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राम और रावण का युद्ध
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ९९ ने रावणपुत्र मेघनाद को नीचे गिराकर पकड़ लिया। यह देखते ही ऐरावण के समान विशालकाय एवं जगत् में भयंकर | रावण रोष से दांत पीसता हुआ समग्र वानरसैन्य रूपी हाथियों को पीसने के लिए युद्धभूमि में आया। तभी लक्ष्मण ने श्रीराम से कहा- 'आर्य! आपको युद्धभूमि में अभी जाने की आवश्यकता नहीं। मैं अकेला ही इन सबसे निपट लूंगा।' | इस प्रकार राम को रोककर लक्ष्मण स्वयं बाणवर्षा करता हुआ शत्रु के संमुख आया । अस्त्रविद्या में प्रवीण रावण ने जितने अस्त्र छोड़े, लक्ष्मण उन्हें काटता गया । अंतः में रावण ने लक्ष्मण की छाती पर अमोघशक्ति नामक अस्त्र का जोर से प्रहार किया। इस शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण पृथ्वी पर मूर्च्छित होकर गिर पड़े। बलवान राम के हृदय में शोक छा गया। प्राणप्रण से हितैषी सुग्रीव आदि ८ सुभटों ने सुरक्षा के लिए राम और लक्ष्मण को चारों ओर घेर लिया। रावण ने हर्षित | होकर सोचा- 'आज लक्ष्मण मर जायगा । लक्ष्मण के वियोग में राम की भी वही दशा होगी। अब बेकार ही मुझे युद्ध | करके क्या करना है?" यों सोचकर वह नगर की ओर चल दिया । राम को किले की तरह कई सैनिक सुरक्षा के लिए घिरे हुए थे। राम के आवास के चारों दरवाजों पर सुग्रीव आदि खड़े थे। तभी दक्षिणदिशा के द्वार के रक्षक भामंडल के पूर्व परिचित एक विद्याधर नेता ने आकर कहा - 'अयोध्या नगरी से १२ योजन पर कौतुकमंगल नामक नगर है, वहां के राजा द्रोणधन कैकयी के भाई हैं। उसके विशल्या नामक एक कन्या है। उसके स्नान किये हुए जल के स्पर्श से तत्काल शल्य (तीर का विष) चला जाता है। अगर सूर्योदय से पहले-पहले वह जल लाकर लक्ष्मण पर छींटा जाये तो यह | शल्यरहित होकर जी जायेगा, नहीं तो जीना मुश्किल है। इसलिए मेरी राय में श्रीराम से शीघ्र निवेदन करके किसी | विश्वस्त को उसे लाने की आज्ञा दे देनी चाहिए। इस कार्य के लिए शीघ्रता करो। सबेरा हो जाने पर फिर कोई उपाय | काम नहीं आयेगा। गाड़ी उलट जाने पर गणपति क्या कर सकता है?
भामंडल ने तुरंत श्रीराम के पास जाकर सारी बात समझाई। अतः हनुमान और भामंडल दोनों तूफान के समान | शीघ्रगामी विमान में बैठकर अयोध्या आये। उस समय भरत अपने महल में सोये हुए थे, अतः दोनों ने उन्हें जगाने के लिए मधुर गीत गाये । 'राज्यकार्य के लिए भी राजाओं को मधुर गीत से जगाया जाता है।' भरतजी निद्रा छोड़कर अंगड़ाई लेते हुए जाग पड़े, सामने भामंडल को नमस्कार करते हुए देखा। आने का प्रयोजन पूछा तो भामंडल ने उस | महत्त्वपूर्ण कार्य का जिक्र किया। हितैषी ईष्ट व्यक्ति को भी इष्ट कार्य के संबंध में अधिक नहीं कहा जाता। भरत ने | सोचा - मेरे स्वयं के जाने पर ही यह कार्य सिद्ध हो सकेगा। अतः विमान में बैठकर वे तुरंत कौतुकमंगल नगर आये। द्रोणधन राजा से उन्होंने लक्ष्मण के लिए विशल्या की मांग की। उन्होंने मांग स्वीकार करके विशल्या को बुलाकर हजार | कन्याओं के साथ उसे दी । भामंडल भी भरत को अयोध्या में छोड़कर कन्याओं के परिवार सहित विशल्या को लेकर उत्सुकतापूर्वक वहां पहुंचे। प्रकाशमान दीपक के समान उस विमान में भामंडल को बार-बार सूर्योदय होने की भ्रांति हो जाने से वे भयभीत हो जाते थे। विमान से उतरते ही भामंडल विशल्या को सीधे ही लक्ष्मण के पास ले गये। लक्ष्मण को हाथ से स्पर्श करते ही लाठी से जैसे सर्पिणी निकलकर चली जाती है, वैसे ही शक्ति (विषबुझे बाण की मार ) | निकलकर चली गयी। उसके बाद राम की आज्ञा से विशल्या का स्नानजल अन्य सैनिकों पर भी छींटा गया, जिससे | वे शल्य रहित होकर नये जन्म ग्रहण की तरह उठ खड़े हुए। फिर कुंभकर्ण आदि को विशल्या का स्नानजल छींटने | का श्रीराम ने उच्च स्वर से कहा। किंतु द्वारपालों ने कहा- 'देव ! उन्होंने तो उसी समय स्वयं दीक्षा अंगीकारकर ली | है। 1 राम ने यह सुनते ही कहा- 'तब तो वे मुक्तिमार्ग के पथिक है, वंदनीय है, उन्हें तो बंधनमुक्तकर देना चाहिए । ' | राम की आज्ञा से रक्षकों ने नमस्कार करके तत्काल उन्हें बंधनमुक्त कर दिये। इसके बाद विशल्या और उसके साथ आयी। | हुई सभी कन्याओं को लक्ष्मण के साथ विधिवत् पाणिग्रहण हुआ।
क्रोधमूर्ति रावण को ये समाचार मिलते ही वह पुनः युद्धभूमि में आ धमका। क्योंकि पराक्रमी वीर पुरुषों के लिए | विवाहोत्सव से भी बढ़कर युद्धोत्सव होता है। रावण जब-जब अस्त्र छोड़ता था, लक्ष्मण उसे केले के पत्ते के समान | काट देता था। अपने हथियार खंडित हो जाने से क्रुद्ध रावण ने चक्र फेंका। वह चक्र लक्ष्मण को छाती में तमाचे के | समान लगा; मगर उसकी धार नहीं लगी, इससे उसका बाल भी बांका न हुआ। लक्ष्मण ने उसी चक्र को वापिस रावण 1. अन्य कथा में रावण की मृत्यु के बाद दीक्षा लेने का वर्णन है।
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