________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1043 ) त्कृष्ट, ..: 1. हानि, विनाश 2. अन्त 3. शेष, अव- / एक प्रकार की वीणा,---कर्मन् (नपुं०) (षट्कर्मन्) शिष्ट 4. मोक्ष। 1. ब्राह्मणों के लिए विहित छ: कर्तव्य--अध्यापनषट्क (वि.) [षड्भिः क्रीतम् --षष् +कन् / छः गुना, मध्ययनं यजनं याजनं तथा। दानं प्रतिग्रहश्चैव .... कम् छ: की समष्टि मासषट्क, उत्तर षट्क षट्कर्माण्यग्रजन्मनः मनु० 10 // 75 2. छः कर्म जो आदि। ब्राह्मण की जीविका के लिए विहित हैं....उञ्छं प्रतिषड्धा दे० षोढा / ग्रहो भिक्षा वाणिज्यं पशुपालनम्। कृषिकर्म तथा बण्डः [ सन्ड, पृषो० षत्वम ] 1. साँड़ 2. नपंसक चेति षट्कर्माण्यग्रजन्मन: 3. जादू के छः करतब (भिन्न-भिन्न लेखकों ने नपुंसकों के 14 से 20 तक शान्ति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेष, उच्चाटन तथा अनेक भेद लिखे हैं) 3. समूह, समुच्चय, संग्रह, ढेर, मारण 4. योगाभ्याससंबंधी छ: क्रियाएँ-धौतिर्वस्ती राशि, (इस अर्थ में नपुं० भी)--कलरवमुपगीते षट्- तथा नेती (नौलिको) बाटकस्तथा। कपालभाती पदोघेन धत्तः कुमुदकमलषण्डे तुल्यरूपामवस्थाम्-शि० चैतानि षटकर्माणि समाचरेत् // (पुं०) ब्राह्मण, 11115, तु० 'खंड' भी। -- कोण (वि.) (षट्कोण) 1. छ: कोणों से युक्त पण्डकः [ षण्ड+कन् ] नपुंसक, हिजड़ा। (णम्) 1. षड्भुज, छः कोनिया 2. इन्द्र का वज्र, पण्डाली [षण्ड+अल+अच्+ङीष् ] 1. तालाब, जोहड़ - गवम् (षड्गवम्) 1. छ: बैलों की जोड़ी 2. वह 2. व्याभचारिणी या असती स्त्री।। जुवा जिसमें छ: बैल जोते जायं (कभी कभी अन्य षष्ठः [ सन् ---ढ, पृषो० षत्वम् ] 1. नपुंसक, हिजड़ा, जानवरों के नाम पर) उदा० हस्ति, अश्व छ: -- याज्ञ० 11215 2. नपुंसकलिंग - - निवेश: शिविरं हाथी छः घोड़े आदि,-गुण (वि०) (षड्गुण) 1. छः षण्डे -अमर० / सम० ... तिलः बंध्य तिल, वह तिल गुना 2. छ: विशेषणों से युक्त (णम) 1. छ: गुणों जो उग न सके। का समुदाय 2. किसी राजा की विदेशनीति में प्रयोषष् (संख्या० वि०) [ सो+क्विप्, पृषो० ] (केबल क्तव्य छ: उपाय दे० 'गुण' के अन्तर्गत (21), ब०व० में प्रयुक्त कर्तृ० षट्, संबं० षण्णाम् ) छ:-मनु० तु० 'षागुण्य' के साथ भी, - ग्रन्थि (वि.) (षड्१।१६, 81403 / सम० अक्षीणः (षडक्षीणः) मछली, ग्रन्थि) पिप्परामूल, प्रन्यिका (षटप्रन्थिका) शटी, -अङ्गम् समष्टि रूप से ग्रहण किये गये शरीर के छ: आमाहल्दी,..