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मूलदेव की कथा
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ७२ बाद राजा ने उस पर दयादृष्टि रखकर अपना एक दूत उसके साथ उज्जयिनी भेजा और उज्जयिनीनरेश को अचल को प्रवेश करने की आज्ञा देने का संदेश कहलवाया। अचल को दूत के साथ उज्जयिनी जाने की आज्ञा दी। मूलदेव राजा के संदेश से अवंतिपति ने अचल को उज्जयिनी-प्रवेश की आज्ञा दी। क्योंकि क्रोध का कारण अब समाप्त हो गया था।
एक दिन दुःख से बेचैन कुछ व्यापारियों ने एकत्र होकर राजा मूलदेव से प्रार्थना की-देव! आप प्रजा की रक्षा के लिए रातदिन चिंतित रहते हैं, लेकिन इस नगर में चोर-लुटेरे आकर चारों ओर चोरी, लूटमार आदि करके हमें बहुत हैरान कर रहे हैं। वे चोर ऐसे उद्दण्ड हैं कि हर रात को किसी न किसी के यहां चोरी करने पहुंच जाते हैं तथा चूहे की तरह दीवार तोड़ते हैं। कोतवाल भी हमारे जानमाल की सुरक्षा कर सकने में लाचार है। क्या बताएँ, अपने घर में भ्रमण की तरह हमारे घर में निःशंक होकर घूमते हैं, मानो कोई अंजनसिद्धि ही उनके पास हो।' इस पर राजा ने कहा-प्रजाजनों! घबराओ मत! मैं शीघ्र ही उस अपयशकारी चोर का पता लगाकर उसे गिरफ्तार करवाऊंगा और बड़ी भारी
सजा दूंगा। यों आश्वासन देकर राजा रवाना हुये। राजा ने राजसभा में नगराध्यक्ष को बुलाकर आज्ञा दी-'नगर में जितने | भी चोर हैं, उनका पता लगाकर शीघ्र ही पकड़ो और उन्हें कड़ा दंड दो।' नगराधिकारी ने कहा स्वामिन्! और तो ठीक है। पर एक चोर ऐसा है जो हमारे देखते ही आंख बचाकर पिशाच की तरह भाग जाता है। वह पकड़ा भी नहीं जाता। राजा ने कहा-अच्छा, मैं देखंगा उसे। उसी रात को नीलवस्त्रधारी बलदेव की तरह राजा ने नीले वस्त्र पहने और नगरचर्या करने हेतु शहर में निकला। जहां-जहां चोरों के छिपने के अड्डे थे, उन सब जगहों पर बाहुबलशाली राजा घूम लिया। दिनभर घूमते-घूमते राजा थक गया और एक टूटे-फूटे खंडहर बने देवकुल में उसी तरह सो गया। जिस तरह गुफा में केसरीसिंह सो जाता है। रात्रिचर भूत-प्रेत की तरह भयावना-सा मंडिक नाम का चोरों का सरदार रात को वहां आया। उसने राजा को सोये देखकर आवाज दी-यहाँ कौन सोया हुआ है? सोते हुए सिंह के समान वहां सोये हुए राजा के उस चोरपति ने क्रोधित होकर लात मारी। राजा ने आगंतुक की चेष्टा, स्थान और धन का पता लगाने की दृष्टि से उत्तर दिया-मैं एक परदेशी मुसाफिर हूं। प्रायः ऐसी व्यक्ति आमने-सामने होशियार नहीं होते। चोर ने राजा से कहा- 'मुसाफिर! चल आज मेरे साथ, मैं तुम्हें बहुत मालामाल बना दूंगा।' धिक्कार है, मदांध की अज्ञानता को! | राजा धनार्थी होकर उस चोर सेनापति के पीछे-पीछे पैदल चला। गर्ज पड़ने पर जनार्दन भी गधे के पैरों का मर्दन करता है। राजा को साथ में लिये हुए वह चोरनेता एक बड़े धनाढ्य के घर में घुसा। हथियार से घर में सैंध लगाकर कुंड में से अमृत ग्रहण करने वाले राहु की तरह उसने उस घर में जो भी अच्छी-अच्छी वस्तु मिली, उसे ले ली। अज्ञानी चोर द्वारा चुराया हुआ और गठरी बंधा वह सारा धनमाल राजा के सिर पर रखकर वे चले। शाकिनी जैसे अपना पेट बताती फिरती है, वैसे ही मूढबुद्धि चोर ने राजा को सारा धन बता दिया। राजा ने मन ही मन चोर को खत्म करने की मंशा से जैसे उस चोर सेनापति ने कहा, वैसे ही बोझ उठा लिया। क्योंकि धूर्त लोग काम पड़ने पर अतिनम्र बन जाते हैं और कार्य सध जाने पर राक्षस-से बन जाते हैं। अतः जीर्ण उद्यान में पहुंचकर उसने वहां क अंदर घुसा। गोबर में रखे हुए बिच्छू की तरह राजा को भी वह गुफा के अंदर ले गया। गुफा में नाग कुमारी देवी सरीखी रूप यौवनसंपन्न, लावण्य और सौंदर्य से युक्त, सुडौल अवयवों से सुशोभित एक कुमारी बैठी थी, जो उसकी बहन थी। चोरपति ने बहन को आदेश दिया-इस अतिथि के दोनों पैर धो दो। वह राजा को निकट ही एक कुंए पर ले गयी और उसे एक आसन पर बिठाया। कुंएँ से पानी निकालकर वह कमलनयनी कन्या राजा के पैर धोने लगी। राजा के कोमल अंगों का स्पर्श होने से उसे सुखानुभव हुआ। उसने गौर से सभी अंगों पर दृष्टिपात किया और विस्मित होकर मन ही मन सोचा-यह तो साक्षात् कामदेव ही है। इसे मारना ठीक नहीं। राजा पर वह अत्यंत मोहित 3 उसने राजा से कहा-महाभाग! पैर धोने के बहाने इस कुएँ में बहुत-से मनुष्यों को गिरा दिये हैं। चोरों के दिल में दया कहां? यह तो मैं आपके रूप लावण्य को देखकर आप पर मोहित और प्रभावित हो गयी; इसलिए आपको मैं इस कुंएँ में नहीं डालूंगी। महापुरुष का प्रभाव अद्भुत वशीकरण युक्त होता है। इसलिए स्वामिन्! मेरा अनुरोध है कि आप यहां
से झटपट चले जाइए, नहीं तो हम दोनों की खैर नहीं है। राजा तत्काल वहां से उठकर बाहर निकल गया। चतुर | पराक्रमी होते हुए भी शत्रु को बुद्धिबल से मारते हैं। राजा के काफी दूर चले जाने के बाद वह लड़की जोर से चिल्लायीभाई, वह तो भाग गया, दौड़ो-दौड़ो जलदी, वह चला गया। अपने परिचित या स्नेही को बचाने के लिए बुद्धिशाली
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