रहे थे कि शालिभद्र के पूर्वजन्म की माता धन्या मिली। शालिभद्र को देखते ही उसके स्तनों से दूध की धारा बहने लगी। दोनों मुनियों को वंदन करके उसने भक्तिभाव पूर्वक उन्हें दही दिया । उसे लेकर दोनों मुनि महावीर प्रभु की सेवा में आये । | वंदना - नमस्कार करके गौचरी की आलोचना की। तत्पश्चात् हाथ जोड़कर शालिभद्र ने पूछा - भगवन् ! आपने फरमाया था कि आज तेरी माता के हाथ से पारणा होगा। वह कैसे हुआ? सर्वज्ञ प्रभु ने कहा- शालिभद्र महामुने! जिसने तुम्हें दही दिया, वह धन्या तुम्हारे पूर्वजन्म की एवं अन्य जन्मों की माता ही तो थी । धन्या माता के हाथ से दिये हुए दही से पारणा करके शालिभद्रमुनि वीरप्रभु से अनशन की आज्ञा लेकर धन्नामुनि के साथ वैभारगिरिपर्वत पर गये। वहां धन्ना - शालिभद्र दोनों ने एक शिलाखंड का प्रर्माजन एवं प्रतिलेखन किया और पादपोपगमन नामक अनशन स्वीकार किया। उसी दौरान माता भद्रा एवं श्रेणिक राजा आदि भक्तिभाव से महावीर प्रभु के दर्शन-वंदनार्थ पहुंचे। माता भद्रा ने प्रभु से पूछा - प्रभो ! धन्ना मुनि और शालिभद्र मुनि कहां है? वे हमारे यहां भिक्षा के लिए क्यों नहीं पधारे? सर्वज्ञ | प्रभु ने कहा - भद्रे ! तुम्हारे घर पर आज दोनों मुनि पधारे थे, परंतु तुम्हें यहां आने की व्यग्रता थी। अतः उतावल में तुम उन्हें नहीं पहचान सकी । तुम्हारे पुत्र को उसके पूर्वजन्म की माता धन्या वापिस लौटते हुए रास्ते में मिली; उसने उन्हें भिक्षा के रूप में दही दिया। उसी से दोनों ने पारणा किया है। और दोनों महासत्त्वशाली मुनि मेरी आज्ञा लेकर | अनशन करके समाधि पूर्वक शरीर का त्याग करने हेतु वैभारगिरि पर गये हैं। वहां उन्होंने अनशन स्वीकारकर लिया है। यह सुनकर भद्रा श्रेणिक राजा के साथ वैभारगिरि पर पहुंची। वहां दोनों मुनियों को पाषाणशिला पर पाषाण के पुतले | की तरह कायोत्सर्ग-ध्यान में स्थिर देखा । तपस्या से कृश बने हुए शरीर को भद्रा बड़ी मुश्किल से देख सकी। | पूर्वकालीन सुखसंपन्नता को याद करके उसका मन भर आया। अपने रुदन की प्रतिध्वनि से मानो वैभारगिरि को रुलाती हुई भद्रा रुंधे हुए गले से बोली- वत्स ! आज तुम मेरे घर पर आये, लेकिन मुझ अभागी ने तुम्हें पहचाना नहीं । तुम | दोनों मेरे इस प्रमाद पर गुस्सा मत करना । यद्यपि तुमने चारों प्रकार के आहार का त्यागकर दिया है; फिर भी मेरा मनोरथ | था कि तुम अपने दर्शन से मेरे नेत्रों को आनंदित कराओगे। परंतु हे पुत्र ! शरीरत्याग के कारणभूत इस अनशन को प्रारंभ | करके तुम मेरे मनोरथ को भंग करने को उद्यत हुए हो। तुमने जिस प्रकार का तप प्रारंभ किया है, मैं उसमें कोई विघ्न नहीं डालती, लेकिन जरा इस अत्यंत कठोर शिलातल से तो हटकर इस ओर हो जाओ। माता भद्रा का मोह - प्राबल्य | देखकर श्रेणिक राजा ने उससे कहा- माता! आप हर्ष के स्थान पर व्यर्थ ही रुदन क्यों करती है? ऐसे धर्मवीर तपोवीर 1. अन्य कथाओं में दोनों की एक साथ दीक्षा का वर्णन आता है।
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