Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1299 ) बड़ी तीव्र पीड़ा,-गामिन् (वि०) स्वामिभक्त, अनुचर, प्रकरणम् [प्र--कृ+ ल्युट] प्रसंग। सम०---समः समान -तापः मध्याह्न, दोपहर, -भङ्गः युद्ध में लड़ने की| औचित्य और समान बल के दो तर्क। एक रीति / प्रकर्म (नपुं०) मैथुन, संभोग (जैसा कि कौ० अ० में पृष्ठयम् [ पृष्ठ+ यत् ] 1. मेरुदण्ड 2. सामसंग्रह। कन्याप्रकर्म)। पेचकः [प+बुन्, इत्वम् ] मार्ग में बना यात्रियों के लिए प्रकृतिः [प्र-++क्तिन्] परम पुरुष परमात्मा के आठ शरणगृह मान० / रूप-भग० 7 / 4 / सम-अमित्रः सामान्य शत्रु, पेट्टालः, लम् / टोकरी, पेटी। --कल्याण (वि०) नैसगिक सौन्दर्य से युक्त, पेट्टालकः,-कम् / स्वाभाविक सुन्दर,-भोजनम् यथाराति आहार, पेण्डः (पुं०) मार्ग, रास्ता / यथावत् भोजन / पेलिनी [पेल-इनि, स्त्रियां ङीप् ] गांठगोभी, पातगोभी। प्रकृतिमत् (वि०) [प्रकृति-- मतुप्] 1. नैसगिक, सामान्य पेशस् (नपुं०) [पेश-असिच्] 1. रूप 2. सोना 3. आभा 2. सात्त्विक वृत्ति का महानुभाव 02 / 121 / 4. सजावट। सम० कारिन् 1. भिरं 2. सुनार, प्रक्रिया [प्र+कृ-श] (आयु० में) योग, नुस्खा / --कृत् (पुं०) 1. हाथ 2. भिरै भाग० 7 / 1 / 28 / प्रकृष् (तुदा० पर०) वेग से खींचना / / पेशिः (स्त्री०) [ पिश् / इन् ] छाछ, तक। प्रकर्षः [प्र+कृष्+घञ] विश्वजनीन / पेषीकृ (तना० उभ०) कुचलना, पीस देना / प्रकर्षित (वि.) [प्र-+-कृष णिचक्त] फैलाया हुआ, पङ्गलः [पिङ्गल+अण् ] पिंगल का पुत्र या शिष्य। __ बाहर निकाला हुआ। पंङ्गलम् [ पिङ्गल+ अण् ] पिङ्गल मुनि कृत पुस्तिका। प्रक्रमः [प्र+क्रम् +घञ] चर्चा के बिन्दु पर पहुँचना / पैतापुत्रीय (वि.) [ पितापुत्र+छ ] पिता और पुत्र से सम०-निरुद्ध (वि०) आरंभ में ही रुका हुआ / संबंध रखने वाला। प्रक्षपणम् [+क्षि-+-णिच्-+ ल्युट, प्रगागमः] विनाश, पैप्पलादः [ पिप्पलाद---अण् ] अथर्ववेद की एक शाखा / -.-राज० / पैशुनिक (वि०) [पिशुन+-ठक्] मिथ्यानिन्दात्मक, अपवाद | प्रख्या [प्रन ख्या-+अ+टाप] उज्वलता, आभा, कान्ति / परक। प्रगुणीभू (प्रगुण+च्चि-भू भ्वा० पर०) अपने आपको पोतायितम् (नपुं०) [पू- तन् --पोत / क्यच-|-क्त योग्य बनाना, पात्रता प्राप्त करना। 1. शिशु की भाँति आचरण करना 2. होठ और ताल | प्रग्रहः प्रि-ग्रह-अप] 1. राजसभासदों को उपहार की सहायता से उच्चरित हाथी की चिंघाड़। / -कौ० अ०२।७।२५ 2. जोड़ के रखना 3. धृष्टता। पोत्रिप्रवरः [पू-त्र--पोत्र---इनि--पोत्रिन्, तेषु प्रवरः] प्रचकित (वि.) [प्र+चक - क्त भय के कारण थर-थर विष्णु भगवान् वाराहावतार हिरण्याक्षे पात्रिप्रवर- __ काँपता हुआ। वपुषा देव भवता- नारायणीय० / | प्रचण्ड (वि०) प्रा० स०] प्रखर, अत्यन्त तीन / सम० पोप्लूयमान (वि०) [प्लू | यङ् + शानच्, द्वित्वम्] बार -- प्रतापः शक्तिशाली तेज, भैरवः एक नाटक का बार तैरता हुआ लगातार तैरने वाला या बहने वाला। नाम / पौण्ड्रवर्धनः (पुं०) बिहार प्रदेश का नाम / प्रचर्या [प्र--चर्+यत्+टाप्] प्रक्रिया / पौत्रजोविकम् (नपुं०) पुत्रं जीव पौधे के बीजों से बना प्रचारः [प्र+चर+घा] सरकारी घोषणा, सार्वजनिक ताबीज़। / उद्घोष / पौरन्ध्र (वि०) पुरन्ध्र+अण् स्त्रीवाची, नारीजातीय। प्रचलित (वि.) [प्र-|-चल + क्त घबराया हुआ। तम् पौषधः (40) उपवास का दिन / (नपुं०) बिदाई, विसर्जन / प्रउगम् (नपुं०) त्रिकोण / प्रचला (स्त्री०) [प्र---चल-अच-टाप] गिरगिट। प्रकच (वि०) [ब० स०] जिसके बाल सीधे खड़े हों। प्रचुरपरिभवः [क० स०] भारी अपमान, बड़ा तिरस्कार / प्रकाङ्क्षा [प्र-काङ्क्ष + अ] भूख, बुभुक्षा। प्रच्छन्नबौद्धः (पु० ) वेदान्ती के वेश में छिपा हुआ प्रकाशः [प्र+का+घञ] ज्ञान / सम० करः प्रकट | बौद्ध / करने वाला, व्यक्त करने वाला। प्रच्यावुक (वि०) [प्र---च्यु-+-उका ] क्षणभंगुर, सहज में प्रकृ (तना०भ०) विवेक करना, भेद करना---मोहात टूट जाने वाला, भिदुर / प्रकुरुते भवान् -- महा० 5 / 168 / 18 / प्रजननकुशल (वि.) प्रसूति कार्य में दक्ष / प्रकरः [प्र. कृ+अच्] धोना, मांजना, साफ़ करना प्रजा [प्र-जन्+3+टाप्] संवत्सर बुद्ध० / अत्रामत्रप्रकरकरणे वर्ततेऽसो नियक्तिः- विश्व० प्रजागरणम् [प्रजाग+ ल्युट जागते रहना। 154 / / प्रजम्भ (भ्वा० आ०) जम्हाई लेना। For Private and Personal Use Only

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