Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 1340
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1331 ) बनाया गया मिट्टी का ढेर 2. शरीर के कुछ भागों में | वस्यस् (वि०) 1. अत्युत्तम 2. अपेक्षाकृत धनवान्, सूजन 3. वाल्मीकि महाकवि / सम०-जः,-जन्मा | 3.श्रे यान्, अधिक समृद्ध(वेद०) -- श्रेयान् वस्यसोऽसानि ऋषि वाल्मीकि का विशेषण,-भौमम -राशिः बमी। / स्वाहा - ते० उ० / वल्लभगणिः कोशकार। वहा [ वह +अच् +टाप् ] नदी, दरिया। बल्लभजन: स्वामिनी, प्रिया। वहनभङ्गः [ष० त०] जहाज़ का टूट जाना। बायशः शाखा, टहनी --अब्यक्तमूलं भुवनाङ्ग्रिपेन्द्रमहीन्द्र- वहित्रम् [ वह + इत्र ] 1. किश्ती, पोत 2. चौकोर रथ, भोगैरविवीतवत्शम्---भाग० 38 / 29 / वर्गाकार या चतुष्कोण रथ / वशालोभः पालतु हथिनी को उपयोग में लाकर जंगली ह्रः [ बह+नि ] 1. अग्नि 2. जठराग्नि 3. पाचक हाथी को पकड़ने की रीति मात० 1017 / अग्नि 4. सवारी 5. यजमान 6. भारवाही जन्तु 7. तीन वशीकृत (वि०.) [बरा-च्चि+-+ क्त ] 1. अभिभूत की संख्या। सम०-- उत्पातः अग्निमय उल्का,-कोणः 2. वश में किया हुआ। दक्षिणपूर्वी दिशा-कोपः, दावाग्नि, पतनम स्वयं वशीभूत (वि०) [ वश+च्चि-+-भू-क्त ] आज्ञाकारी, अग्नि की चिता में बैठ कर आत्माहति करना-धीजम वश में हुआ। सोना,-मारकम् पानी, जल, शेखरम केसर, कुंकुम, वश्यम् [वश+ यत् ] 1. जो वश में किया जा सके जाफरान, संस्कारः दाहसंस्कार, अन्त्येष्टि क्रिया, 2. लौंग। ----साक्षिकम् अग्नि का साक्षी करके / वशना [ वश् +-युच्---टाप् ] एक प्रकार का कंठाभूषण, वह्निसात्कृ आग लगा देना, अग्नि में जला देना। हार। वा (म्वा० अदा० पर०) सूंघना / वषट्कृत (वि०) अग्नि में उपहृत-प्राज्यमाज्यमसकृद्वष-वाकोपवाकम् दो व्यक्तियों की बातचीत, वक्तृता और टुकृतम् शि० 14 / 25 / उत्तर / वसनम् [ वस्--ल्य] 1. घेरा 2. दालचीनी के वक्ष का वाकोवाक्यम् तर्क शास्त्र, न्यायशास्त्र / पत्ता 3. तगड़ी (स्त्रियों का एक आभूषण) 4. रहना, वाक्यम् [वच्+ण्यत्, चस्य कः ] 1. बक्तव्य 2. उक्ति निवास करना / सम०--सद्मन् तम्बू, टैंट / 3. आदेश 4. सगाई। सम०-आडम्बरः बड़े-बड़े वसन्तदूती कोयल। शब्दों से युक्त भाषा,-ग्रहः जिह्वा में लकवे का होना, वसामेहः [ष० त०] एक प्रकार का मधुमेह / -परिसमाप्तिः (स्त्री०) वक्तव्य की संपूर्ति,-विलेखः वसुः [ वस्+उन् ] 1. घी, घृत (जैसा कि 'वसोर्धारा' लेखाधिकारी, हिसाब-किताब रखने वाला अधिकारी, में), 2. धन, दौलत, रत्न, जवाहर 3. सोना 4. जल। .... सारथिः अधिवक्ता, किसी की ओर से बोलने सम० उत्तमः भीष्म,----धारिणी घरा, पृथ्वी, पालः ! वाला। राजा, भम् धनिष्ठा नक्षत्र, - रोचिस् अग्नि / वाग्मिन (वि.) [वाच+ग्मिन् चस्य कः तस्य लोपः] बसोर्धारा रुद्र के निमित्त किए जाने वाले यज्ञ के अन्त में 1 वाकपट 2. शब्दों से पूर्ण (पुं०) 1. वक्ता, बोलने उपहृत हदि की अनवरत धारा।। वाला 2. बृहस्पति 3. विष्णु 4. तोता।। वस्तिः (पुं०, स्त्री०) [वस्-+ति: ] 1. बसना, रहना | वाच (स्त्री०) [वच+क्विप, दीर्घः ] 1. वाणी की देवता 2. मूत्राशय 3. श्रोणि, पेडू / सम०-- कर्मन् (नपुं०) सरस्वती। सम०-- अपेत (वि.) गंगा,-आम्भ्रणी अनीमा करना, कोशः मूत्राशय,-बिलम् मूत्राशय 1. सरस्वती के प्रसाद को प्राप्त कराने वाले ऋग का विवर, छिद्र, रन्ध्र। मन्त्रों का समूह 2. एक वैदिक ऋषि का नाम, वस्तु (नपुं०) [ वस् + तुन् ] 1. वास्तविकता 2. चीज -- उत्तरम् वक्तव्य की समाप्ति या उपसंहार,--केलि, 3. धन-धान्य 4. सामग्री (जिससे कोई वस्तु बनाई –केली बुद्धि की चतुराई के युक्त वार्तालाप,-गुम्फः जाय 5. अभिकल्पना, योजना। सम० ...क्षणात् कोरी बातचीत,-जीवनः विदूषक, ठिठोलिया,-निमि(अ०) ठीक समय पर, तन्त्र (वि०) वस्तुनिष्ठ, तम किसी उक्ति से प्रबोधन या चेतावनी-तच्चाकर्ण्य विषयपरक, निर्देशः 1. विषय सूची 2. एक प्रकार वाङनिमित्तज्ञः पितरि सुतरां जीविताशां शिथिलीचकार की नान्दी,-पुरुषः नायक---अथवा सद्वस्तु पुरुष बहु- ---हर्ष० ५,-पयः वाणी का परास,-पाटवम् वाणी मानात् - विक्रम० ११२,--भावः वास्तविकता,- भूत की चतुराई, पारोणः अभिव्यक्ति के परास को पार (वि०) सारयुक्त, तथ्यपूर्ण, यथार्थ,-विनिमयः कर जाने वाला व्यक्ति, वाणी में पारङ्गत, --भटः अदल-बदल का व्यापार, ·-शक्तिस् (अ०) परि- (वाग्भटः) 1. आयुर्वेद विषय का प्रसिद्ध लेखक स्थितियों के कारण,--- शन्य (वि.) अवास्तविक, 2. अलंकार शास्त्र का एक प्रणेता, विद् (वि.) -स्थिति वास्तविकता / तर्क और युक्तियाँ देने में प्रवीण,-विनिःसत उक्तियों For Private and Personal Use Only

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