चक्रम् (षट्चक्रम् ) शरीर के छः भाग--जंघे बाहू शिरोमध्यं षडङ्गमिदमुच्यते रहस्यमय चक्र (मूलाधार, अधिष्ठान, मणिपूर, अना2. वेद के छः अंग सहायक भाग,-शिक्षा कल्पो हत, विशुद्ध और आज्ञा),-चत्वारिंशत् (षट्चत्वाव्याकरणं निरुक्त छन्दसां चितिः / ज्योतिषामयनं रिंशत्) छयालीस,--चरणः (षट्चरणः) 1. मधुमक्खी चैव षडलो वेद उच्यते, दे० 'वेदांग' भी 3. छ: शुभ 2. टिड्डी 3. जू,--जः (षड्जः) भारतीय स्वरग्रामवस्तुएँ -अर्थात् गोमाता से प्राप्त छ: पदार्थ-गोमूत्र के सात प्राथमिक स्वरों में से चौथा स्वर (कुछ के गोमयं क्षीरं सपिर्दघि च रोचना। षडंगमेतन्मांगल्यं अनुसार पहला) क्योंकि यह स्वर छ: अंगों से व्युत्पन्न पठितं सर्वदा गवाम् - अघ्रिः (षडघ्रिः ) भौंरा, है नासांकठमुरस्तालु जिह्वां दन्तांश्च संस्पृशन / --अधिक (वि.) (षडधिक) वह जिसमें छः अधिक षड्जः संजायते (षड्भ्यः संजायते) यस्मात् तस्मात् हों, .. मा० ५.१,-अभिज्ञः (षडभिज्ञः) देवरूप बौद्ध षड्ज इति स्मृतः, कहते हैं कि मोर के स्वर से यह स्वर महात्मा, अशीत (वि०) (षडशीत) छ्यासीवां, मिलता-जुलता है, --षड्ज रौति मयूरस्तु - नार० --अशीतिः (स्त्री०) (षडशीतिः) छयासी,-अहः षड्जसम्वादिनी: केका: द्विधा भिन्ना: शिखण्डिभिः (षडहः) छ: दिन का समय या अवधि, आननः - रघु० ११३९,-त्रिंशत् (स्त्री०) (षट्त्रिंशत्) -वक्त्रः,-वदनः (षडाननः, षड्वक्त्रः, षड्वदनः) छत्तीस ( षत्रिंश ) ( वि०) छत्तीसवाँ,--दर्शनम् कार्तिकेय के विशेषण -षडाननापीतपयोधरासू नेता (षड्दर्शनम् ) हिन्दू दर्शन के छ: मुख्य शास्त्र चमूनामिव कृत्तिकासु-रघु० 14 / 22, -- आम्नायः -- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और (षडाम्नायः) छ: तन्त्र, ऊषणम् (षषणम् ) समष्टि वेदान्त,-दुर्गम् (षड्दुर्गम) छ: प्रकार के गढ़ों की रूप से ग्रहण किये हुए छ: मसाले-पंचकोलं स मरिचं समष्टि - धन्वदुर्ग महीदुर्ग गिरिदुर्ग तथैव च / षडूषणमुदाहृतम्,.. कर्ण (वि०) (षटकर्ण) छ: कानों मनुष्यदुर्ग मददुर्ग वनदुर्गमितिक्रमात् नवतिः से सुना गया, अर्थात् वक्ता और श्रोता के अतिरिक्त (षष्णवतिः) छयानवे, ... पञ्चाशत् (स्त्री०) (षटकिसी तीसरे व्यक्ति द्वारा भी सुना गया, एक से पञ्चाशत्) छप्पन, पवः (षट्पदः) 1. भौंरा-न पङ्कजं अधिक श्रोताओं को सुनाया गया (परामर्श, भेद तद्यदलीनषट्पदं न षट्पदोऽसौ न जुगञ्ज यः कलम् आदि)-षटको भिद्यते मन्त्रः पंच. 199, (णः) -भट्टि० 2 / 19, कु० 5 / 9, रघु 6169 2. जू For Private and Personal Use Only