________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1251 ) कपंरी कपरिका [कृप् +अरन् की, स्त्रियां कन् +टाप्, / कलिका [कलि+कन्+टाप्] सर्वोत्तम कवि के लिए ह्रस्वश्च] एक प्रकार का अंजन, सुरमा / सम्मानसूचक उपाधि। कर्पूरमञ्जरी (स्त्री०) राजशेखरकृत एक नाटक / | कलिल (वि.)[कल +इलच्] 1. विकृत, संदूषित 2. सन्दिकर्पूरस्तवः [कर्पूर+स्तु+अप] तन्त्रशास्त्र में वर्णित स्तुति- ग्ध, अनिश्चित- एतस्मात्कारणाच्छेयः कलिल प्रतिगान। भाति मे-महा० 12 / 287 / 11 / कर्मन् (नपुं०) (कृ+मनिन्] 1. कार्य करने की इन्द्रिय | कलुष (वि०) [कल् / उषच्] 1. गंदा, मैला। सम० -कर्माणि कर्मभिः कुर्वन्-भाग०११।३।६ 2. प्रशिक्षण, मानस (वि०) जहरीला, दृष्टि (वि.) बुरी अभ्यास कौ० अ०२।२। सम०-अन्त: (कर्मान्तः) दृष्टि से देखने वाला। कार्यकत्ती कच्चिन्न सर्वे कर्मान्ताः रा०२।१००। कल्किपुराणम् (नपुं०) एक पुराण का नाम। 52, -- अन्तरम् (कर्मान्तरम्) दूसरा कार्य-अपनुत्तिः कल्पः [क्लप्+घा आस्था, विश्वास-लौकिके समयाचारे कर्मापनुत्तिः). (स्त्री) कर्म का नाश,--आल्या कृतकल्पो विशारदः .. रा०२।१२२२ / सम० - वृक्षा, (कर्माल्या) कर्म के आधार पर नामकरण, * आशयः ---तरुः कोई व्यक्ति या पदार्थ जो प्रचुर मात्रा में (कर्माशयः) अच्छे बुरे कर्मों के फलों का संचयस्थान, भलाई करे-निगमकल्पतरोगलितं फल-भाग० 1 // - गतिः पूर्वकृत कर्मों की दशा--सुखासुखो कर्मगति- ११३,-स्थानम् 1. औषधियों के निर्माण की कला प्रवृत्ती--सुभाष०, च्छेदः कर्तव्यकर्म पर उपस्थित 2. विषविज्ञान, अगदविज्ञान--सुश्रुत / न रहने के फलस्वरूप हानि-कौ० अ० 27, देवः कल्पकः [क्लप्+ण्वुल] 1. वृक्षविशेप, कचोरा 2. (वि.) जिसने अपने धर्मपूर्ण कृत्यों के द्वारा देवत्व प्राप्त कर मानकस्वरूप, निश्चित नियमानुकूल-याजयित्वाश्वमेलिया है, नामधेयम् कुछ कारणों के आधार पर नाम घेस्तं विभिरुतमकल्पक: भाग० 1816 / रखना यही अपनी इच्छा से नहीं,-निश्चयः किसी कल्पनाशक्तिः (स्त्री०) [ष० त०] विचार बनाने की कार्य का निर्णय,-श्रुतिः कार्य का आख्यान करने सामर्थ्य, विचारों की मौलिकता, भावनाशक्ति। वाली बैदिक उक्ति कर्मश्रुतेः परार्थत्वात्--मै० सं० कल्य (वि.) कला+यत्] ललित कलाओं में दक्ष / 11 / 2 / 6 / कल्याण (वि.) [कल्य+अण पा] यथार्थ, प्रमाणित, करकः (पुं०) अदरक जैसा एक सुगन्धित पदार्थ जो युक्तियुक्त-कल्याणी बत गाथेय लौकिकी प्रतिभाति औषधियों तथा सुगन्ध द्रव्यों के निर्माण में प्रयुक्त मे - रा० 5 / 34 / 6 / सम०-पञ्चकः वह बोड़ा जिसका होता है, कचोरा। मुख और पैर सफेद हो। कल (वि.) [कल+घञ] 1. प्रबल 2. (समासान्त में | कल्हणः (पुं०) राजतरंगिणी का रचयिता। प्रयुक्त) पूर्ण, भरा हुआ-दीनस्य ताम्राकलस्य | कवि (वि.) [+5] 1. सर्वज्ञ 2. बुद्धिमान्-विः (पु.) राज्ञ:--रा० 2 / 13 / 24 / सम०-व्याघ्रः तेंदुआ और 1. विचारक, कविता करने वाला 2. वाल्मीकि 3. ब्रह्मा मादा चीता से उत्पन्न संकर नस्ल का जानवर, बाध। / सम-कल्पितम् कवि की कल्पना,-परंपरा कलङ्कः (पुं०) [कल्+क्विप्, कल चासो अङ्कश्च कर्म० कवियों का अनुक्रम अतिविचित्रकधिपरम्परावाहिनि स०] सम्प्रदायद्योतक मस्तक पर तिलक-कलङ्क" ! संसारे - ध्वन्या० 1, हृदयम् कवि का वास्तविक तिलकेऽपि च नाना। आशय / कलजन्यायः (पुं०) न्याय जिसके अनुसार किसी से संबद्ध | कवित्वम् [कवि+त्व] 1. (वेद) बुद्धिमत्ता 2. कवि कौशल। निषेध उस कार्य को करने का प्रतिषेध करता है। / +अच्] चर्बी-कशशब्दो मेदसि प्रसिद्धः- म० कलमगोपवधू / (स्त्री०) चावलों के खेत खत सं० 9 / 4 / 22 पर शा० भा०। (--गोपी), (- (गोपालिका) की रखबाली के लिए लिए | कषाणः [क+ल्युट पृषो० आत्वम्] मसलना, रगड़ पैदा नियुक्त स्त्री,-शि० 6 / 49, जानकी० 11 / करने वाला- निद्राक्षणोऽद्रिपरिवर्तकषाणकण्डू:-भाग. कलहनाशनः एक पौधा, करज / 2 / 7 / 13 / कला [कल-कच-+टाप] 1. हाथी की पूंछ के पास मांसल | 'टा] 1. हाथा का पूछ के पास मांसल | कवायवसनम् [ष० त०] संन्यासियों की पीले से खाकी रंग गही 2.स्वरूप --लीलया दघतः कला:-भाग०१११११७ / / की वेशभूषा। 3. नाशकारी शक्ति .. संहृत्य कालकलया-भाग० 110 कष्टमावलः (पु०) सौतेली मां से उत्पन्न भाई। 9 / 16 / सम-कारः ललितकलाविद्, कलाविज्ञ / म.-कारः लालतकलाविद्, कलाविज्ञ। कसनः किस+ल्यट] खांसी। सम० उत्पाटनः (पं.) कलावती (स्त्री०) [कला+मत+कीप] एक प्रकार की एक पौधा जिसके रस के सेवन से खाँसी दूर हो वीणा। / जाती है। कतिकारकः (0) 1. कर वृक्ष 2. पक्षिविशेष / का (स्त्री.) 1. पृथ्वी, धरती 2. दुर्गा देवी / For Private and Personal Use Only