________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1216 ) गच्छन्त्यभिसरीम् - प्रति० 317 2. सहायता के लिए / अदित (वि०) [ मृद्-1क्त, न० त०] जो मसला न जाना। गया हो, जो दवाया न गया हो। अभिहारः [अभि-ह-+घञ 1 निकट लाना - अभिहारोऽ- | अमर्मवेधिता (स्त्री०) मर्मस्थानों पर न आघात करने का भियोगे च...... ___गण, दूसरों की भावनाओं को अपने वाग्वाणों से अभयः संनिवतिः (स्त्री०) फिर वापिस न आना, जन्म- छेदना (तीर्थंकर के 35 वाग्गुणों में से एक) / मरण के चक्र से हटकमा--गतिस्त्वं वीतरागाजाममयः | अमा [न- मा+क] अमावस्था। सम...बसुः पुरुरवा संनिवृत्तये--रघु० 10.27 / के वंश का एक राजा,-सोमवारः वह सोमवार जिस अभ्यषपद् (दिवा आ०) रक्षा करता . ततस्नामभ्यवरातु- दिन अमावस्या हो,--ब्रतम् अमायरया वाले मोमवार कामो यौगन्धरायणः---स्वप्नः / को रक्खा जाने वाला व्रत,---हउः एक सर्पराक्षस अभ्यवमन् (दिवा० आ०) निगदर करना, तिरस्कार का नाम -- महा। करना। अमित्रकम् [ न० त०] 1. शत्रुतापूर्ण कार्य,-- राजानमिमअभ्यदमस्ता अभ्यव+मन-पायमान करने वाला मामाझ मुहृच्चिद्वमित्रकम रा०६१६५७ / अभ्यवहारः [ अभाव+ + एम् ] पाने के योग्य, खाद्य अमद्र (वि.) [म.व.] सीमारहित, अमदारिद्रयशुचोन्यभ्यवहाराणि मुलानि च फलानि रा० समदभगा-०६।६५१७। 4150 / 35 / | अमूर्तरजा (पृ०) गुम का एक पुत्र। इसकी माता का अभ्यसनीप] (वि.) [अभ्यस+अनीद, मत् ना! नाम वैदर्भी था। अभ्यस्य आवृत्ति करने के योग्य, अन्यास करने के अमज (दि०) [न० ब० जिसने स्नान नहीं किया है ___ लायक, अभ्यास किये जाने के लिये। ....परिक्लिप्टकवसनामगजां राधवनियाम रा०६। अभ्याकाशम् (वि.) [प्रा० स०] आकान के नीचे बिना 81:10 / किसी आवण के...-अहःसु सततं तिष्ठेदभ्याकाशं | | अमृत (वि०) न - म त 1. जो मरा हुआ नहीं निशां स्वान् गहा० 1135 / 38 / 2. जो अमर है। म० अंशषः: एक प्रकार का अभ्याचा (म्बा० 50) 1. व्यान देना 2. बोरना। रत्न.. की अ० 2 / 11, अग्रभः इन्द्र का घोड़ा, अभ्युपपत्र (वि.) [ अभि-उप-पद्... वत | 1. पहुँचा उन्ः श्रया, अमृतागभुवः पुरेत पुन्छ। शि० 20 // हुआ, पास गया हुआ 2. भय से आधा के हेतु निकट 43, ... ईशः (अमतेगः) भिर काम-- उपस्तरणम् गया हुआ -अभ्युपगन्नाट: खल तत्र भवानाचाम- अमत समान भोजन करने से पूर्व आचमन करने का दत्त इति अयते...-म० 7 / पानी, करः, किरणः अमन की फिरणों वाला, अभ्रमः (स्त्री०) ऐरावत हानी की प्रिपा हथिनी प्रेमा- चन्द्रमा, नन्दनः मण्डप जिसमें 58 स्तम्भ लगे हों स्पदाभ्रमः हर० 2629, अभ्रमुवल्लभः नै० म. पु० 27018, नादोपनिषद एक छोटी 1 / 108 / उपनिषद् का नाम, - बिन्दुपनियर अथर्व वेद की एक अभ्रयन्ती (स्त्री०)। अत्र शत डीप्] 1. बालों से छोटी उगनिषद्, - मतिः चन्द्रमा- आप्याययत्यसो युक्त दर्या तु को लाने वाले 2. कृतिका नक्षज / लाव बदनामतभूतिना भाग० 4 / 16 / 2 / अम् (बेन०) (भ्वा० पर०) भयङ्कर होना, भय युका अमवोद्यम् [ मपा। वद्+ण्यत] सत्य उदित भट्टि होना - वराहमिन्द एभषम ऋ० 8173 / 10 / अमण्डित (वि०) [ न० ब०] अनलंकृत, न राजा हुआ! अबोध (वि०) न० त०] 1. अचूक ... अन्यथं / सम० अमत्सर (वि०) [न० ब०] जो ईर्ष्या न करे, जो घृणा -- अक्षी (स्त्र:०) (अमोधासी) दाक्षायणी का नाम, न करे, जो निरीह रहे - यद्यद्रोचते विप्रेभ्यस्तत्तदृद्या- -~~-वान्दिनी शिक्षा की एक पुस्तक का मलपाठ, दमत्सरः---मनु० 3 / 231, भक्तंकवत्सलसमत्सरहृत्स ----वर्ष चालकावंशी एक राजा का नाम / / भान्तम्-नारा०२११५ / अन्वराधिकारिन [अम्बराधिकार-णिनि राजदरवार का अमर (वि.) [म..-पचाद्यच न० त०] जो मृत्य को एक वस्त्राधिकारी। प्राप्त न हो, अनश्वर,-रः (0) देव, सुर। सम० अम्बरीषक: अम्ब---अग्पिक नि० दीर्घः) अन्तनिहित ----गुरुः बृहस्पति, बृहस्पति नामक ग्रह. ... चन्द्रः या गुप्त आग उदयानाः कुर श्रेष्ठ नथवाम्बरीपका: 'बालभारत' का रचथिता, --राजः इन्द्र, देवों का -महा० 1 / 15 / 16 / स्वामी। अम्बु (नपुं०) [अम्ब+उण् जल, पानी। सम० . कन्दः अमरी (स्त्री०) स्वर्गीय स्त्री, देवी -अमरीकवरीभार- | एक जलीय पौधा, सिंघाड़ा, कुक्कुटी जलीय मुर्गी, भ्रमरीमुखरीकृतम्---कुव०१। / -देवम्,-देवतम् पूर्वापाढ नक्षत्र, नाथः समुद्र, For Private and Personal Use Only