________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1310 ) : (बुध + 3. पुनीत बटवा पूर्ण ज्ञान ब्रह्मचर्य सावित्रं प्राजापत्यं च ब्राह्यं चाथ बहत्तथा अपराव,-कटः बड़ा विद्वान,-गीता (स्त्री०) ब्रह्मा -भाग० 3 / 12 / 42 / सम० - उत्तरतापिनी एक उप- का उपदेश जैसा कि महा० के अनुशासनपर्व में दिया निषद् का नाम,---तेजस् (पुं०)बहस्पति ग्रह,--देवता गया है, जिज्ञासा परमात्मा को जानने की इच्छा, वैदिक देवता विषयक एक ग्रंथ,-नारदीयम् एक उप- तन्त्रम् वेद की शिक्षा,---दूषक (वि.) बेद के निषद् का नाम,---संहिता वराहमिहिर रचित ज्योतिष मूलपाठ को दूषित करने वाला, पारः सब प्रकार का एक ग्रंथ,-सामन् सामदेव का एक मंत्र-भग० के पुनीत ज्ञान का अन्तिम उद्देश्य,--बलम् ब्रह्म१०॥३५ विषयक शक्ति,-बिन्दुः वेदपाठ करते समय मुख से बृहस्पतिचक्रम् (नपुं०) साठ वर्षों (संवत्सरों) का काल / निकली थूक की बूंद,भूमिजा एक प्रकार की बैल (वि.) [बिल-अण] बिलों में रहने वाला। मिर्च, ---मूहर्तः दिन का आरंभिक भाग, ब्राह्मवेला, बोक्काणः (पु०) घोड़े की नाक पर लटकता हुआ थैला ----रात्रः उषःकाल, - वादः परमात्मा से संबंध रखने जिसमें उसका खाद्य पदार्थ रक्खा रहता है। वाला व्याख्यान, - श्री एक साममंत्र का नाम / बोषायनः (पुं०) एक सूत्रकार का नाम / ब्रह्मण्यत् (पुं०) [ब्रह्मन् / मतुप्] अग्नि का विशेषण / बोषिः (बुध + इन्] 1. पूर्ण ज्ञान या प्रकाश 2. बौद्ध श्रमण ब्रह्मीभूतः (पुं० ) 1. जिसने ब्रह्मा के साथ सायुज्य प्राप्त की उज्ज्वल बुद्धि 3. पुनीत बटवृक्ष 4. मुर्गा 5. बुद्ध कर लिया है (यह संन्यासियों के विषय में कहा गया का विशेषण / सम०-अङ्गम पूर्ण ज्ञान प्राप्त है जो इस शरीर को त्याग देते हैं) 2. शङ्कराचार्य / करने के लिए अपेक्षित वस्तु। ब्राह्मनिधिः (पुं०) ब्राह्मणों, पुरोहितों तथा याजकों के बौखावतारः (पुं०) बुद्ध के रूप में भगवान का अवतार / लिए बनाई गई निधि। अनः (पुं०) 1. सूर्य 2. वृक्षमूल 3. दिन 4. आक या ब्राह्मण (वि.) [ब्रह्म वेत्त्यधीते वा ब्रह्म+अण्] 1. ब्राह्मण मदार का पौधा 5. सीसा 6. घोड़ा 7. शिव या विषयक 2. ब्राह्मण के योग्य 3. ब्राह्मण द्वारा दिया ब्रह्मा का विशेषण 8. तीर की नोक 9. एक रोग गया, 4. धर्म पूजा विषयक 5. ब्रह्म को जानने वाला का नाम / सम० --बिम्बन्,-मण्डलम्, सूर्यमण्डल। ----ण: 1. चारों वर्गों में से पहले वर्षों से संबद्ध ब्रह्मन् (नपुं०) [बंह+-मनिन, नकारस्याकारे ऋतोरत्वम] 2. (पुरुष के मुख से उत्पन्न) ब्राह्मण 3. पुरोहित 1. परमपुरुष, परमात्मा 2. अर्थवादपरक सूक्त 4. अग्नि का विशेषण 5. अट्ठाइसवाँ नक्षत्र,....णम् 3. पुनीत पाठ 4. वेद 5. पुनीत अक्षर ॐ-एकाक्षरं 1. ब्राह्मणसमाज 2. वेद का वह भाग जिसमें विभिन्न परं ब्रह्म मनु० 2 / 83 6. ब्राह्मणजाति 7. ब्राह्मण यज्ञों के अवसर पर सूक्तों के प्रयोग का विधान की शक्ति 8. धार्मिक तपश्चरण 9. ब्रह्मचर्य, सतीत्व विहित है, यह मन्त्रभाग से बिल्कुल पृथक् है। सम० 10. मोक्ष 11. वेद का ब्राह्मणभाग 12. चन 13. आहार -- अदर्शनम् ब्राह्मण भाग में विहित निर्देश का अभाव 14. सचाई 15. ब्राह्मण 16. ब्राह्मणत्व 17. आत्मा / ---मनु० १०॥४३,--प्रसङ्गः 'ब्राह्मण' नाम,--प्रातिसम-किल्विषम् ब्राह्मणों के प्रति किया गया / वेश्यः पडौसी ब्राह्मण,-भावः ब्राह्मण होने की स्थिति। भक्तम् [भए चावल 4. अनाज पारिश्रमिक 8. एक में किया जा सके / बाने के योग्य, भोजन भवतम् [भज+क्त] 1. भाग, अंश 2. आहार 3. भात, भक्ति से पहँचा जाय,-- गन्धि (वि.) जिसमें भक्ति की गन्धमात्र हो अर्थात् थोड़ी भक्ति वाला हआ अन्न 6. पूजा, अर्चा 1. वेतन, पारिश्रमिक 8. एक व्यक्ति,- वश्य (वि.) जो भक्ति के द्वारा दिन का भोजन-यस्य वार्षिक भक्तं पर्याप्तं भृत्यवृत्तये -मनु० 117 / सम०--अग्रः, अग्रम् उपा-: भक्ष्य (वि.) [भक्ष+ण्यत्] खाने के योग्य, भोजन के हारशाला, जलपानगृह, कृत्यम् भोजन की तैयारी लिए उपयुक्त,-क्ष्यम् (नपुं०) 1. खाने का पदार्थ, -साधनम् दाल की तश्तरी, सिक्यम् भात का आहार,---भक्ष्यभक्षकयोः प्रीतिविपत्तेरेव कारणम्-हि० मांड। 1155 2. जल / सम०-अभक्ष्यम् अनुमत और भक्तिः (स्त्री०) [भ+क्तिन] 1. विभाजन 2. गौण निषिद्ध भोजन,-भोज्यम् सब प्रकार के भोजन अर्थ, आलंकारिक अर्थ 3. (किसी रोग के प्रति) / से युक्त। शरीर की उन्मुखता। सम-गम्य (वि.) जो भगः,गम् [भज्+घ] 1. सूर्य 2. चाँद 3. शिव का रूप भक्ति के द्वारा प्राप्त किया जा सके, जहाँ श्रद्धा और 4. सौभाग्य, प्रसन्नता 5. समृद्धि 6. यश, कीर्ति For Private and Personal Use Only