________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1208 ) -सूनुः स्कन्द, तु० अग्निभू सेनानीरग्निभर्गहः हटाने वाला बेलचा,---कर्करि (री) जलते हुए कोयलों ---अम०,-होत्री (स्त्री०) अग्निहोत्र के लिए उप- पर पकी मोटी रोटी, वाटी, धारिका अंगीठी, युक्त गाय-तामग्निहोत्रीमृषयो जगृहुर्ब्रह्मवादिनः -वृक्षः रक्तकरंजवृक्ष, करौंदा। -भाग०८1८।२। अङ्गिकरणिकः [ष० त० संभवतः अभिलेखाधिकारी, अग्न्या तित्तिर नाम का पक्षी। (आजकल के Oath Commissioner) जैसा पद) अग्रः [अङग्+रक, लोपः ] पहाड़ की नोक या अगला पञ्जीकार। भाग - अग्रसानुषु नितान्तपिशङ्गः - कि० 9 / 7, अग्रम् / अङ्गिका [अङ्ग+इनि+क+टा] चोली, अंगिया / समय का पूर्ववर्ती भाग नवेह किंचनाग्र आसीत् / अङगलीवेष्टः अङ्गुलि / वेष्ट्-/- घज्ञ | अंगठी / - बृ० 1 / 2 / 1 / सम० - आसनम् सम्मान का प्रथम | अघो (अ.) क्रोध या शोकद्योतक अव्यग। पद,-उत्सर्गः वस्तु का पहला अंश छोड़ कर उसे अङ्करि (नपुं०) [अडच / किन] 1. पैर 2. किसी भी वस्तु ग्रहण करना,--देवो पटरानी, अग्रमहिषी,-धान्यम् का चतुर्थांश / सम० कवचः जता,-जः शद,-पान अनाज, गल्ला,--निरूपणम्, भविष्य कथन, भविष्य (वि०) पर का अंगूठा चूसने वाला बच्चा, सन्धिः वाणी करना, पूर्ण निर्णय,-प्रदायिन् जो सबसे पहले | टखना, गिट्टे की हड्डी / देता है-तेषामग्रप्रदायी स्याः कल्पोत्थायी प्रियंवदः / अघ्रिकवारि(नपं०) दीपक के मध्य का उभरा हुआ भाग, - महा० ५।१३५।३५,-भावः पूर्ववर्तिता, -- वक्त्रम् ! दीप दण्ड / शल्योपयोगी उपकरण,--हारः ब्राह्मणों की बस्ती अचिन्त्यः [न० त० चिन्त+यच] पारा, पारद / जिसके एक ओर शिव का तथा दूसरी ओर विष्ण का अचोदनम नि० त० चद-+-णिच यच] अध्यादेश, निदेशामन्दिर हो, हरेः अयं हारः, हरस्यायं हारः, हारश्च / भाव-देशकालानामचोदनं प्रयोगे नित्यसमवायात्-मी. हारश्च हारो-यस्य सः। सू० 42 / 23 / अग्र्या [ अग्रे जातः, अग्र+यत्-+ टाप् ] आँवले का वृक्ष। | अच्छ (अ०) प्राप्ति के भाव को द्योतन करने वाला अव्यय, अघन (वि.) [न० त०] जो घना या ठोस न हो। अच्छशब्दो हि आप्तमित्यर्थे वर्तते मै० सं० 10 / 119 अडू+अङ्कम् (अङ्काङ्कम्) [ अक कर्तरि करणे वा पर शा. भाः। अच, अङ्के मध्ये अङ्काः शतपत्रादि चिह्नानि यस्य / अच्युतजल्लकिन् (पुं०) अमरकोश के एक टीकाकार का -ता०] पानी, जल। नाम। अङ्ककारः [ अङ्क+कारः ] सर्वोत्तम योद्धा, त्वत्का कार- अजमीढः [अजो मीढो गजे सिक्तो यत्र, ब०] सुहोत्र के एक विजये तव राम लङ्का'' 'बा० रा० आठवाँ अंक, पुत्र का नाम, यह ऋ० 4 / 43 सूक्त कापि हुआ है। गौरगुणरहंकृतिभृतां जैत्राङ्ककारे-नै० 12164 / अपनयोनिजः दक्ष प्रजापति-भाग० 4 / 30 / 48 / / अजित (वि.) [अङक---क्त ] चिह्नित, छाप लगा हुआ, | अजनाभः भारतवर्ष का प्राचीन नाम भाग०११।२।२४ / गणना किया हुआ, क्रमांकित रावणशराङ्कितकेतु- | अजरकः-कम् [न० ब०] अजीर्ण, अपच / यष्टि रघु० 12 / अजहत्स्वार्थवत्तिः [न जहत्स्वार्थो यत्र, हा+शत, न० ब० अङ्गम् [अम्+गन् ] जैन धर्मावलंबियों का प्रधान धामिक वह शब्द जो अपने भाव को सुरक्षित रखता हुआ ग्रन्थ / सम०-- क्रमः वह क्रम या नियमित व्यवस्था ___ समस्त पद के अर्थ में कुछ वृद्धि करता है। जिसके अनुसार कर्मकाण्ड की नाना प्रकार की अजादिः पाणिनि का एक गण। प्रक्रियायें अपने-अपने महत्त्व के अनुसार सम्पन्न की | अजितकेशकम्बल: पाखण्डी या विधर्मी अध्यापक जिसका जाती हैं,-मै० सं० 5 / 1 / 14, जम् रुधिर,-भङ्गः बौद्धग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। शरीर का वह भाग जो गुदा और अंडकोषों का अज्ञातमस्तुशास्त्रम् पाखण्ड प्रतिपादक शास्त्र / मध्यवर्ती है,--भूमिः चाकू या तलवार का फलका अञ्जकः विप्रचित्ति के पुत्र का नाम-वि०प० / यदङ्गभूमी बभतुः--नै० 16 / 22, -वस्त्रोत्था अञ्जलिका [अञ्जलिरिव कायते के+क, टांप] मकड़ी युका, जू,-- संहिता शब्द के अन्तर्गत स्वर और। से मिलता-जुलता एक कीड़ा। सम० वेधः एक प्रकार व्यंजनों का उच्चारणविषयक सम्बन्ध,-तै० प्रा०, का युद्धकौशल-जानन्नञ्जलिकावेधं नापाकामत पाण्डवः -सुप्तिः शरीर के अङ्गों का सो जाना। -महा० 7 / 26 / 23 / / अङ्गना [अङ्ग+न+टाप] प्रियंग नामक पौधा जिससे | अजिकः यदु के एक पुत्र का नाम / सुगंधित द्रव्य या अभ्यंजन तैयार किए जाते हैं। अञ्जिहिषा [अंह का सन्नन्त रूप अंह - सन्+टाप्] अङ्गार:-रम् [अङ्ग+आरन जलता हुआ कोयला / सम० | जाने की इच्छा भट्रि।। -अवक्षेपणम् कोयलों को बुझाने या इधर से उधर | अट्टाल (वि०) [अट्ट-+-अल+अच्] ऊँचा, उत्तुंग / For Private and Personal Use Only