________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1284 ) (वि.) हाथी पर सवार, केतुः कर्ण का विशेषण, / नाभस्वत (वि.) [ नभस्वत्+अण् ] वायु से संबन्ध -द्वीपम् भारत वर्ष का एक टापू, नासोर (स्त्री०) रखने वाला। वह स्त्री जिसकी सुन्दर जंधाएँ आकार प्रकार में हाथी | नाभागः (पुं०) एक राजा का नाम, वैवस्वत मनु का की संड से मिलती जुलती हैं, पर्णी पान का पौधा, पुत्र, अम्बरीष का पिता। ---बन्धः एक प्रकार का नाम,--रिपुः गरुड़ / नाभिः,-भी (पुं० स्त्री०) [नह.+इञ, भश्चान्तादेशः ] मागरक: [ नगर+अण, स्वार्थ कन् / नगर पिता / 1. सुंडी 2. सुडी के समान कोई भी गहराई-पुं० नागरकाः परस्पर विरोधी ग्रह / 1. पहिए की नाह 2. केन्द्र, मुख्य बिन्दु 3. खेत / नागरवृत्तिः / ष० त० ] नागरिकों की शिष्टता, शिष्टा- सम...... गन्धः कस्तूरी की बू या गन्ध,-वर्षम् जम्बू चार, शालीनता। द्वीप के नौ वर्षों में से एक। नागार्जुमः (पुं०) एक बौद्ध शिक्षक का नाम / / नाभोगः [न+आभोग:] 1. देवता 2. साँप-नाभोगभोज्यो मागोजीभट्टः (पुं०) एक प्रसिद्ध वैयाकरण का नाम / हरिणाधिरूढः सोऽयं गरुत्मानिव राजतीन्द्र:-..रा० नाटकम् [ नट+वल ] 1. दृश्य काव्य 2. नाट्यरचना के च०६।८४ / मुख्य दस भेदों में प्रथम भेद / सम० - प्रपञ्चः नाटक नामावशेष (वि०) [ब० स०] जिसका केवल नाम ही रह करने की व्यवस्था, प्रयोगः नाटक का अभिनय गया है, मृतक / करना,-रङ्ग नाटक का रङ्गमञ्च, लक्षणम्, नाट्य- | नायकायते (ना० धा० आ०) 1. नायक का अभिनय रचना विषयक विविध नियम / करना 2. मोतियों के हार में केन्द्रीय रत्न या मणि का नाट्यम् [ नट+ष्या ] 1: नाच 2. नाटक प्रस्तुत करना, काम देना। अभिनय करना 3. नृत्यकला 4. नाटक के पात्र की नाराचः नरान् आचायति-आ+चम+ड, स्वार्थे अण, वेशभूषा। सम० --- अङ्गानि नृत्य के दस भाग, नारम् आचामति वा] 1. पूर्व दिशा को जाने वाली --आगारम् नृत्यकक्ष, नाचघर,--रासकम् एक प्रकार सड़क 2. मूर्ति को उसके स्थान पर जमाने के लिए का एकाडकी नाटक,-वेदः नाट्यशास्त्र या नाट्य- धातु की बनी चटखनी या कील / कला का विज्ञान / नारायणास्त्रम् (नपुं०) एक अस्त्र का नाम / नाडी [ नड्+णिच+इन् - नाडि+ङीष् ] 1. पौधे का | नारायणसूक्तम् (नपुं०) ऋग्वेद का पुरुष सूक्त / नलिकामय डण्ठल 2. कमल का खोखला काण्ड | नारीनाथ (वि.) [ब० स०] जिसके स्वामित्व अधिकार 3. शरीर का नलिकायुक्त अंग (जैसे कि शिरा या किसी स्त्री के पास है। घमनी)। सम० - चक्रम् मूलाधार आदि शरीर के | नारोमणिः (स्त्री० [स० त०] स्त्रीरत्न / स्नायुओं के तन्त्री केन्द्रों का समूह, पात्रम् जलघड़ी, | नालायन्त्रम् 1. तोप 2. निगल, नाली। -ग्रन्थः ज्योतिष की नाडी शाखा पर एक पुस्तक / | नासत्यौ (पुं०, द्वि० व०) [नास्ति असत्यं यस्य, न० ब०, नाणकम् (नपुं०) सिक्का, मुद्राङ्कित कोई वस्तु / सम० | | नशः प्रकृतिवद्भावः] दोनों अश्विनीकुमार। -परीक्षा सिक्के को परखना, परीक्षिन् (वि०) | नासान्तिक (वि.) [नासा -अन्तिक] नाक तक पहुंचने सिक्कों का पारखी, परीक्षक / वाला (लकड़ी आदि)। मापितम् | नाथ्+क्त ] मांग, प्रार्थना। | नासावेषः (पुं०) [ष० त०] नाक का वींधना, नासिकानामर्दमान (वि०) [ नई + यङ+शानच् ] उच्च स्वर से वेध संस्कार। शब्द करने वाला। नासिकः (पुं०) महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित एक पुण्यस्थान / नाना (अ०) [न+नाज ] 1. भिन्न-भिन्न स्थानों पर, | | नाहल: (पुं०) जातिच्युत समुदाय का व्यक्ति, जाति भिन्न-भिन्न रीति से, विविध प्रकार से 2. स्पष्ट रूप | बहिष्कृत। से, पृथक रूप से 3. विना 4.(समस्त विशेषणों में | निःक्षत्र (वि०) [ब० स० क्षत्रिय रहित / प्रयुक्त ) बहुत से / सम~-आश्रय (वि०) जिसके | निःश (वि०) [ब० स०] निडर, निर्भय, संकोचहीन / बहुत से आवास या घर है,-गोत्र (वि.) विविध | निःशब्द (वि.) [ब० स०] शब्द रहित, जहाँ कोलाहल गोत्रों से सम्बन्व रखने बाला,-धर्मन (वि.) भिन्न | न हो। रीति-रिवाजों वाला.-भाव (वि.) भिन्न प्रकृति | निःशस्त्र (वि.) बि० स०] शस्त्रहीन, जिसके पास कोई वाला। | हथियार नहीं। नानात्वम् (नपुं०) विविधता की स्थिति / निःश्रेयसम् (नपुं० [निश्चितं श्रेयः नि.] 1. मुक्ति, मोक्ष मान्दन (वि.) / नन्दन+अण् ] सुखद, हर्षप्रद - सैषा | . 2. आनन्द 3. आस्था, विश्वास / विदृति म वास्तदेतन्नान्दनम् --ऐत. उप० 3 / 12 / / निःसंशय (वि.) [ब० स०निःसन्दिग्ध, निश्चित / For Private and Personal Use Only