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वसुराजा का नरक गमन, कौशिक का नरक गमन
योगशास्त्र द्वितीय प्रकाश श्लोक ६१ है। सत्य से हवा चलती है। सत्य से देव वश में हो जाते हैं। सत्य से ही वृष्टि होती है। सारा व्यवहार सत्य पर टिका है। आप दूसरे लोगों को सत्य पर टिकाते हैं तो आपका तो इस विषय में क्या कहना ? सत्यव्रत के लिए जो उचित हो, | वही निर्णय दो। वसुराजा ने मानो सत्य के संबंध में उक्त बातें सुनी-अनसुनी करके किसी प्रकार का दीर्घदृष्टि से विचार न करते हुए कहा, 'गुरुजी ने अजान्- मेषान् अर्थात् अज का अर्थ बकरा किया था।' इस प्रकार का असत्य वचन बोलते | ही वेदिकाधिष्ठित देवता कोपायमान हुए। उन्होंने आकाश जैसी निर्मल स्फटिकशीलामयी वेदिका एवं उस पर स्थापित सिंहासन दोनों को चूर-चूरकर दिया । वसुराजा को तत्काल भूतल पर गिरा दिया, मानो उन्होंने उसे नरक में गिराने का | उपक्रम किया हो। नारद भी तत्काल यों कहकर तिरस्कार करता हुआ वहां से चल दिया कि चांडाल के समान झूठी | साक्षी देने वाले तेरा मुंह कौन देखे ? असत्य वचन बोलने से देवताओं द्वारा अपमानित वसुराजा घोर नरक में गया। अपराधी वसुराजा का जो भी पुत्र राजगद्दी पर बैठता, देवता उसे मार गिराते थे। इस तरह वसु के आठ पुत्रों को देवों | ने मार गिराये। अतः वसुराज के इस प्रकार असत्य बोलने का फल सुनकर जिनवचन-श्रवण करने वाले भव्य आत्माओं | को किसी के भी आग्रह दवाब या लिहाज - मुलाहिजे में आकर अथवा प्राणों के चले जाने की आशंका हो तो भी असत्य नहीं बोलना चाहिए। यह है नारद - पर्वत - कथा का हार्द!
सज्जनों का हित करने वाला वह सत्यवचन व्युत्पत्ति से यथार्थ होने पर भी अगर दूसरों को पीड़ा देने वाला हो तो उसे भी असत्य की कोटि में ही माना गया है। इसलिए सत्य भी ऐसा न बोले, जिससे दूसरों के हृदय को घ |पहुंचे
। ११७। न सत्यमपि भाषेत, परपीडाकरं वचः । लोकेऽपि श्रूयते यस्मात्, कौशिको नरकं गतः || ६१ || अर्थ :- जिससे दूसरों को पीड़ा हो, ऐसा सत्यवचन भी न बोलो, क्योंकि यह लोकश्रुति है कि ऐसे वचनं बोलने से कौशिक नरक में गया था ।। ६१ ।
व्याख्या :
कई बार किसी का वचन लोक व्यवहार में सत्य दिखायी देता है; लेकिन परमार्थ से विचार करने | पर मालूम होता है कि वह परपीड़ाकारी है तो उसे असत्य ही मानना चाहिए। इस प्रकार का हृदय को आघात पहुंचाने | वाला वचन नहीं बोलना चाहिए। ऐसे वचन बोलने से नरकगति होती है। लोकश्रुति से तथा अन्य शास्त्रों से भी ऐसा सुना जाता है कि दूसरे को पीड़ा देने वाले चुभते वचन (जो वास्तव में असत्य का ही प्रकार है) बोलने से कौशिक नरक | में गया। कौशिक की कथा संप्रदाय परंपरा से इस प्रकार है
प्राणिघातक रूप असत्यवचनों से कौशिक को नरक प्राप्ति :
कौशिक नाम का एक धनिक तापस अपने गांव से संबंध तोड़कर गंगानदी के किनारे अकिंचन होकर रहता था। वहां वह कंदमूलादि का आहार करता था। लोगों में उसकी प्रसिद्धि (शोहरत ) अपरिग्रही, ममतामुक्त व सत्यवादी के रूप में हो गयी। एक बार उस तापस ने निकटवर्ती गांव को लूटकर आते हुए चोरों को देखा कि सर्प जैसे अपनी बांबी में घुसता है, वैसे ही वे चोर आश्रम के नजदीक वन की झाड़ियों में घुस गये। चोरों के पैरों के निशान के अनुसार गांव के लोग तापस के आश्रम में आये और तापस से पूछा - 'महात्मन् ! आप तो सत्यवादी है, बताइये वे चोर कहां गये?' धर्मतत्त्व के रहस्य से अनभिज्ञ कौशिक तापस ने कहा- 'इन घनी झाड़ियों में चोरों ने प्रवेश किया है।' यह सुनते ही शिकारी जैसे हिरणों पर टूट पड़ते हैं, वैसे ही वे चोरों पर टूट पड़े और उन्हें मार डाला। इसलिए दूसरे को पीड़ा पहुंचाने वाले तथ्य - वचन के रूप में असत्य बोलने से कौशिक तापस अपना आयुष्य पूर्ण कर नरक में गया । । ६१ । ।
थोड़ा-सा भी असत्यवचन अनर्थकारी होने से उसका निषेध करने के बाद अब बड़ा भारी असत्य बोलने वाले के लिए खेद प्रकट करते हैं
| | ११८ । अल्पादपि मृषावादाद् रौरवादिषु सम्भवः । अन्यथा वदतां जैनीं वाचं त्वहह का गतिः ||६२॥ अर्थ :- जरा-सा भी झूठ बोलने से जब नरकादि गतियों में उत्पन्न होना पड़ता है; अरे रे! तो फिर श्रीजिनेश्वरदेव की वाणी के विपरीत बोलने वालों की क्या गति होगी? ।। ६२ ।।
व्याख्या : - इस जगत् में जरा-सा लाभकारक थोड़ा-सा भी असत्य बोलने से मनुष्य रौरव, महारौरव आदि नरक
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