Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 1289
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1280 ) प्रौहिक (वि.) द्रोह+ठक सदैव धूणा का पात्र की भ्रान्ति,-जः ब्रह्मचारी, जातिः जिसके दो द्वनम् द्विौ दो सहाभिव्यक्ती-द्विशब्दस्य द्वित्वं पूर्वपदस्य पत्नियाँ है, फालबद्धः 1. दो ओर बंटे बाल अम्भावः, उत्तरपदस्य नपुंसकत्व-नि०] एक ओर, 2. जिसने अपने बालों को कंघी करके दो भागों में एकान्त स्थान, द्वन्द्वे ह्येतत् वक्तव्यम् रा. 7 / / बाँट दिया है, बाहुः मनुष्य कथा० 53 / 94, १०३।१३,-आलापः दो व्यक्तियों के मध्य वार्तालाप, -भातम् संध्या समय,- मुनि (अ०) दो मुनि --गर्भ (वि.) बहुव्रीहि समास जिसके मध्य द्वन्द्व ---पाणिनि और कात्यायन, वक्त्रः दो मुंह वाला निहित हो,--दुःखम् हर्ष और शोक आदि की परस्पर सांप,.. वर्गः प्रकृति और पुरुष का जोड़ा, व्याम विरोधी भावनाओं से उत्पन्न दुःख / (वि०) बारह फुट लम्बा (व्याम- 6 फुट),--स्थ, द्वार्ग (वि.) [द्वार+ग] दरवाजे पर खड़ा हुआ। (-2) (वि०) दो अर्थ प्रकट करने वाला-भवन्ति च द्वारम् [+णिच् + अच्] 1. दरवाजा 2. प्रवेश द्वार | द्विष्ठानि वाक्यानि मी०सू०४।३।४ पर शा० भा०। 3. शरीर के नौ द्वार। सम-बाहः (पुं०) चौखट, | द्विक (वि.) [द्वि+क] 1. दोहरा, दो तह का 2. दूसरा -अररिः किवाड़ का पट या पल्ला, वंशः सरदल / 3. दूसरी बार घटित होने वाला,-क: 1. कौवा हि (सं वि०) +डि] दो। सम० अन्तर (वि०) दो 2. चक्रवाक पक्षी / सम---पष्ठः दो कूब वाला ऊँट / घटकों द्वारा अन्तरित, अवर (वि.) न्यूनातिन्यून | द्वितीयगामिन् (वि.) जो दूसरे पदार्थ पर घटता हो दो,-आम्नात (वि०) दो बार वणित,- आहिक द्वितीयगामी न हि शब्द एष नः रघु० 3.49 / (वि०) हर तीसरे दिन होने वाला (बुखार) द्वेषस्थ (वि०) घृणा करने वाला। -एकान्तरम् एक अंश या दो अंश से वियुक्त द्वय-द्वीपवासिन् (वि०) टापू पर रहने वाला,-.सी (पु.) कान्तरासु जातानां धयं विद्यादिमं विधिम-मनु० खजरीट पक्षी। १०७,-कर (वि०) दो प्रयोजन पूरा करने वाला, वेषीकरणम् (नपुं०) दो भाग करना / -कार्षापणिक (वि०) दो कार्षापण के मूल्य का, हकाल्यम् (वि० सद्यस्कालता, ऐककाल्य) दो दिन तक - चन्द्रधाः आख म खराबी के कारण दा चन्द्रदर्शन / अनुष्ठान चलते रहने की विशेषता। पगिति (अ.) एक क्षण में, अकस्मात् / भरणीतलम् [10 त०] धरती की सतह / भनम् [धन्+अच् ] 1. सम्पत्ति, दौलत, कोष, रुपया पैसा धरणीविडोजः (पुं०) [ष० त०] राजा। 2. कोई भी मूल्यवान् सामान, प्रियतम कोष 3. लूट-: परा[ध-अच्+-टाप् ] पृथ्वी, धरती। सम०-उपस्थः मार का धन 4. पारितोषिक 5. धनिष्ठा नक्षत्र i (पु.) पृथ्वीतल, धरती की सतह / 6. जमा का चिह्न (विप० ऋण)। सम-आदानम धरित्रीमत् (पुं०) [ धरित्री+भ--क्विप] राजा / धन ग्रहण करना,---आशा (स्त्री०) घन की इच्छा / धर्मः [+मन् ] 1. किसी जाति के परम्परागत अनुष्ठान, --चाम्यम् रुपया पैसा तथा अनाज,-सूः (पुं०) 2. विधि, व्यवहार, प्रथा 3. नैतिक गुण 4. गण, सचाई द्विशाखी पूंछ वाला किरोला नामक पक्षी, मूः : 5. चार पुरुषार्थों में से एक 6. कर्तव्य 7. न्याय / (स्त्री०) वह माता जिसके कन्याएँ ही हों। सम०-- अक्षरम पवित्र मंत्र, आस्था का नियम, धनिन् (वि.) [धन+इनि] वैश्य जाति-- ऊरुजा / अपवेशः धर्मानुष्ठान का बहाना धर्मापदेशात् - बनिनो राजन-महा० 12 / 2966 / त्यजतश्च राज्यमरा० 5138, शयनम् विधि का धनुरासनम् (नपुं०) योगशास्त्र में वर्णित एक कायिक क्रम, अहन् (नपुं०) कल जो बीत चुका, आकमुद्रा। तम् रामायण की एक टीका का नाम,-ईप्सु (वि०) धनुर्पहम् (नपुं०) एक माप, 27 अंगुल को माप, एक धर्मलाभ प्राप्त करने का इच्छुक,- उपचायिन् (वि०) हस्तपरिमाण की माप / धर्मवृद्ध, घामिक,-छल: धर्म का कपटपूर्ण उल्लधन्वनम् [ धन्व् + ल्युट् ] 1. धनष 2. इन्द्रधनुष 3. धनु ! अघन, दक्षिणा धर्मशिक्षा का शुल्क, परिणाम: राशि। हृदय में सदाचरण का उद्बोधन, --प्रतिरूपक: कपटधमधमाय (ना.धा.) जगमगाना, निगल जाना। धर्म, छम धर्म,-प्रधान (वि.) पवित्राचरण में परः [1+अच् ] तलवार / सम.एम् (नपुं०) विष, मुख्य, प्रेक्य (वि.) धार्मिक, गुणी, बाह (वि.) जहर। धर्म से पराङ्मुख, धर्म विरोधी,-शुद्धिः आचरण की For Private and Personal Use Only

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