________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1259 ) कौशीतकी (स्त्री०) अगस्त्य मुनि की पत्नी ! क्लान्तमनम् (वि.) [ब० स०] निदाल, स्फूर्तिहीन / कौषीतकम् / (नपु०) एक ब्राह्मणग्रन्थ का नाम / | क्लेषित (वि०) [ क्लिद्+णिच् + क्त ] मलिम, दूषित / कौषीतकि | क्लिश्नस् (वि.) [ क्लिश्+ना+शतृ ] हटाता हुआ, कौस्तुभः [ कुस्तुभ+अण् ] घोड़े की गर्दन पर बालों का | दूर करता हुआ-मुद्रा० 3 / 20 / गुच्छा, अयाल। क्लिष्ट (वि०)[ क्लिश+क्त ] दुःखदायी, कष्टकर। ककरटः (पूं०) लवा, चंडूल (पक्षी)। क्लिष्टा (स्त्री०) पातञ्जल योगशास्त्र में बताई हुई चित्तकत्वर्थः [त० स०] यज्ञ के प्रयोजन को पूरा करने के लिए वृति का एक भेद / / साधनभूत सामग्री-मै० सं० 4 / 112 पर शा० भा०। | वाणः [ क्वण्-घिञ ] ध्वनि, स्वन / ऋतु फलम् [50 त०] यज्ञ का फल ! क्वथित (वि.) [ क्वथ् +क्त ] 1 उबाला हुआ 2. गर्म, कद् (म्वा० आ०) 1. घबरा जाना 2. दुःखी होना। ___ - तम् (नपुं०) मादक शराब / क्रप् (चुरा० पर०- क्रापयति) स्पष्ट रूप से बोलना। क्षणः, णम् [क्षण+अच् ] निर्णय, सङ्कल्प- गन्तुं भूमि क्रमः [ क्रम्+घञ्] 1. पग, कदम 2. पैर 3. गति, कृतक्षणाः-महा० 1164 / 51 / सम०-अर्धम् आधा चाल / सम० -भाविन् (वि०) उत्तरोत्तर, कमिक, मिनट,-भवादः बौद्धों का एक सिद्धान्त जिसके ---माला,-रेखा,--शिखा वेद पाठ करने की नाना अनुसार प्रत्येक वस्तु लगातार क्षीण होती रहती है, प्रणालियाँ,-- योगेन (अ.) नियमित ढंग से। .... वीर्यम् शुभ समय / क्रियमाणकम् [क+कर्मणि यक्+शानच्, स्वार्थे कन् ] | क्षणेपाकः | अलक समास ] एक मिनट में पकी हुई वस्तु / साहित्यिक निबन्ध- बृ० सं० 115 / क्षतास्रवम् [ 10 त० ] रुधिर, शोणित / क्रिया [ कृ+श, रिङ आदेशः, इयड ] संरचना, कर्म। क्षतिः (स्त्री) [ क्षग्+क्तिन् ] मृत्यु, निधन / सम..- अर्थ (वि.) 1. दैदिक निषेध जिसके द्वारा क्षत (पुं०) [क्षद्+तृच ] रक्षक। किसी कर्तव्य में लगने का निर्देश किया जाता है | क्षत्रविद्या, (-वेदः) युद्धकला, युद्धशास्त्र / 2. किसी कार्य के लिए उपयोगी--अपि क्रियार्थ | क्षमापनम [क्षमा-ना० धा०, णिच् + ल्युट ] क्षमा मुलभं समित्कुशम् - कु०५।३३, -श्रारम्भः पकाना. मांगना / मम-स्तोत्रम् क्षमा मांगते समय स्तुति--तन्त्रम् चार तन्त्रों में से एक / गान। क्रयावक्रीयन् (वि०) [क्रयविक्रय+इनि ] जो कम मूल्य | क्षम्य (वि.) [क्षमा+य] पृथ्वी में होने वाला, भीमिक, पर वस्तु खरीद कर अधिक मूल्य पर बेच देता है, पार्थिव (वेद०)। सौदा करने वाला। क्षारक्षत (वि०) [ त० स० ] यवक्षार से दुष्प्रभावित / क्रीडनकतया (अ.) [क्री+ल्युट, स्वार्थ कन्, तस्य भावः, क्षाराष्टकम् (नपु०) आयुर्वेदिक आठ द्रव्यों का संग्रह / तल ] किसी बात को खेल की वस्तु की भांति ग्रहण इसी प्रकार (क्षारषट्क, तथा क्षारपञ्चक) / करना - भाग० 5 / 26 / 32 / / क्षा (स्त्री०) 1. पृथ्वी, धरती 2. निद्रा, नींद / कोडा [क्रीड्+अ+टाप् ] 1. सगीत में एक प्रकार की क्षाणम् (नपुं०) जलना. जला हुआ स्थान / माप 2. खेल का मैदान / सम-परिच्छदः | मामेष्टिन्यायः (40) मीमांसा का एक नियम जिसके खिलौना। अनुसार निमित्त को दर्शाने वाले हेतुमत्कारण की रचना कीडितम् [ क्रीड्+क्त ] खेल / इस प्रकार की जाय जिससे कि इसमें नित्य या अनिकोषः [ऋष+घ ] 1. रहस्यपूर्ण अक्षर 'हुम्' : वायं परिस्थिति को दूर रक्खा जा सके--मी० सू० 'हम' 2. संवत्सरचक्र में 59 वा वर्ष ('क्रोधन' भी)। 6 / 4 / 17-21 पर बा० भा०। कोशः [क्रु+थ ] 48 मिनट का समय / क्षयतिथिः, (-अहः) सूर्योदय से न आरम्भ होने वाला कर (वि०) [कृत+रक, धातोः क्रू:] 1. कठोर, कड़ा | चान्द्र दिवस / 2. निर्दय 3. कर्कशध्वनि-ऋरक्वणकऋणानि-म०वी० | क्षयमासः [ष० त०] ('मलमास: भी) वह मास जिसमें 1 // 35 - रम् (नपुं०) उग्रता के साथ / सम० | दो संक्रान्तियां आ पड़ें, और जो किसी मंगल या -चरित (वि.) दारुण, भयानक / धार्मिक काल के लिए शुभ न माना जाता हो। कोरकान्ता (स्त्री०) पृथ्वी, धरती। क्षयोपशमः (पुं०) [ त० स० ] सक्रिय रहने या होने की कोडीक [ कोड+वि+कृ . तना० उभ० ] गले लगाना, इच्छा को सर्वथा नष्ट करने की जैनियों की संकल्पना / आलिङ्गन करना। | क्षितिः [क्षि+क्तिन् ] समृद्धि-क्षिते रोहः प्रवहः शश्वकौर (वि०) [क्रोड+अण] 1. सूबर से संबंध रखने देव-महा० 13176 / 10 / सम-समा परती की बाका 2. बराह अवतार से सम्बन्ध रखने वाला। भांति सहमशील-क्षितिक्षमा पूष्करसन्निभाक्षी-रा. For Private and Personal Use Only