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नकली सुग्रीव
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ९९ | सत्यप्रतिज्ञ राम पाताललंका पहुंचे और उक्त विराध को अपने पिता की राजगद्दी पर बिठाया। इधर साहसगति नाम का | विद्याधर नेता आकाश में भ्रमण करता हुआ किष्किन्धा नगरी के निकट आया । उस समय किष्किन्धा नगरी का राजा | सुग्रीव नगरी के बाहर सैर करने के लिए अपने परिवार के साथ जा रहा था। सचमुच राजाओं की मनःस्थिति ऐसी ही होती है। ठीक उसी समय साहसगति सुग्रीव के अंतःपुर में पहुंच गया। वहां सुग्रीव की पत्नी सुनयना तारा को देखकर | वह कामविह्वल हो गया। गर्मी से पीड़ित हाथी के समान, काम की गर्मी से पीड़ित साहसगति ने तारा के साथ रतिक्रीड़ा करने की लालसा से अन्यत्र जाने का विचार टाल दिया; मानो कामदेव की आज्ञा का उल्लंघन न करने की दृष्टि से | ही आगे जाने का विचार स्थगित कर दिया हो । परंतु उसने सोचा- यह रमणी मुझ अपरिचित के साथ सहसा रमण करने | को तैयार नहीं होगी। इस चिंता से व्यग्र होकर सोचते-सोचते उसे एक बात सूझी कि मैं स्त्री या पुरुष का चाहे जैसा | रूप बदलने में नट के समान कुशल हूं, अतः क्यों नहीं, सुग्रीव का वेश बना लूं।1 यों विचारकर साहसगति सुग्रीव | का वेष बनाकर उसके महल में घुसने लगा। महल के अंगरक्षकों ने स्त्रीलंपट कृत्रिम सुग्रीव को ही असली सुग्रीव | समझकर महल में जाने से नहीं रोका। अभी वह महल तक पहुंचा नहीं था कि असली सुग्रीव बाहर से लौटकर ज्यों ही अंतःपुर में घुसने लगा, त्यों ही वहां के पहरेदारों ने उसे अंदर जाने से रोका। अतः वह महल के द्वार के पास वापिस | आकर खड़ा हो गया। पहरेदारों से बार बार कहने पर भी उन्होंने असली सुग्रीव को यह कहकर अंदर प्रवेश नहीं करने | दिया कि 'अभी-अभी तो राजा ने प्रवेश किया है। मालूम होता है, तुम कोई ओर हो।' इस पर से आपस में वादविवाद छिड़ गया। अतः पहरेदारोंने नकली सुग्रीव को बाहर बुलाया। उसके आते ही दोनों में समुद्र के समान अतुल कोलाहलमय वाग्युद्ध छिड़ गया। दूसरे सुग्रीव के कारण उपद्रव होते देखकर बालिपुत्र उस उपद्रव को शांत करने के लिए अंतःपुर के द्वार के पास शीघ्र ही आ पहुंचा। नदी के पूर को जैसे पर्वत रोक देता है वैसे ही नकली सुग्रीव को बालिपुत्र ने अंतःपुर में जाने से रोक दिया। चौदह रत्नों के समान जगत् की श्रेष्ठ चौदह अक्षौहिणी सेना वहां आकर | डट गयी। उन दोनों के रहस्य को न समझ पाने के कारण पूरी सेना में आधे सैनिक बनावटी सुग्रीव की तरफ और आधे | असली सुग्रीव की तरफ हो गये। इस तरह दोनों की तरफ बंटी हुई सेना में ही परस्पर युद्ध छिड़ गया। भाले से भाले . | टकराये। आकाश में शस्त्रों के परस्पर टकराने से निकलती हुई चिनगारियों से आकाश ऐसा दिखायी देने लगा, मानो | वह उल्कापात वाला हो । अश्वारोहियों के साथ अश्वारोही, हाथियों के साथ हाथी, पैदल के साथ पैदल एवं रथिकों के | साथ रथिक भिड़ गये। प्रौढ प्रिय-समागम से जैसे मुग्धा रमणी कांप उठती है, वैसे ही दोनों चतुरंगिणी सेनाओं की | आपसी टक्कर से पृथ्वी कांपने लगी। कोई मसला हल न होते देखकर सच्चे सुग्रीव ने नकली सुग्रीव को ललकारा'अरे, पराये घर में घुसने वाले नीच कामी कुत्ते ! आ मेरे साथ लड़! अभी तुझे छठी की याद दिला देता हूं।' कृत्रिम | सुग्रीव भी इस अपमान की चोट से मदोन्मत्त हाथी की तरह उछलता और जोर से गर्जना करता हुआ असली सुग्रीव | से युद्ध करने आया। क्रोध से लाल-लाल आंखें किये यमराज के सहोदर की तरह वे दोनों महारथी तटस्थ दर्शक प्रजा के मन को कचोट रहे थे। वे दोनों अपने तीखे हथियारों से घास की तरह दोनों तरफ की सेना को काटते हुए लड़ रहे थे। जैसे दो भैंसों की लड़ाई में वृक्ष-वन का सत्यानाश हो जाता है, वैसे ही इन दोनों महायोद्धाओं की लड़ाई से | खेचरीगण भाग जाती थी। जंगम पर्वतों की तरह मल्लयुद्ध करते-करते उन दोनों महायोद्धाओं के शस्त्र टूटकर नष्ट | हो गये। क्रोध से परस्पर एक दूसरे के लिए असह्य बने हुए वे क्षणभर में आकाश में उड़ते हुए और दूसरे ही क्षण भूमि | पर गिरते हुए. - से मालूम होते थे, मानों दोनों वीर - चूड़ामणि मुर्गे हों। दोनों महाप्राण परस्पर एक दूसरे को नहीं जीत सके, तब थके हुए बली की तरह दूर हटकर खड़े हो गये। वे दोनों अब थककर इतने चूर हो गये थे कि लड़ना अब | उनके बस का न रहा। अंततः किष्किन्धानगरी से बाहर निकलकर दोनों एक स्थान पर बैठ गये। वहीं अस्वस्थ मन | वाला बनावटी सुग्रीव रहा। बालिपुत्र ने उसे अंतःपुर में किसी भी मूल्य पर प्रविष्ट नहीं होने दिया।
सच्चा सुग्रीव वहीं नीचा सिर किये बैठा-बैठा सोचने लगा- 'अहो ! मेरा यह स्त्रीलंपट शत्रु कितना कपटपटु है कि इसने मेरे स्वजनों को प्रपंच से वश करके अपना बना लिया है। खेद है, इसने अपने ही घुटनों पर कपट से छापा 1. अन्य कथानकों में यह वर्णन दूसरे प्रकार से बताया हुआ है।
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