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हनुमान का सीता से मिलना, युद्ध के लिए लंका में प्रवेश
___ योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ९९ इधर विराध भी राम के कार्य के लिए सेना लेकर आया। सच है, कृतज्ञपुरुष अपने स्वामी का कार्य किये बिना सुख से नहीं रह सकता। भामंडल भी विद्याधरों की सेना लेकर वहां आ पहुंचा। कुलीनपुरुष स्वामी के कार्य को उत्सव से भी बढ़कर समझता है। सुग्रीव ने जांबवान, नल, नील आदि अपने प्रसिद्ध पराक्रमी सामंत राजाओं को चारों ओर | से खबर भेजकर वहां बुलाये। इधर अन्य विद्याधर राजाओं की सेना भी जब चारों ओर से आ-आकर वहां जमा हो गयी; तब सुग्रीव ने श्री राम को प्रणाम करके सविनय निवेदन किया-'देव! यह अंजनादेवी और पवनंजय का पुत्र अतीव बलशाली सेवापरायण हनुमान है। यह आपकी आज्ञा से सीताजी का समाचार लेने लंका जायेगा। आप इसे |आशीर्वाद दें और पहचान के लिए अपनी नामांकित मुद्रा दें।' श्रीराम ने हनुमान को सारी बातें संक्षेप में समझा दी और अपनी मुद्रिका देकर आशीर्वाद दिया। पवनपुत्र हनुमान भी हवा की भांति अत्यंत तीव्रगति से आकाशमार्ग से चल पड़ा। कुछ ही समय में वह लंका पहुंच गया। लंका में रावण के उद्यान में शिंशपावृक्ष के नीचे मंत्रजप की तरह राम का ध्यान करती हुई सीता को देखा। वृक्ष की शाखा में अदृश्य होकर हनुमान ने ऊपर से सीता की गोद में परिचय के लिए मुद्रिका डाली। रामनामांकित मुद्रिका को देखते ही सीता अत्यंत प्रसन्न हुई। इसे देखकर त्रिजटा राक्षसी ने रावण के पास जाकर निवेदन किया-'देव! इतने अर्से तक हमने सीता को चिंताग्रस्त देखा था, लेकिन आज तो प्रसन्नता की मुद्रा में है।' रावण ने सोचा-अवश्य ही सीता अब राम को भूलकर मेरे साथ प्रीति जोड़ने की इच्छा से प्रसन्न हुई है।' उसने मंदोदरी को बुलाकर आदेश दिया-देवी! तुम जाकर सीता को समझाओ। इस समय अच्छा मौका है। पति के दौत्यकार्य को करने के लिए मंदोदरी सीता के पास पहुंची। सीता को प्रलोभन देकर विनीत बनकर वह सीता से इस प्रकार कहने लगी-देखो, सीते! रावण बहुत बड़ा राजा है, अपूर्व ऐश्वर्य, सौंदर्य आदि अनेक गुणों से सुशोभित है। रावण की
वण्यादि संपदा भी तेरे अनुरूप है। दुःख है, अज्ञदैव तुम दोनों का संयोग न करा सका। परंतु अब वह योग आया है। अतः तम्हारे ध्यान में अहर्निश-लीन रावण के पास जाओ. उसकी सेवा करो और आमोद-प्रमोद में अपना जीवन बिताओ। हे सनयने! दसरी सब रानियाँ तम्हारी आज्ञा का पालन करेंगी।' यह सनकर सीता ने तिरस्कारपर्वक मंदोदरी से कहा-'अरी पति का दूतकार्य करने वाली पापिनी! दुर्मुखी! शर्म नहीं आती, तुम्हें ऐसा कहते! तेरे पति के समान तेरा भी मुख देखने योग्य नहीं है। यह समझ ले कि मैं राम के पास ही हूँ। क्योंकि लक्ष्मण यहां आया है। वह खर आदि के समान बंधुओं सहित तुम्हारे पति को मारेगा। पापिनी! तुम यहां से खड़ी हो जाओ। अब मेरे साथ बात भी मत करो।' इस प्रकार अपमानित होकर मंदोदरी रोष पूर्वक वहां से चल पड़ी।
मंदोदरी के जाने के बाद हनुमान पेड़ से नीचे उतरा और विनय पूर्वक सीता को नमस्कार करके हाथ जोड़कर बोला- 'देवि! आपके भाग्य से लक्ष्मण सहित श्रीराम कुशलपूर्वक हैं, विजयी है। श्रीराम की आज्ञा से मैं आपका समाचार पाने के लिए यहां आया हूं। मैं वापिस लौटकर उन्हें आपके समाचार कहूंगा। फिर श्रीराम शत्रु का संहार करने के लिए यहां आयेंगे। पति के दूत और उनके प्रतीक के रूप में मुद्रिका अर्पित करने वाले हनुमान को देखकर सीता अत्यंत प्रसन्न हुई। उसने हनुमान को अपने अमोघ आशीर्वाद से अभिनंदित किया। उसके पश्चात् हनुमान के आग्रह से और श्रीराम के समाचार मिलने से प्रसन्न होकर सीता ने १९ उपवास का पारणा किया।' पवन के समान स्फूर्तिमान पवनपुत्र हनुमान ने अपने बल का चमत्कार बताने के लिए वहां के पेडपौधे, पत्ते, फल, डालियाँ आदि तोड़-तोड़कर रावण का उद्यान नष्टभ्रष्ट कर डाला। उद्यान को नष्टभ्रष्ट होते देख उद्यान-पालकों ने हनुमान को पकड़कर सजा देना | चाहा, परंतु वह किसी के पकड़ में नहीं आ रहा था। आखिर उद्यानपालकों ने रावण के पास जाकर शिकायत की। रावण ने हनुमान को पकड़ने और पकड़ा न जा सके तो मार डालने की आज्ञा दी। रावण के कुछ सिपाहियों को लेकर उद्यानपालक उद्यान में आये; परंतु अकेले हनुमान ने ही उन सबको मार भगाये। सचमुच, 'युद्ध में विजय की गति विचित्र होती है।' रावण ने हनुमान को बांधकर लाने के लिए शक्रजित को आज्ञा दी। उसने पाशबंधन अस्त्र फेंका। हनुमान उसमें अपने आप ही बंध गया। हनुमानजी को बांधकर शक्रजित रावण के पास ले गया; लेकिन यह क्या? हनुमान ने चट से पाशबंधन तोड़ा और बिजली के दंड के समान पैर ऊपर उठा कर रावण का मुकुट चूर-चूर कर दिया। 1. त्रिषष्टी के सप्तम पर्व में २१ उपवास के पारणे की बात है। और वहां चूडामणि (मुकुट) सीता द्वारा देने का उल्लेख है।
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