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कार गति, गोलाई में घूमना,-गुच्छः अशोक वृक्ष,। वाला 2. मंडलाकार, (पु.) 1. तेली 2. प्रभु, सम्राट ---ग्रहणम्,--णी (स्त्री०) दुर्गप्राचीर, परकोटा, 3. विष्णु का माम। - खाई,बर (वि०) वृत्त में घूमने वाला,-चूडामणिः | चक्राकी, चांडकी [ब० स०] हंसिनी। मकुट में लगी गोलमणि,-जीवकः, --जीविन् (पुं०) | चक्रिका [चक्र+ठन्- टाप् 1. ढेर, दल 2. दुरभिसंधि कुम्हार,-तीर्यम्-एक पुण्य स्थान का नाम, बंष्ट्रः | 3. घुटना। सूअर,-धरः 1. विष्णु का विशेषण---चक्रधरप्रभावः | चक्रिन (पु०) [चक्र+इनि] 1. बिष्णु का विशेषण-शि०
-रघु० १६.५५ 2. प्रभु, प्रान्त का राज्य पाल या १३।२२ 2. कुम्हार 3. तेली 4. सम्राट, चक्रवर्ती शासक 3. गाँव का कलाबाज या बाजीगर,-धारा राजा, निरंकुश शासक 5. राज्यपाल 6. गधा 7. चकवा पहिए का घेरा-नाभिः पहिए की नाह:- नामन् 8. संसूचक, मुखबिर 9. साँप 10 कौवा 11 एक प्रकार (पु.) 1. चकवा 2. लोहे की माक्षिक धातु,--- नायक: का कलाबाज या बाजीगर । 1. दल का नेता 2. एक प्रकार का सुगंध-द्रव्य,- नेमिः चक्रिय (वि०) [ चक्र+घ] गाड़ी में बैठ कर जाने वाला, पहिए की परिधि या घेरा-नीचर्गच्छत्यपरि च दशा यात्रा करने वाला। चक्रनेमिक्रमेण-भेष. १०९,--पाणि विष्णु का विशे-चक्रीवत (पू.) [चक्र+मतुप, मस्य वः, नि० चक्रस्य षण,-पादः,-- पावक: 1. गाड़ी 2. हाथी,~पाल: ___चक्रीभाव: ] गधा--शि० ५।८। 1. राज्यपाल 2. सेना के एक प्रभाग का अधिकारी।
चश् (अदा० आo-चष्टे) [ आर्धधातुक लकारों में 3. क्षितिज,-बन्धुः,... बान्धवः सूर्य,- बाल:---:,
अनियमित ] 1. देखना, पर्यवेक्षणा करना, प्रत्यक्षज्ञान --वाल:--लम्,--उम् 1. वृत्त, मंडल 2. संग्रह, वर्ग,
प्राप्त करना 2. बोलना, कहना, बतलाना (संप्र० के समुच्चय, राशि-करवचक्रवालम् --भर्तृ० २१७४
साथ), आ--, बोलना, घोषणा करना, वर्णन करना, 3. क्षितिज, (लः) 1. पुराणों में वणित एक पर्वत
बयान करना, बतलाना, पढ़ाना, समाचार देना (संप्र. शृंखला जो भमंडल को दीवार की भांति घेरे हुए
के साथ)- रघु०५।१९, १२१५५, मनु० ४।५९, ८०, तथा प्रकाश व अंधकार की सीमा समझी जाती हैं
इत्याख्यानविद आचक्षते---मा०२२, कहना, संबोधित 2. चकवा,- भूत् (पुं०) 1. चक्रधारी 2. विष्णु का
करना-भामि० ११६३ 3. नाम लेना, पुकारना, नाम,-भेदिनी रात, भ्रमः,-भ्रमिः (स्त्रो०) खराद
