Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 1259
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1250 ) कपित्वम् (नपुं०) बन्दर की विशेषता-कपित्वमनवस्थि- हआ---कामाधियस्त्वयि रचिता न परमारोहन्ति यथा तम्---रा० 5 / करम्भबीजानि– भाग०६१६३९ / कपिलवस्तु उस नगर का नाम जहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। कराल (वि०) [कर+आ+ला+क] जिसके दाँत कपिला (स्त्री०) एक नदी का नाम जो कावेरी में बाहर को निकले हुए हों। ___ मिलती है। करालित (वि.) [कराल+इतच् ] 1. सताया हुआ कपोतवृत्तिः (स्त्री०) [ब० स०] अपव्ययी स्वभाव होना, 2. आवधित, प्रखर किया हुआ। अपने भोजन का कुछ भी प्रबन्ध न करना -- महा० ] करिन (प.) [ कर+इनि ] 1. हाथी 2. 'आठ' की 3 / 26015 / संख्या। सम०-मुक्ता मोती,--रतम् संभोग के कपोलतानम् (नपुं०) अपनी त्रुटि को स्वीकार करने के समय का विशेष आसन, रतिबन्ध-कि० 5 / 23 पर चिह्न-स्वरूप अपने गालों को थपथपाना / टीका,-सुन्दरिका पनसाल, पानी का चिह्न। कपोलपत्रम् (नपुं०) पत्ते से मिलता-जुलता एक चिह्न करीरु(-रू) (स्त्री०) 1. झींगर 2. हाथी के दाँत गालों पर अङ्कित करना। की जड़। कपोलपालिः (---ली) (स्त्री०) गाल का एक पाव / करुणाकरः [ करुणा-कृ+अच् ] दयालु, करुणा करने कबलः [क+वल (बल)+ अच् ] दे० 'कवलः' / वाला। कवलम् (नपुं०) हाथियों का एक प्रकार का प्राकृ करूषः (पं०) गर्दा, गंदगी, मैल, पाप-निर्मलो निष्करूषतिक चारा। __ श्च शुद्ध इन्द्रो यथाभवत् -- रा० 1 / 24121 / कमन (वि०) [कम् + ल्युट्] प्रेमी, पति-उदयाचलशृङ्ग | करूषाः (ब०व०) एक देश का नाम --रा० 124 / / सङ्गतं कमलिन्याः कमनं व्यभावयत् .... साहेन्द्र 2 / 101 / / | कर्क (वि०) [कृ+क] 1. रत्न, मणि 2. नारियल के कमला [ कमल+अ+टाप् ] नारंगी, संतरा / खोल से बनाया गया पात्र 3. कंजस / कमलाक्षः/ब. स.] 1. कमल का बीज 2. कमल जैसी | कर्का (स्त्री०) सफ़ेद घोड़ी। आँखों वाला 3. विष्णु / | कर्कन्धुः ( धूः) (स्त्री०) [ कर्क कण्टकं दधाति-धा कमलीका (स्त्री०) छोटा कमल / +-कू] दस दिन का भ्रूण-दशाहेन तु कर्कन्धः कम्बल: [कम्ब+कलच् ] हाथी की झूल, गजप्रावरणे -भाग० 3 / 3 / 2 / / चव"नाना। कर्कन्धुः (पुं०) बिना पानी का कुआँ -- 'उणादि० 1128 कम्भ (वि.) 1. जलयुक्त 2. प्रसन्न / पर भाष्य / करः [कृ+अप, अच् वा ] 1. हाथ 2. टैक्स, शुल्क / सम० | कर्करेटम् (नपुं०) गर्दन से पकड़ना / -कच्छपिका (स्त्री०) योग की एक मद्रा जिसमें कर्कश (वि.) [कर्क+श] 1. रूखा, निष्ठुर 2. दुर्यहाथ कछुए से मिलते-जुलते हो जाते है- कृतात्मन् सनी,-शः (पुं०) काले रंग का गन्ना / (वि.) दरिद्र, जिसका कठिनाई से निर्वाह हो कर्ण: [कर्ण +अप्] 1. वृत्त की व्यास 2. अन्तर्वर्ती प्रदेश, -तलीकू हथेली में रखना, बुल्लू की भाँति अञ्जलि उपदिशा। सम---अञ्जल: (--लम्) कर्णपालि, में रखना -- ततः करतलीकृत्य व्यापि हालाहलं विषम् --कटु (वि०), कठोर (वि०), सुनने में कष्टप्रद, ---भाग० 87 / 43, -पात्री 1. चमड़े का बना हुआ ... कषायः कान की मवाद--आपीयतां कर्णकषायप्याला 2. जो भिक्षा अपने हाथ में ग्रहण करता है। शेषान् -भाग०।६।४६, चुलिका कानों की बाली, -~-मर्दः,--मर्दी,--मर्दकः एक पौधे का नाम / -पुटम् कान का विवर,- मलम् कान की मैल, करकवारि [ष० त०] ओलों का पानी-कौ० अ०१।२०।। घूध,-विष्णुकर्णमलोद्भूती-दे० म०, मुकुरः कर्णाकरटामुखम् (नपुं०) हाथी की कनपटी पर एक छिद्र भूषण, स्रोतस् (नपुं०) कान बहने पर कान से जिसमें से हाथी की मदोन्मत्तता के समय तरल पदार्थ निकलने वाला मल,-हर्म्यम् पार्श्वस्थ बुर्जी / बहता है। कर्णेचुरचुरा (स्त्री०) कानाफूसी, कान में कोई रहस्य की करणम् (नपुं०) [ + ल्युट् ] ग्रहों की गति के विषय में बात कहना। वराहमिहिर की एक कृति / सम०-व्यहम् ज्योतिष-कर्णेजयः [कर्णे+जा+अच् अलुक्समास] 1. कानाफूसी शास्त्र का एक ग्रन्थ,-विभक्तिः तृतीया विभक्तिः- करना 2. संवाददाता संसूचक - तवापणे कर्ण जंपनयन सूक्तवाकानेव करणविभक्तिसंयोगात. मी० स० / पशुन्यचकिता:- सो 2112 पर शा. भा०। कतंरी (स्त्री.) नृत्य का एक भेद / करभः [क+अमच् ] श्रोणि, कल्हा / कर्तृपदम् (नपुं०) 'कर्ता' को दर्शाने वाला शन्द / करम्भ (वि.) [क+रम्भ +घञ ] भुना हुआ, तला कर्तुनिष्ठ (वि.) 'कर्ता' अर्थात् कार्य करने वाले से संबद। परशमा प्रोणि कहा। भुना हुआया For Private and Personal Use Only

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