________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1304 ) प्रसवकाल: [प० त०] प्रसूतिकाल, बच्चा जनने का समय। लभ्ये - रघु० 112 / सम० - प्राकार (वि.) जिसकी प्रसूतिः [प्र-+-+क्तिन्) उद्भव, उत्पत्ति, कारण-कि० / ऊँची दीवारे हों।। 4 / 32 / प्राकारधरणी सि० त०] दीवार के ऊपर बना चबूतरा। प्रस (भ्वा० पर०) 1. विषण्ण होना (जैसा कि शरीर के प्राकारस्थ (वि.) [स० त०] जो फ़सील पर खड़ा हो। तीनों दोषों का) 2. अनुसरण करना 3. संप्रसारण प्राकृतमानुषः [क० स०] साधारण मनुष्य / अर्थात् अर्धस्वरों को उसके संवादी स्वर में बदलना। प्राक्तन (वि०) [प्राक + तन] 1. पुराना, पिछला, भत प्रसरः [प्र--स-+ अप] परास (जैसा कि 'दृष्टिप्रसर' में)। काल का 2. अतीत समय का, पहला, पहले जन्म का, प्रसारः[ प्रस-+-घा] 1. व्यापारी की दुकान 2.(धूल) नम् भाग्य / सग० कर्मन् (नपुं०) पूर्वजन्म में उड़ाना 3. फैलाव। किया गया कार्य, भाग्य,-जन्मन् (नपुं०) पूर्व जन्म / प्रसारितमात्र (वि.) [ब० स०] जिसके अंग बहुत फैले / प्रागल्भी प्रगल्भ++अण-डीप्] 1. साहस 2. दृढ़ता। हुए हों। प्रागल्भ्यम् (नपुं०) [प्रगल्भ--व्यञ] प्रगल्भता, वीरता प्रसृप (भ्वा० पर०) छा जाना, फैल जाना (जैसे कि चतुरता। सम० बुद्धिः (स्त्री०) निर्णय करने का अन्धकार)। साहस, न्याय-साहस / प्रस्कन्न (वि०) [प्र--स्कन्द / क्त ) आक्रान्त, जिसके प्रागुष्यम् [प्रगुण-|-व्या ] सही स्थिति, यथार्थ दशा, दिशा, ऊपर धावा बोला गया हो। अनुदेश। प्रस्तरप्रहरणन्यायः [प० त०] मीमांसा का व्याख्याविषयक | प्राणिका (स्त्रो०) अतिथि सत्कार, पाहनों का स्वागत। एक सिद्धान्त जिसके अनुसार करण द्वारा प्रतिपादित | प्राच् (वि.) [प्र--अञ्च् + क्विन्] 1. सामने का, आगे विषयवस्तु की अपेक्षा कर्म द्वारा विहित वर्णन अधिक __ का 2. पूर्वी 3. पहला / सम० उत्पत्तिः (किसी रोग प्रबल होता है। का) पहला दर्शन, वचनम् प्राचीन उक्ति, पहले का प्रस्तावः [प्र- स्तु-+घञ] 1. व्याख्यान का विषय, शीर्षक कथन / 2. नाटक की प्रस्तावना 3. साम के परिचायक शब्द / प्राचार (वि०) सामान्य प्रथाओं के विरुद्ध, साधारण प्रस्तोतु (पुं०) [प्रस्तु+तृच्] उद्गाता की सहायता अनष्ठान और संस्थानों के विपरीत / करने वाला यज्ञीय पुरोहित, ऋत्विज / / प्राचार्यः (50) [प्रकृष्ट आचार्य:11. अध्यापक का अध्याप्रस्तोभः [प्र--स्तुभ् / धा] संदर्भ, उल्लेख-भाग पक 2. सेवानिवृत्त अध्यापक / 9 / 19 / 26 / | प्राचीनमल (वि.) वि० स० जिसकी जड़ें पूर्व दिशा की प्रस्थानम् [प्रस्थान ल्युट] 1. दर्शनशास्त्र की एक शाखा ओर मड़ी हुई हों। 2. धामिक भिक्षावृत्ति, प्रवज्या--सप्रस्थानाः क्षात्रधर्माः प्राच्यपदवत्तिः (स्त्री०) एक नियम जिसके अनुसार 'अ' विशिष्टाः महा० 12164122 / सम० मङ्गलम से पूर्व किन्हीं विशेष अवस्थाओं में 'ए' अपरिवर्तित यात्रा आरंभ करते समय माङ्गलिक प्रक्रियाएं। __ अवस्था में रहता है। प्रस्तवः [प्र+स्तु---अप] 1. धारा (जैसे कि दूध की) प्राच्यवृत्तिः (स्त्री०) एक प्रकार का छन्द / 2. [ब० व०] आँसू 3. मूत्र / प्राजापत्यम् [ प्रजापति+वा ] 1. प्रजननात्मक शक्ति प्रस्पधिन (वि.) [प्र+स्पर्धा - इनि] होड़ करने वाला, 2. एक यज्ञ का नाम / बराबरी करने वाला। प्राज्ञ (वि०) [प्रज एव-स्वार्थे अण्] 1. बुद्धिमान् 2. समझप्रस्फार (वि०) [++ स्फर्+घञ] सूजा हुआ, फूला दार, विद्वान्, जः (0) 1. बुद्धिमान् या विद्वान् 2. एक प्रकार का तोता 3. व्यक्तिगत बुद्धिमत्ता प्रहतमरज (वि.) [व० स०] जहाँ पर ढोल बजते हों। 4. परमेश्वर। ....संगीताय प्रहतमु रजा: मेघ / प्रहतिः [प्र+हन्न-क्तिन् आघात, चोप, थप्पड़ / प्राज्ञत्वम प्रा+तल, त्व, वा] बुद्धिमत्ता। प्रहा (जुहो० पर०) छोड़ देना, हार जाना / प्राणः --अन् घा] 1. जीवन, जान 2. आहार, प्रहि (स्वा० 120) मुड़ना, उन्मुख होना / अन्न / सम० कर्मन (नपं०) जीवन कार्य, परिक्षीण प्रहितगम (वि०) संदेश लेकर जाने वाला। (वि०) जिसके जीवन का अन्त निकट है, परित्राणम प्रहरणकलिका (स्त्री०) एक छन्द का नाम / किसी के जीवन की रक्षा करना, बचाना, वल्लभा प्रहारः [++घञ] 1. युद्ध 2. हार (गले में पहनने | प्राणप्रिया,- विद्या प्राणायाम को विद्या। का)। | प्रातः (अ०) [प्र.+ अ +अग्न] 1. पौ फटने पर, प्रभात प्रांशुः [ब० स०] लम्बे क़द का व्यक्ति, कद्दावर - प्रांशु- वेला में, तड़के, सवेरे 2. कल सवेरे / सम० अनुवाकः For Private and Personal Use Only