परि-., 1. घोषणा करना, वर्णन करना 2. गिनना सान—आरोप्य चक्रभ्रमिमुष्णतेजास्त्वष्ट्रब यत्नोल्लि
3. उल्लेख करना 4. नाम लेना, पुकारना-वेदप्रदानाखितो विभाति रघु० ६।३२, मण्डलिन् (पुं०)
दाचार्यं पितरं परिचक्षते - मनु० ॥१७१, भग० सांप की एक जाति,--मुखः सूअर, यानम् पहिये से
१७।१३, १७, प्र-, 1. कहना, बोलना, नियम बनाना चलने वाला वाहन,--रवः सूअर, --तिन् (पुं०)
-स्वजनाश्रु किलातिसंततं दहति प्रतमिति प्रचक्षते-रघु० .1 सम्राट्, चक्रवर्ती राजा, संसार का प्रभु, समुद्र तक
८1८६ 2. नाम लेना, पुकारनायोऽस्यात्मनः कारफैले राज्य का स्वामी (आसमुद्रक्षितीश-- अमर०)
यिता तं क्षेत्रज्ञं प्रचक्षते --- मनु० १२११२, २०१७, पुत्रमेवं गुणोपेतं चक्रवर्तिनमाप्नुहि--'श० १११२, तव
३१२८, १०।१४, प्रत्या-त्याग देना, छोड़ देना, तन्वि कुचावेतौ नियतं चक्रवतिनी, आसमुद्रक्षितीशोऽ
पीछे हटा देना, व्या-, व्याख्या करना, टीका टिप्पण पि भवान् यत्र करप्रद:---उ.दूट; (जहाँ 'चक्रवर्तिन्'
करना। शब्द में श्लेष है, वहाँ दूसरा अर्थ है 'आकार प्रकार
चक्षस् (पुं०) [ चश् + असि ] 1. अध्यापक, धर्म-विज्ञान में चकवे से मिलता जुलता' 'गोल'),-बाकः (स्त्री०
का शिक्षक, दीक्षागुरु, आध्यात्मिक गुरु 2. बृहस्पति का -की) चकवा-रीभूते मयि सहचरे चक्रवाकीमि
विशेषण। बैकाम् – मेष० ८३,-बाट: 1. सीमा, हद 2. दीवट
घष्य (वि०) [ चक्षुषे हितः स्यात् . चक्षुस्+यत् ] 3. कार्य में प्रवृत्त होना,-बातः बवंडर, तूफान-आंधी,
1. मनोहर, प्रियदर्शन, सुहावना, सुन्दर 2. आँखों के .-वृद्धि ब्याज पर ब्याज, चक्रवृद्धि ब्याज--मनु० ८.
लिए हितकर, -- ज्या प्रियदर्शन या सुन्दरी स्त्री। १५३, १५६,--म्यूहःसैन्यदल की मंडलाकार स्थापना, -संहम् रांय, (ल.) चकवा,-साहयः चकवा, हस्तः
चक्षुस् (नपुं०) [चक्षु-+ उसि ] 1. आँख, दृश्यं तमसि न विष्णु का विशेषण ।
पश्यति दीपेन बिना सचक्षुरपि-मालवि० ११९, कृष्ण
सारे ददच्चक्षुः श० ११६, तु० घ्राणचक्षुस, ज्ञानचक्षुस्, पा (वि०) [ चक्रमिव कायति-- के+क] पहिये के
नयचक्षुस्, चारचक्षुस् आदि शब्दों की 2. दृष्टि, आकार का, मंडलाकार,--क: (तर्क०) मंडल में तर्क
दर्शन,, नजर, देखने की शक्ति-चक्षुरायुश्चव प्रहीकरना।
यते- मनु० ४।४१, ४२। सम-गोचर (वि.) पावत् (वि०) [ चक्र-+-मतुप्; मस्य वः ] 1. पहियों दृश्य, दृष्टिगोचर, दृष्टि-परास के अन्तर्गत होने वाला,
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