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स्वीकृति के बिना उसकी चीज उठा ले जाने वाला, चोर |
असम्मति: ( स्त्री० ) [ न० त०] 1. विमति, असहमति 2. अस्वीकृति, नापसंदगी |
असम्मोहः [ न० त०] 1. मोह का अभाव 2. अचलता, स्थैर्य, शान्तचित्तता 3. वास्तविक ज्ञान, सच्ची अन्तर्दृष्टि |
असम्यच् ( वि० ) [स्त्री० मीची ] [ न० त०] 1. बुरा, अनुचित, अशुद्ध 2. अपूर्ण, अधूरा ।
असलम् [ असु + कलच् ] 1. लोहा 2. अस्त्र छोड़ते समय
पढ़ा जाने वाला मंत्र 3. हथियार ।
असवर्ण ( वि० ) [ न० त०] भिन्न जाति या वर्ण का - अपि नाम कुलपतेरियमसवर्णक्षेत्रसंभवा स्यात् ----
श० १ ।
असह ( वि० ) [ न० ब० | 1. जो सहा न जाय, असह्य
अवीर 2. असहिष्णु ( प्रायः संब० के साथ कर्म ० के रूप में ) - सा स्त्रीस्वभावादसहा भरस्य मुद्रा० ४४१३ । असहन ( दि०) न० ब०] असहिष्णु, असहनशील,
ईर्ष्यालु नः शत्रु, नम् [ न० त०] असहिष्णुता, अधीरता, परगुणासनम् असूया । असहनीय, असहितव्य ) (वि० ) [ न० त०] जो सहा न जाय, दुःसह्, अक्षन्तव्य - असह्यपी भगवन्नृणमन्त्यमवेहि मे - रघु० १।७१, १८ २५, कु० ४। १ ।
असह्य,
असहाय ( वि० ) | न० ब० ] 1. मित्रहीन, अकेला, एकाकी 2. बिना संगी साथियों के मनु० ७।३०, ५५, 'ता, त्वम् अकेलापन, एकाकीपन । असाक्षात् ( अव्य० ) [ न० त०] 1. जो आँखों के सामने न हो, अदृश्य रूप से, अप्रत्यक्ष रूप से ।
असाक्षिक (वि० ) [स्त्री० की ] [ न० ब० ] 1. जिसका कोई गवाह न हो, बिना साक्ष्य के, जिसका कोई साक्षी न हो असाक्षिकेषु त्वर्थेषु मिथों विवदमानयोः
मनु ८।१०९ ।
असाक्षित् (वि० ) [ न० त०] 1. जो चश्मदीद गवाह न हो 2. जिसका साक्ष्य कानूनी दृष्टि से ग्राह्य न हो 3. जो किसी कानूनी दस्तावेज को प्रमाणित करने का अधिकारी न हो ।
असाधनीय ( वि० ) [ न० त०] 1. जो सम्पन्न न किया असाध्य जा सके, या पूरा न किया जा सके 2. जो
प्रमाणित होने के योग्य न हो 3. जिसकी चिकित्सा न हो सके ( रोग या रोगी ) - असाध्यः कुरुते कोपं प्राप्ते काले गदो यया शि० २८४ । असाधारण ( वि० ) [ न० त० ] 1. जो सामान्य न हों, असामान्य, विशेष, विशिष्ट, 2. (तर्क शास्त्र में ) जो सपक्ष या विपक्ष किसी में भी हेतु के रूप में विद्यमान
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न हो - यस्तुभयस्माद् व्यावृत्तः स त्वसाधारणो मतः 3. निजी, जिसका कोई और दावेदार न होणः तर्कशास्त्र में हेत्वाभास, अनैकांतिक के तीन भेदों में से एक ।
असाधु ( वि० ) [ न० त०] 1. जो अच्छा न हो, बुरा, स्वाद रहित, अप्रिय, -- - अतोर्हसि क्षन्तुमसाधु साधु वा - कि० ११४, 2. दुष्ट 3. दुश्चरित्र (अधि० के साथ) असाघुर्मातरि - सिद्धा० 4. भ्रष्ट, अपभ्रंश (शब्द) । असामयिक ( वि० ) [स्त्री० की ] [ न० त०] बिना अवसर का, जो ऋतु के अनुकूल न हो- कि० २।२४० ।
असामान्य ( वि० ) [ न० त०] 1. जो साधारण न हो, विशेष -- रघु० १५/३९, 2. असाधारण न्यम् विशेष या विशिष्ट संपत्ति ।
असाम्प्रत ( वि० ) [ न० त०] 1. अनुपयुक्त, अशोभन,
अनुचित - तम् ( अन्य ० ) अनुचित रूप से, अयोग्यतापूर्वक [ क्रियाविशेषण के रूप में बहुधा प्रयुक्त ] = असांप्रत - विषवृक्षोऽपि संवर्ध्य स्वयं छेतुमसाम्प्रतम्
कु० २।५५, सम्प्रत्यसाम्प्रतं वक्तुमुक्तं मुसलपाणिना - शि० २२७१, रघु० ८।६० ।
असार ( वि० ) [ न० ० ] 1. नीरस, स्वादहीन 2. ( क ) रसहीन, निरर्थक ( ख ) निकम्मा, अशक्त, सारहीन - असारं संसारं परिमुषितरत्नं त्रिभुनवम् - मा० ५१ ३०, उत्तर० १, असारे खलु संसारे सारमेतच्चतुष्टयम् - धर्म० १२।१३, 3. व्यर्थ, अलाभकर 4. निर्बल, कमजोर, बलहीन, बहूनामप्यसाराणां संहतिः कार्यसाधिका (समवायो हि दुर्जयः ) पंच० १ ३३१, शि० २।५०,- - रः, --- रम् | न० त०] 1. अनावश्यक, या महत्त्वहीन भाग 2. एरंड वृक्ष 3. अगर की लकड़ी । असारता [ असार + तल्+टाप् | 1. नीरसता, 2. निकम्मापन, 3. सारहीन प्रकृति, क्षणभंगुर अवस्था -- धिगिमां देहभृतामसारताम् - रघु० ८1५१ । साहसम् [ न० त०] बलप्रयोग का अभाव, सुशीलता । असि: [ अस्+इन् ] 1. तलवार 2 पशुओं की हत्या
करने वाला चाकू सि (अव्य० ) तू, तु० अस्मि । सम० -गंड: गालों के नीचे रखा जाने वाला छोटा तकिया, जीविन् तलवार ही जिसकी जीविका का साधन है, वेतन पाने वाला सैनिक योद्धा, दंष्ट्र:,
दंष्ट्रक: मगरमच्छ, घड़ियाल, दंतः घड़ियाल, - धारा तलवार की धार - सुरगज इव दन्तैर्भग्नदैत्यासिधारैः -- रघु० १०।८६ ४१, -- धाराव्रतम् 1. ( किन्हीं के मतानुसार ) तलवार की धार पर खड़े होने की प्रतिज्ञा ( दूसरों के मतानुसार ) युवती पत्नी के साथ रह कर भी उसके साथ मैथुन की इच्छा को दृढ़तापूर्वक रोकना - यत्रैकशयनस्थापि प्रमदा नोप
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