________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1257 ) कूवरस्थानम् [त सं०] गाड़ी में बैठने का स्थान। / कृत्यम् [ कृन्त्+यत् ] वास्तुकार का एक उपकरण-महा० कर्मः [ को जले अमिवेगोऽस्य-पृषो०] कछुवा / सम० 1194 / 6 / --- आसनम् योग की एक विशेष मद्रा,-द्वादशी कृत्यवत् (वि.) [कृत्य+मतुप] 1. जिसके पास करने पौषमास के शुक्लपक्ष का ग्यारहवाँ दिन, पुराणम् के लिए कार्य है 2. जिससे कोई प्रार्थना की गई है एक पुराण का नाम। 3. चाहने वाला, प्रबल इच्छुक रा० 7 / 92 / 15 / कर्मक (वि.) कछुवे जैसा बना हुआ। कृन्तनिका [ कृन्त+ल्युट-कृन्तनं, स्वार्थ कन, इत्वम् ] कूमिका | कूर्म+कन स्त्रियां टाप, उपधाया इत्वम्, ] एक एक | एक छोटा चाकू। वाद्ययन्त्र / कृत्वा-चिन्ता (लोकोक्ति:) प्राक्कल्पनापरक बात पर कूलिका / कूल+कन्+टाप, इत्वम् ] वीणा का निचला विचारविमर्श करना-मै० सं० 1012 / 49 और भाग। 6 / 8 / 42 पर शा० भा०। कृ (तना० उभ०) एकत्र करना, लेना-आदाने करोति | कृपा+आकरः, सागरः,-सिन्धः (पुं०) अत्यन्त कृपालु / शब्द:- मी० सू० 4 / 2 / 6 / कृश (वि.) [कृश्+क्त, नि.] 1. दुर्बल, बलहीन कृकरच्छट: [ ब० स०] आरा। 2. नगण्य 3. निर्धन 4. तुच्छ / सम० अतिथि कृकलः (0) 1. एक प्रकार का तीतर 2. पाँच प्राणों में (वि०) जो अपने अतिथियों को भूखा रखता है से एक / . महा० १२।८।२४,-गवः जिसकी गौवें भूखी रहती कृच्छ (वि.) कृती---+रक ] 1. कष्टप्रद, दु:ख- है,-भृत्यः जिसके नौकर भूखे रहते हैं। दायी / सम० -- अर्घः केवल छः दिन तक रहने वाली कृशानुयन्त्रम् (नपुं०) तोप / तपश्चर्या,-कृत् (वि०) तपस्वी,-सन्तपनम् एक कृष् (तुदा० पर०) खुरचना, विरेखण करना / प्रकार का प्रायश्चित्तपरक ब्रत / कृषिद्विष्ट: एक प्रकार का चिड़ा। कृतम् [कुवत ] जादू, टोना / सम० --...अर्थ (वि०) | | कृषिपाराशरः,-संग्रहः (पुं०) कृषि शास्त्र पर एक संग्रह ग्रंथ / कृतार्थ [व० स०] जिसने अपना प्रयोजन सिद्ध कर | कृष्ण (वि.) [ कृष् / नक्] 1. काला 2. दुप्ट 3. शूद्र लिया है, अत: अब और कुछ करने में असमर्थ है 4. भलावां (रीठा) जिससे धोबी कपड़ों पर चिह्न -सकृत्कृत्वा कृतार्थः शब्द:--मी० सू०६।२७ पर लगाता है - महा० 12 / 291 / 10 / सम०-कञ्चकः शा० भा०, -कर (वि०),-कारिन् (वि०) किए काले चने,-च्छविः (स्त्री) 1. बारहसिंगा की खाल हए कार्य को करने वाला, निरर्थक -- कृतकरो हि 2. काला बादल-- कृष्णच्छविसमा कृष्णा महा० विधिरनर्थकः स्यात-- मी० म० 105 / 58 पर शा० 4 / 6 / 9,- तालु: एक प्रकार का घोड़ा जिसका तालु भा०,-तीर्थ (वि.) जिसने सुगम या आसान बना काला होता है, द्वादशी आषाढ़ के कृष्णपक्ष में दिया, -दार (वि०) रिवाहित.-दूषणम् किये हुए। बारहवाँ दिन, बीजम् तरबूज, भस्मन् पारद को खराब करना,-मन्यु (वि०) क्रुद्ध, नाराज, | शुल्बीय,-मृत्तिका 1. काली मिट्टी 2. बारूद। - मालः चितकबरा, बारहसिंगा, कृष्णहरिपा,-विद् | कृष्णा (स्त्री०) यमुना नदी।। (वि.) कृतज्ञ,--तस्यापवय॑शरणं तब पादमूलं विस्म क्लप (प्रेर०) ग्रहण करना, स्वीकार करना-नातो र्यते कृतविदा...-भाग० 4 / 9 / 8,-- श्मथः जिसने मछे ह्यन्यमकल्पयन्-रा० 2191165 / भी साफ़ करा ली है,-संस्कारः 1. जिसने शोधना केतुमालः,-लम् जम्बू द्वीप का पश्चिमी भाग / त्मक सब प्रक्रियाएं पूरी कर ली हैं 2. सज्जित, केदारः [ केन जलेन दारोऽस्य ब० स०] संगीत शास्त्र में तैयार। एक राग का नाम / कृतवत् (वि०)| कृत+मतुप् ] जिसने कार्य करा लिया | केदारकः [ केदार-+स्वार्थे कन चावलों का खेत / है---कृतवानसि विप्रियं न मे - कु० 4 / 7 / / केन्द्रम् (नपुं०) जन्म कुण्डली में पहला, चौथा, सातवां कृतिः (स्त्री०) [कृ+क्तिन ] 1. वर्गद्योतक संख्या, एवं दसवाँ स्थान / 2. क्रिया 3. चाक, 4. जादूगरनी। सम० - साध्यत्वम् केरलजातकम्, ) ग्रन्थों के नाम / प्रयत्न करके संपन्न होने की स्थिति / | केरलतन्त्रम् कृत्यम् [ कृ+क्यप्] 1. जो किया जाना चाहिए, कर्तव्य केरल माहात्म्यम् / 2. कार्य 3. प्रयोजन / सम. -अकृत्यम् कर्तव्य अक- केरलसिद्धान्तः / र्तव्य में (विवेक करना),--विधिः (पुं०) नियम, | केलिः (पुं० स्त्री०) [केल +इन् ] हँसीमजाक, दिल्लगी, उपदेश,-शेष (वि०) जिसने अपना कार्य पूरा नहीं रंगरेली। सम० कलहः हंसी मजाक में मगड़ा, किया है। -पल्बलम् आमोद सरोवर,-बनम् प्रमोदवन / For Private and Personal Use Only