Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 1363
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1354 ) सर्पगतिः [ष० त०] साँप की चाल, (कुश्ती या मल्लयुद्ध प्रकार का नमक (अ.) के साथ, सहित / सम० में गति)। -अपवाद (वि०) असहमत होने वाला, आलाप: सर्पबन्धः कौशल, विधि, सूक्ष्मयुक्ति / समालाप, मिल कर बातचीत करना,---उत्थायिन् सर्व (सर्व०वि०)[ सतमनेन विश्वम्---स+व] 1. सब, (वि०) विद्रोही, षड्यन्त्रकारी, कतं (पुं०) सहकारी प्रत्येक 2. समस्त, सब मिल कर। सम०-अभावः -खट्वासनम् एक ही खाट पर मिलकर बैठना,--भावः सब का अनस्तित्व, सब की विफलता, अर्थचिन्तक: 1. साहचर्य 2. सहानुवर्तिता, संसर्गः शारीरिक महाप्रशासक,-अशिन् (वि०) सब कुछ खा जाने संपर्क। वाला,-अस्तिवादः एक सिद्धान्त जिसके आधार पर सहसादृष्ट: गोद लिया हुआ पुत्र / सभी वस्तुएँ वास्तविक मानी जाती है, काम्यः जिससे सहस्रम् [समानं हसति-हस्+र] 1. हजार 2. बड़ी सब प्रेम करें, वृश् (वि.) सब कुछ देखने वाला, संख्या। सम० -- अरः, 'अरम्, सिर की चोटी में --प्रथमम् (अ०) सबसे पहले,-वेशिन् (पुं०) नट, उलटे कमल के समान गत जो आत्मा का आसन नाटक का पात्र,-संस्थ (वि.) सर्वव्यापक.-सखः माना जाता है, गुः इन्द्र का विशेषण, सूर्य का पृषि-शान्तो यर्थक उत सर्वसखैश्चरामि--भाग० 10 // विशेषण,-दलम् कमल का फूल,-भोजनम् विष्णु 85 / 45, सम्पातः वह सब जो अवशिष्ट बचा है, के हजार नामों के पाठ करने के समान एक हजार ...- स्वारः एक वैदिक याग जिसमें असाध्य रोग से ब्राह्मणों को भोजन कराना (प्रायश्चित्त कर्म)। पीड़ित व्यक्ति के लिए आत्मवलिदान का निधान है। -भिद् (पुं०) कस्तूरी,-वेधिन् (पुं०) कस्तूरी सर्वत्रगत (वि.) सर्वव्यापक, विश्वव्यापी। सहायार्थम् (अ०) साथ के लिए, सहायता के लिए। सर्वथा (अ.) [सर्व + थाल् ] सब प्रकार से। सांवर्तक (वि०) प्रलय काल से संबंध रखने वाला। सलिलकर्मन् (नपुं०) जल से तर्पण। लांसगिक (वि.) [संसर्ग---ठच ] संसर्ग से उत्पन्न सलिलप्रियः सूअर / . छूत के (रोग)। सलिलरयः [ 10 त०] जल के प्रबाह की शक्ति / सांस्कारिक (वि०) [ संस्कार-1 ठन] 1. संस्कारों सवम् [सू-सु-1-अंच ] (वेद०) आदेश, आज्ञा / से संबन्ध रखने वाला 2. (आधुनिक बोल चाल सवनकर्मन् (नपुं०) नित्य होने वाला पुनीत वैदिक में) साँस्कृतिक। धर्मकृत्य-अग्निहोत्रादिक। साकमेधीयन्यायः मीमांसा का एक नियम जब कि विकृति सवर्ण (बि०),समान 'हर' वाली भिन्नराशि। में उसकी अपनी प्रकृति के गुण या धर्म नहीं पाये सविकार (वि.) 1. अपनी अन्य उपज सभेत 2. सड़ने ___ जाते . मी० सू० 5 / 1119-22 पर शा० भा०। वाला, जो सड़ गल रहा हो / साकृतस्मितम् सार्थक मुस्कराहट / सविततनयः [ष० त०] शनि ग्रह / साक्षादिक्रया अन्तर्ज्ञान परक प्रत्यक्षज्ञान / सवितृदेवतम् हस्त नक्षत्र / साक्षिपरीक्षा साक्षी का परीक्षण / सवितलक्षणम् (अ०) लज्जा के साथ, घबराहट या उलझन | साक्षिवादः साक्षिसिद्धान्त / के साथ। सागरमेखला पृथ्वी, धरती। सव्य (वि.) [सु-यत् ] अनभिघृत, जिस पर घी न / न सागरसुता लक्ष्मी।। छिड़का गया हो, शुष्क - मी० सू० 4 / 1 / 36 पर | सागरावर्तः समुद्र की खाड़ी। शा० भा०। साडूत्यम् [संकेत-व्यञ ] 1. सहमति 2. दतकार्य सव्यापसव्य (वि.) 1. वायाँ और दायां 2. तान्त्रिक 3. चिह्न, या उपनाम-साक्रेत्यं परिहास्यं बा..." पूजा की स्मार्त तथा कोल रीतियाँ--सव्यापसव्य- वैकण्ठनामग्रहणम भाग०६। मार्गस्था--- ललित०। साइन्स्यकारिका सांख्यदर्शन पर ईश्वर कृष्ण द्वारा रचित सशकः ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखने वाला। एक ग्रन्थ / सस्यपाल: खेत का रखवाला / सालोपाङ्ग (वि० ) अपने मुख्यं तथा सहायक अंगों सहित सस्यमञ्जरी अनाज की बाल। (वेद०]। सस्यवेदः कृषिविज्ञान / साचिध्याक्षेपः (अलं०) स्वीकृति के बहाने एक आक्षेपी। सस्यशकम् अनाज (गहूँ जौ आदि) का टूंड, अनाज की सातिशय (6i) अत्यधिक, श्रेष्ठतम / बाल। सात्म्य (वि०) स्वास्थ्यकर, प्रकृति के अनकल / सह (वि.) [सह --- अन् ] 2. धीर 2. सशक्त, हः | सात्म्य: 1. आदत, स्वभाव 2. प्रकृति के अनुकूल होने (पु.) मार्गशीर्ष का महीना, हम (नपुं०) एक का भाव / For Private and Personal Use Only

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