________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1296 ) संहिता कविता के चरणों का जोड़, हीनजलम पाणिविग्रहः [ष० ह.] सेना के पिछली ओर आक्रमण वह पानी जिसका कुछ अंश उबाला हुआ हो। करना। पादाकुलकम् (नपुं०) एक छन्द का नाम / पालनम् [ पाल+ल्युट् ] (शस्त्रों को शाण पर रख कर) पानीयपृष्ठजा (स्त्री०) मोथा नाम का घास जो पानी तीक्ष्ण-तेज करना। के किनारे उगता है। पालाशविधिः [पलाश+अण् तस्य विधिः ] ढाक की पान्थदुर्गा ( स्त्री० ) [ष० त०] मार्गव्यापिनी देवी लकड़ियों से मृतक का दाह संस्कार करना / आलिङ्गय नीत्वाकृत पान्य दुर्गाम् नै०२४।३७ / / पालिज्वरः (पुं०) एक प्रकार का बुखार / पाप (वि.) [पा+] 1. बुरा, दुष्ट 2. अभिशप्त, | पाल्लविक (वि०) [पल्लव+ठक विसारी, विसरण विनाशकारी, शरारत से भरा हुआ 3. नीच, शील, विच्यत / / अधम। सम वंश (वि०) नीच कुल में उत्पन्न, पायकमणिः (०)[ष० त०] सूर्यकान्त मणि / विनिग्रहः दुष्टता को रोकना,- शमन (वि०) पाप | पावकशिखः [ब० स०] जाफरान, अग्निशिख, केसर / कर्म को रोकने वाला। पावकाचिः (स्त्री०) 0 त०] अग्नि की ज्वाला। पायसपिण्डारकः (पुं०) खीर खाने वाला / पावित (वि.) [पू+णिच् + क्त ] पवित्र किया हुआ, पायितम् (नपुं०) उदकदान, उपहार में दिया गया जल। / स्वच्छ किया हुआ। पारः [पृ+घञ ] 1. नदी का दूसरा किनारा 2. पार पाय्य (वि.) [पू+णिच् ---ण्यत् ] पवित्र किये जाने कर लेना 3. सम्पन्न करना 4. पारा 5. अन्त, किनारा योग्य / 6. संरक्षक तस्माद् भयाद येन स नोऽस्तु पार: | पाशिन् (पुं०) [पाश---इनि ] रस्सी, बेड़ी पाशीकल्प--भाग० 69 -24 2. अन्त - महिम्नः पारं ते मायतामाचकर्ष शि० 18.57 / -म० स्त०। सम०-नेत (वि०) जो किसी पाशुपतव्रतम् (नपु०) पाशपत सिद्धान्तों के लिए किया व्यकि को किसी कार्य में दक्ष बना देता है। ___गया उपवास, व्रत / पारतल्पिफम् [परतल्प+ठक् ] व्यभिचार / पिककूजनम् (ष० त०) कोयल की कूक / पारमार्थिकसत्ता (स्त्री०) परम सत्य का अस्तित्व / पिङ्गमूलः ब० स०गाजर / पारमिता [पारम् इतः प्राप्तः-पारमित- अलुक स पिङ्गालम् (नपुं०) गाजर / --स्त्रियां टाप् ] संपूर्ण निष्पत्ति, पूर्णता। पिच्छात्रावः (0) चिपचिपा थक / पारमेश्वर (वि.) [परमेश्वर+अण्] परमेश्वर से संबद्ध।। पिञ्जरिकम् (नपुं०) एक प्रकार का संगीत-उपकरण / पारम्पर्यक्रमः [परम्परा--ष्य ] परम्परा प्राप्त अनुक्रम। पिटङ्काशः (पुं०) एक प्रकार की छोटी मछली / पारषदम् (नपुं०) सदस्यता, किसी सभा का सदस्य पिठरपाकः (पु०) कार्यकारण का मेल / बनना। भाग०१।१६।१७।। पिठरी (स्त्री०) कड़ाही, जिसमें कुछ उबाला जाय / पारावतघ्नी (स्त्री०) सरस्वती नदी। पिण्ड (वि०) [ पिण्ड+अच्] 1. ठोस 2. सटा हुआ, पारिणामिक (वि.) [परिणाम+ठक ] 1. पचने के सघन / सम० अक्षर (वि.) संयुक्त व्यञ्जनों से योग्य, जो हजम हो सके 2. जिसमें विकार हो सके, युक्त शब्द, निवृत्ति सपिण्ड बन्धता की समाप्ति, परिवर्त्य / पितृयज्ञः अमावस्या को संध्यासमय पितरों के प्रति पारिपन्थिकः [परिपन्था+ठक ] चलती सड़के पर लूटने आहुति देना, विषमः (0) अपहरण की रीति, बाला, डाकू / गबन का तरीका-को० अ० 2 / 8 / 26 / / पारिप्लवदृष्टि (वि०) [ब० स०] चंचल आँखों वाला। पितुषणिः (पुं०) भोजन-प्रदाता (मोम का विशेषण)। पारिप्लवमति (वि.)बि. स. चंचल मन वाला। पितत्रयम् [ष० त०] पिता, पितामह तथा प्रपितामह / पारुषिक (वि.) [परष-+ठक ] कठोर, दारुण पितृवासरपर्वन् (नपुं०) पितरों की पूजा का शुभ समय / पार्यवसानिक (वि.) [पर्यवसान+8 ] समाप्ति के | पित्तम् [ अपि+दो+क्त, अपे: अकारलोपः ] एक तरल निकट आने वाला। पदार्थ जो शरीर के भीतर यकृत में बनता है / पावः (पुं०) [पर्श + अण ] 1. एक ऋषि, जैभियों के सम०-धर (वि०) पित्त प्रकृति का ब्यक्ति, -धरा 23 वें तीर्थंकर का विशेषण 2. पार्श्वभाग। सम. (स्त्री०) शरीर में पिनाशय / -अपवत्त (वि०) एक ओर को झुका हुआ (हीरे गिधातव्य (वि०) [ अपि+धा+तव्यत, अपेः अलोपः] का एक दोष), आतिः शरीर के पाश्र्वभाग में बन्द किए जाने के योग्य / पीडा, उपपीडम (अ०) (इतना हंसना कि जिससे), पिन्य (अ०) पहन कर / पार्श्वभाग दुखने लगे,-चकत्रः शिव का एक विशेषण / / पिन्यासः (पुं०) हींग / For Private and Personal Use Only