________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / ( 1298 ) पुलकः [पुल्+ण्वुल्] गुच्छा, झुंड / / पूर्ण (वि.) [पुर्+क्त ] सर्वव्यापक, सर्वत्र उपस्थित / पुलिंदः (पुं०) शिकारी, (ब० व०) एक जंगली जाति। / सम० अभिषेक: एक प्रकार का धार्मिक स्नान पुल्कसः (0) एक मिश्रित जाति का नाम भाग० जिसका कौलतंत्र में विधान निहित है। उत्सङ्गा 9 / 21 / 10 / (वि.) ऐसी गर्भवती जिसके थोड़े ही दिनों में बच्चा पुष्ट (वि.) [पुष-क्त] 1. पाला पोसा 2. फलता होने वाला है, आसन्न प्रसवा,-प्रज्ञः (10) 1. जिसका फूलता 3. समद्ध 4. पूर्ण। सम० -- अङ्ग (वि.) ज्ञान पूर्णत: विकसित हो चुका हो 2. द्वैत संप्रदाय मोटे अंगों वाला, जिसे अच्छे पदार्थ भोजन में मिलते के प्रवर्तक माधव का विशेषण / रहे हैं अर्थ (वि०) जो अर्थ की दृष्टि से पूर्णत: | पूर्व (वि.) [पूर्व-+अच् ] 1. पहला, प्रथम 2. पूर्वी, स्पष्ट हो। पूर्वदेश 3. प्राचीन, पहला। सम...-अवसायिन पुष्टिः पुष+क्तिन्] बहुत से अनुष्ठानों के नाम जो (वि.) जो बात पहले घटती है-पूर्वावसायिन्यश्च कल्याण की दृष्टि से किये जाते है, पुष्टिकर्म / बलीयांसो जघन्यावसायिभ्यः-मै० सं० 12 / 2 / 34 सम० मार्गः बल्लभाचार्य द्वारा माने गये सिद्धान्तों पर शा० भा०। -निमित्तम् शकुन, - निविष्ट का समुच्चय / (वि.) जो पहले ही रचा हुआ है---मनु० 9 / 281, पुष्करम् / पुष्क पुष्टि राति-रा+क] 1. नीला कमल -पश्चात, पश्चिम (अ०) पूर्व से लेकर पश्चिम 2. हाथी के सूंड का किनारा-मात०।२। सम० तक, मारिन् (वि०) पति (या पत्नी) से पहले -विष्टर: ब्रह्मा, परमेश्वर, विष्टरा लक्ष्मी देवी मरने वाला, विद् (वि०) जो भूतकाल की बात -पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ... कनक० / / जानता है, विप्रतिषेधः पहली उक्ति का विरोध पुष्पम् [पुष्प-+ अच्] 1. फूल 2. पुष्परागमणि 3. कुबेर करने वाला कथन,--विहित (वि.) जो पहले ही का रथ / सम० अम्बु फूलों का शहद, -- आस्तरकः, निर्णीत हो चुका हो। -आस्तरणम् फूलों से सजावट करने की कला, पूषानुजः [पूषन्--अनुजः ] वृष्टि का देवता-- प्रास्यद् --पदवी कपाटिका, - यमकम अनप्रास अलंकार का द्रोणसुतो बाणान् वृष्टि पूषानुजो यथा महा०८1 एक भेद। 20 / 29 / पुष्पधः (0) जाति से बहिष्कृत महिला में ब्राह्मण द्वारा | पूणाका (स्त्री०) किसी जानवर का मादा-बच्चा / उत्पादित संतान / पृतनापतिः (प.) [50 त०] सेनापति / पुष्परागः [प० त०] एक प्रकार की मणि-कौ० अ० पृथक (अ०) [प्रथ् + अज, कित्, संप्रसारणम् ] 1. अलग 2 / 11 / 29 / 2. अलग-अलग 3. के बिना, के सिवाय। सम० पुस्तम् [ पुस्त+अन् ] 1. कोई वस्तु जो मिट्टी, लकड़ी / -कार्यम् अलग काम, धमिन (वि०) जो द्वैत या धातु की बनी हो 2. पुस्तक, हस्तलिखित, पांडु- सिद्धान्त को मानने वाला है, बीजः भिलावा, ... योगलिपि / सम-पालः भू-अभिलेखों को सुरक्षा पूर्वक / करणम् एक व्याकरणनियम का दो भागों में जुदा रखने वाला। जुदा करना। पुस्तफः,-कम् [पुस्त+कन् ] 1. पाण्डुलिपि 2. एक उभरा पृथक्त्वनिवेशः (पु०) जुदाई पर डटे रहना संख्यायाश्च हुआ आभूषण / सम०- आगारम् पुस्तकालय, पृथक्त्वनिवेशात् - मो० सु० 10 / 5 / 17 / -आस्तरणम् बस्ता, वह कपड़ा जिसमें पुस्तकें वाँधी | पृथिवीभृत् (पुं०) [पृथिवीं बिभर्तीति - -क्विप् ] जाती है,-- मुद्रा एक प्रकार की तांत्रिक मुद्रा / पर्वत, पहाड़। पूतक्रतुः [ब० स०] इन्द्र का विशेषण / पृथु (वि०) [प्रथ्--कु, संप्रसारणम् ] 1. विशाल, विस्तृत पूगी (स्त्री०) सुपारी का पेड़ / 2. प्रचुर पुष्कल 3. बड़ा, 4. असंख्य / सम०-कोति पूजा [पूज्अ] आदर, सम्मान, पूजा। सम० उप- (वि.) दूर-दूर तक विख्यात,---वशिन् (वि.) दूर करणम् पूजा करने का सामान,-गृहम् गाह्यं पूजा दर्शी, दीर्घदृष्टि / का स्थान / / पृश्नि (वि.) [स्पृश् नि० किच्च पृषो० सलोपः] पूयः [ पूय--अच ] मवाद, किसी फोड़े या फुसी से निक- 1. ठिगना 2. सुकुमार 3. चितकबरा,-शिनः (स्त्री०) लने वाला, पीप। सम०--उवः, -वहः, एक प्रकार 1. चितकबरी गाय 2. पृथ्वी।। का नरक। पृषत्कः [पृष्+अति =पृषत्+कन् ] 1. गोल धब्बा पूरक (वि.) [पूर +ण्वुल] 1. भरने वाला, पूरा 2. चाप की शरज्या / / करने वाला,--क: (पुं०) बाढ़, जलप्लावन-सिञ्चाङ्ग पृष्ठम् | पृष्-(स्पश)+थक नि०11. पीठ 2. पुस्तक के नस्त्वदधरामृतपूरकेण---भाग० 10 // 29 // 35 / पत्र का एक पार्श्व 3. शेष / सम० . आक्षेपः पीठ में For Private and Personal Use Only