________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कार्यान्वयन-कुरु मम वचनं सत्वररचन--गीत / नगण्य है, इस शब्द का प्रयोग किया जाता है,-वर्श५, रघु० 10 // 77 4. साहित्यिक रचना या सजन, नम् प्रथम बार रजोधर्म का होना, सबसे पहला निर्माण, संरचना-संक्षिप्ता वस्तु रचना-सा० द. रजःस्राव,-बन्धः रजोधर्म का बन्द हो जाना,-रसः 422 5. बाल संवारना 6. सैन्यव्यहन 7. मन की | अन्धेरा,-- शुक्षिः रजोधर्म की विशुद्ध दशा, - हरः सृष्टि, कृत्रिम उद्भावना। 'मल हटाने वाला' घोबी।। रजः दे० रजस् / रजसानुः [ रज्यतेऽस्मिन्-र +असानु ] 1. बादल रजकः [ र + वुल, नलोपः ] धोबी। 2. आत्मा, दिल। रजका,-को [ रजक+टाप्, ङीष् वा ] धोबन / रजस्वल (वि०) [ रजस्+वलच् ] 1. मैला, घूल से भरा रजत (वि.) [ रन्ज्+अतच, नलोपः ] 1. चांदी के रंग हुआ-रघु०११४६०, शि० 17161, (यहां इसका का, चाँदी का बना हुआ 2. उज्ज्वल-तम् 1. चाँदी अर्थ 'रजोधर्म में होने वाली' भी है) 2. आवेश या -शुक्ती रजतमिदमिति ज्ञानं भ्रमः कि० 5/41, संवेग से भरा हुआ-मनु० ६७७,-लः भैंसा,--ला नै०२२२५२ 2. स्वर्ण 3. मोतियों का आभूषण या 1. रजस्वला स्त्री-रजस्वला: परिमलिनांबरश्रियः माला 4. रुधिर 5. हाथी दांत 6. नक्षत्रपुंज, तारा -शि० 1761, याज्ञ० 31229, रघु० 11160 समूह। 2. विवाह के योग्य कन्या। रजनिः, जी (स्त्री०) [ रज्यतेऽत्र, रज+कनि वा ङीप्] रज्जुः (स्त्री०) [ सज्+उ, असुमागमः धातोस्सलोपः, रात-हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरा- आगमसकारस्य जश्त्वं दकारः, तस्यापि चुत्वं जकार:] मम्-गीत० 5 / सम० - करः चन्द्रमा - चरः रात 1. रस्सा, डोरी, सुतली 2. कशेरुका स्तम्भ से निकको घूमने वाला, पिशाच, बेताल,-जलम् ओस, धुन्ध, लने वाली स्नाय 3. स्त्रियों के सिर की चोटी। -पतिः,-रगणः चन्द्रमा,-मुखम् सन्ध्या, सायं- सम० -बालकम एक प्रकार का जंगली मग, इसी काल। प्रकार रज्जुबालः,—पेड़ा सुतली से बनी हुई टोकरी / रजनिमन्य (वि०) (वह दिन) जो रात जैसा बीते या रंज (म्वा० दिवा० उभ०-रजति-ते, रज्यति-ते, रक्त, रात जैसा दिखाई दे --भट्टि०७।१३ / कर्मवा० रज्यते, इच्छा०रिरक्षन्ति) 1. रंगे जाने के रजस (०)रज+असून, नलोप:] 1. घल, रेण, गर्द- योग्य, लाल रंग से रंगना, लाल होना, चमकना,- कोप धन्यास्तदङ्गरजसा मलिनीभवन्ति --श० 7.17, ... रज्यन्मुखश्री:- उत्तर०५।२, नेत्रे स्वयं रज्यतः-५।२६, आत्मोद्धतरपि रजोभिरलंघनीयाः . 128, रघु० / / नै० 33120, 7 / 60, 22152 2. रंगना, हलका रंग देना --42, 6 / 32 2. फूल की रेणु या पराग-भूयात्कृशे- रंगीन बनाना, रंगलेप करना 3. अनुरक्त होना, भक्त शयरजोमदुरेणुरस्याः पिंथाः)-श० 4 / 10, मेघ० बनना (अधि० के साथ) देवानियं निषघराजरुच३३,६५ 3. सूर्य किरणों में फैले हुए कण, कोई भी स्त्यजती रूपादरज्यत नलेन विदर्भसुभ्रः - नै०.१३३८. छोटा सा कण -तु० मनु०८।१३२, याज्ञ. 11362 सा० द० 111 4. मुग्ध होना, प्रेमासक्त होना, 4. जुती हुई भूमि, कृषियोग्य खेत 5. अन्धकार, स्नेह की अनुभूति होना 5. प्रसन्न होना, सन्तुष्ट होना, अन्धेरा 6. मलिनता, आवेश, संवेग, नैतिक या मान- खुश होना-प्रेर० (रंजयति-ते) 1. रंगना, हलका सिक अन्धकार-अपथे पदमर्पयन्ति हि श्रुतवन्तोऽपिर- रंगना, रंगीन बनाना, लाल करना, रंगलेप करना जोनिमीलिताः रघु० 9 / 74 7. सब प्रकार के भौतिक -सा रंजयित्वा चरणी कृताशी:-कु० 7.19, द्रव्यों के घटक गुणों अथवा तीन गुणों में से दूसरा 6 / 81, कि० 1140, 4 / 14 2. प्रसन्न करना, तृप्त -(दूसरे दो गुण हैं सत्त्व और तमस्, जीवजन्तुओं करना, मनाना, सन्तुष्ट करना ज्ञानलवदुर्विदग्धं में बड़ी भारी क्रियाशीलता का कारण 'रजस्' ब्रह्मा नरं न रंजयति-भर्तृ० 2 / 3 (इस अर्थ में रजसमझा जाता है, यह गुण मनुष्यों में बहुतायत से / पति' भी दे० कि०.६।२५) स्फुरतु कुचकुंभयोरुपरि पाया जाता है जैसे कि देवताओं में सत्त्व तथा राक्षसों मणिमंजरी रंजयतु तव हृदयेशम् -गीत० 10 में तमस् पाया जाता है), अन्तर्गतमपास्तं में रजसोऽपि 3. मेल करना, जीत लेना, सन्तुष्ट रहना मनु० परं तमः-कु० 6 / 69, भग० 6 / 27, मा० 1120 7 / 19 4. हरिण का शिकार करना (इस अर्थ में केवल 8. रजःस्राव, ऋतुस्राव - मनु० 4 / 41, 5 / 66 / / 'रंजयति'), अनु-, 1. लाल होना, शि० 967 सम० -गुणः दे० (7) ऊपर, तमस्क (वि.) रज 2. स्नेहशील होना, भक्त होना, अनुरक्त बनना, प्रेम और तम दोनों गुणों से प्रभावित, - तोकः,-कम्, करना, पसन्द करना (अधि० के साथ कर्म० के भी) ---पुत्रः 1. लोलुपता, लालच 2. 'जोश का पुतला' पंच० 11101, मनु० 31173 3. खुश होना-भग० यह प्रकट करने के लिए कि यह व्यक्ति तुच्छ है, 11136 अप-, 1. असन्तुष्ट होना, सन्तोषरहित होना, For Private and Personal Use Only