Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak
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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1241 ) मान्य-उन्मत्तधेगा: प्लवंगा:----रा० 5 / 62 / 12, / / सौजन्य / सम० च्छलम् आलंकारिक रूप से प्रयुक्त ----त्तम् (नपुं०) धतूरे का फूल ... उन्मत्तमासाद्य हरः | किसी उक्ति के शब्दार्थ का उल्लेख करके एक प्रकार स्मरश्च नै० 3 / 98 (भा०)। का निराकरणीय आभासी अनुमान, पदम् शिष्टता उन्मनीभू (म्वा० पर०) उत्तेजित होना, क्षुब्ध होना। / का शब्द, औपचारिक उच्चारण / उन्मुखता [ उन्मुख+ता ] आशंसा या प्रत्याशा की | उपच्छन्न (वि.) [उप+छ+क्त] गुप्त, छिपा हुआ। स्थिति / उपच्छल (पर०) क्षीण होना, पकड़ लेना। उन्मुग्ध (वि.) [ उद् + मुह,+क्त ] 1. उद्विग्न, संभ्रान्त | उपजानु ( वि० ) [ उप-जन् / अण् ] घुटने के 2. मूर्ख, मूढ़। निकट। उन्मद् (क्रया पर०) मसलना, मालिश करना। उपतल्पः [उप+तल+प] 1. ऊपर की मंजिल का कमरा उपकर्मन् (नपुं०) उपनयन संस्कार को एक प्रक्रिया। 2. एक प्रकार की लकड़ी की चौकी या स्टूल / जिसमें बालक का सिर संघा जाता है। उपतीर्थम् [उप+तन-थक] 1. सरोवर या नदी का तट उपकल्पः / उप-कृप / अच्, घञ् वा ] आभपण---तप- | 2. निकटवर्ती प्रदेश--महा० 5 / 1527 / नीयोपकल्पम्-भाग० 3.18 / 9 / उपत्यका [उप+त्यकन्+-टाप्] पर्वत की तलहटी का उपकीचकः [ उप-की---वन आद्यन्तविपर्यय ] बांस निम्नदेश गिरेरुपत्यकारण्यवासिनं संप्राप्ता 205 / के वृक्षों को उपशाखा-विराटनगरे राजन् कीचका- | उपदंशनम् उप+दंश + ल्यद] प्रकरण, प्रसंग-मी० सू० दुपकीचकम् - (यहां 'विराट' में 'विः-+राट' श्लेष | 6 / 8 / 35 पर शा० भा०। भी हो सकता है)। उपदंशितम् [उपदंश्+क्त] प्रकरण बताते हुए उल्लेख उपक्रमः [ उप+कम+घञ ] 1. शीर्य 2. उड़ान 3. व्यव- करना। हार प्रतिक्रिया। उपदात (वि०) [उप+दा+तुच] देने वाला। उपक्रान्त (वि.) [उप+ क्रम् +त] 1 रब्ध 2. अधि- | उपवेहः [उप+दिह घा] लपेटना, लेप करना, चित्रित गत 3. व्यवहृत। करना-देहोपदेहात्किरणर्मणीनाम् .. नं० 10197 // उपक्षेपक (वि०) उप-क्षिप--प्रवल | संकेत देने वाला, उपवेहिका [उपदेह+का+टाप] दीमक / सुझाव देने वाला। उपद्रवः [उपद्रु+घा] 1. सप्तांशक साम का छठा भाग / उपखिलम् (नपुं०) परिशिष्ट का भी परिशिष्ट / छा० 2 / 8 / 2 2. हानि, छीजन - अन्नस्योपद्रवं पश्य उपगम् (भ्वा० पर०) पूजा करना-सह पत्न्या विशालाक्ष्या ___मृतो हि किमशिष्यति रा० 2 / 108 / 14 / नारायणमुपागमत् -रा० 26 / 1 / उपद्वारम् [अन्य 0 स०] पार्श्वद्वार। उपगमनम् [ उपगम्+ल्युट / धारणा, स्वीकृति--अप्रा- उपधा (जुहो० उभ०) धोखा देना। प्तस्य हि प्रापणमुपगमनम् -- मी० मू० 1211121 पर | उपधालोपः [ष० त०] अन्तिम से पूर्व का लोप / / शा० भा० उपधान (वि०) [उपधा+ल्यूट] तनाव बढ़ाने के लिए उपजिगमिषु (वि.) [उप-गम-+सन् उ] पास जाने वाद्ययंत्र में के तारों के अंदर रक्खे हुए लकड़ी के का इच्छुक,--नीचैवस्थित्युपजिगमिपोः-- मेघ० 44 / टुकड़े-पाशीपधानां ज्यातन्त्रीम्-.-महा० 4 / 35 / 16 / / [उप+गुह --क्त 1. ग्रस्त, उत्पीडित | उपधानीयम् [उप+धा-अनीयर 1. तकिया, गद्देदार -----कन्योपगूढो नष्टथीः कृपणो विषयात्मक:-~भाग० बिछावन 2. पायदान / 4 / 28 / 6 2. आच्छादित, इका हुआ लताभिः उपधाव (न्वा० उभ०) पूजा करना। पुष्पिताग्राभिरुपगूढानि सर्वत: ....-रा० 419 / उपनतिः [उप+नम् +क्तिन्] 1. झुकाव 2. देय / उपगानम् उपगैल्युट] सहगामी संगीत / उपनम्र (वि०) [उप-नम्+र] आनेवाला, उपस्थित उपमेयम् [उपगैयत गायन, गीत / होने वाला। उपग्रस् (भ्वा० पर०) निगलना, हड़प करना, ग्रहणग्रस्त उपनिबस (वि०) [उप-+नि+बन्ध+क्त] 1. रचित होना। 2. विमष्ट किंचिदुपनिबद्ध उत्तर० 7 / उपघ्रा (भ्वा० पर०) सूचना पर्यश्रुरस्वजत मूर्धनि चोप- | | उपनिर्देड (भ्वा० पर० आ०) प्रसन्न करना। जघ्रौ रघु० 13170 / उपनिर्गमः [उप+निर्---गम् +खच्] मुख्य सड़क, प्रधान उपचतुर (वि.) लगभग चार, चार के आसपास / / मार्ग। उपचरणम् [उप--चर + ल्युट] निकट जाना, पहुँचना। उपनिर्गमनम् [उप-+निर्+गम्+ल्यट] द्वार, दरवाजा। उपचरितम् (नपुं०) सन्धि का विशेष नियम / उपनिरिः [उप+निर्-+ह+घा] आक्रमण, हमला उपचारः [उप-चर्घ ञ्] 1. सेवा, पूजा 2. शिष्टता, -नेदानीमुपनिरिं रावणो दातुमर्हति-- रा० 6 / 75 / 2 / For Private and Personal Use Only

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