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सुभुम चक्री की कथा
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक २७ नहीं हुआ, तो दोनों देव-'धन्य है-धन्य है', इस प्रकार धन्यवाद देते हुए वहां से तापस जमदग्नि की परीक्षा लेने चल पड़े। ____ तापस के आश्रम में पहुंचकर उन्होंने देखा कि वटवृक्ष की तरह विस्तृत और भूतल को छूती हुई उसकी लंबी जटाएँ हैं, उसके पैर दीमकों के टीलों से ढके हुए थे। उसकी दाढ़ी रूपी लताजाल में देव-माया से उन देवों ने घोंसला बनाकर स्वयं चकवे के जोड़े के रूप में उसमें घुस गये। फिर चकवे ने चकवी से कहा- 'मैं हिमवान् पर्वत पर जा रहा हूं।' तब चकवी ने कहा- 'तुम वहां जाकर दूसरी चकवी के प्रेम में फंस जाओगे; वापस नहीं आओगे। इसलिए मैं तुम्हें जाने की अनुमति नहीं दूंगी।' तब चकवा बोला-'प्रिये! यदि मैं वापस न आऊँ तो मुझे गोहत्या का पाप लगे।' इस तरह शपथबद्ध चकवे से चकवी ने कहा-प्रिय! यदि इस ऋषि के पाप की सौगंध खाओ तो मैं तुम्हें जाने की अनुमति दे सकती हूं। तुम्हारा मार्ग कल्याणकारी बने।' यह वचन सुनते ही क्रोध से आगबबूला होकर तापस ने दोनों पक्षियों को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उन्हें कहा-मैं इतना दुष्कर तप करता हूँ कि सूर्य के होने से जैसे अंधकार नहीं रहता, वैसे ही मेरे तप के रहते मेरे पाप कैसे टिक सकते हैं? इस पर चकवे ने ऋषि से कहा-'आप क्रोध न करें। सच बात यह है कि आपका तप सफल नहीं है; क्योंकि 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' 'पुत्र के बिना मनुष्य की सुगति नहीं होती; यह श्रुतिवाक्य क्या आपने नहीं सुना?' पक्षियों की बात यथार्थ मानकर तापस ने विचार किया कि 'मैं स्त्री और पुत्र से रहित हूं, इस कारण मेरा तप भी व्यर्थ ही पानी में बह गया है। तापस को इस प्रकार विचलित देखकर धनवंतरीदेव सोचने लगा-'अरे इन तापसों ने मुझे बहका दिया था। धिक्कार है, इनको! इनका संग छोड़ना चाहिए।' यह सोचकर वह भी श्रावक बन गया। 'प्रतीति हो जाने पर किसे विश्वास नहीं होता? अर्थात् सभी को होता है।' उसके बाद वे दोनों देव अदृश्य हो गये।
इंधर जन्मदग्नि तापस वहां से नेमिकोष्ठक नामक नगर में पहुंचा। वहां अनेक कन्याओं का पिता जितशत्रु राजा राज्य करता था। महादेवजी जैसे कन्याप्राप्ति के लिए दक्ष-प्रजापति के पास गये थे, वैसे ही वह तापस एक कन्या की प्राप्ति की इच्छा से राजा के पास गया। राजा ने खड़े होकर उनका सत्कार किया और हाथ जोड़कर पूछा-'भगवान्! आप किस लिए पधारे हैं? जो आज्ञा हो, फरमाइये, मैं सेवा करने को तैयार हूँ।' इस पर तापस ने कहा-'मैं एक कन्या की याचना के लिए तुम्हारे पास आया हूं।' राजा ने कहा- 'मेरी ये सो कन्याएँ हैं; इनमें से जो आपको चाहे, उसे आप ग्रहण कीजिए।' उस तापस ने कन्याओं के अंतःपुर में जाकर राजकुमारियों से कहा- 'तुममें से कौन मेरी धर्मपत्नी बनने को तैयार है?' कन्याओं ने इस अप्रत्याशित प्रस्ताव को सुनकर तापस की ओर देखते हुए कहा-'अरे जटाधारी! सफेद बाल वाले! दुर्बल! भिक्षाजीवी बूढ़े! तुझे हम जवान कन्याओं से ऐसा कहते हुए शर्म नहीं आती! यों कहते हुए राजकन्याओं ने उस पर थूका। अतः हवा से जैसे आग भड़क उठती है वैसे ही इस बात से जमदग्नि की क्रोधाग्नि भड़क उठी। उसने अपने तपोबल से राजकन्याओं को खींचे हुए कमान की तरह कुबड़ी बना दिया। उस समय वहीं आंगन में धूल के ढेर पर क्रीड़ा करती हुई एक कन्या को देखकर तापस ने उसे पास बुलाकर कहा-'अरी रेणुके! क्या तूं मुझे चाहती है?' यों कहकर उसे बीजोरे का फल बताया। उसने भी पाणिग्रहण-सूचक हाथ लंबा किया। दरिद्र जैसे धन को कसकर पकड़ लेता है वैसे ही तापस ने उक्त बालिका को छाती से पकड़ लिया। अतः राजा ने विधि-पूर्वक गायें दान में देकर उक्त कन्या को भी साथ में दे दी। राजा की शेष ९९ कन्याओं के साथ साली का स्नेह-पूर्ण रिश्ता होने से तापस ने अपनी तपःशक्ति से उन्हें पहले की तरह पुनः सुंदर बना दिया। धिक्कार है, मूढ़ों के द्वारा इस प्रकार के तपोव्यय को! राजकन्या अभी अल्पवयस्क, भोली और सुंदर थी। अतः तापस उसे अपने आश्रम में ले गया। तपस्वी के ये दिन शीघ्र व्यतीत हो गये। कन्या अब कामदेव के क्रीड़ावन के समान मनोहर यौवन के सिंहद्वार पर पहुंची। पार्वती के साथ जैसे महादेव ने विधिवत् पाणिग्रहण किया था, वैसे ही उस कन्या के साथ जमदग्नि तापस ने अग्नि की साक्षी-पूर्वक विवाह किया। ऋतुमती होने पर ऋषि ने उससे कहा-'प्रिये! मैं तेरे लिये एक चरु मंत्रित करके तैयार कर रहा हूं! यदि तूं उसका भक्षण करेगी तो उसके प्रभाव से तुझे ब्राह्मणों में श्रेष्ठ पुत्र प्रास होगा।' इस पर रेणुका ने अपने पति तापस से कहा-'प्रिय! हस्तिनापुर में मेरी बहन अनंतवीर्य राजा की पत्नी है; उसके लिए भी एक मंत्र साधित क्षात्रचरु तैयार कर दीजिए। तापस
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