________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "उत्तरम् करका बाण ५,-स्पर्शः धरती छना (जैसे कि सद्यःप्रसूत / क्षीरस्थति (ना० धा. पर०) दूध की इच्छा करना बच्चे ने जन्म लेकर धरती छई),-स्पश पृथ्वी या --क्षीरस्यति माणवकः .. पा० 7151 पर म०भा०। धरती का वासी, भूमि पर रहने वाला। क्षु (क्रघा उभ.) कूदना, उछलना (स्वा० पर० भी) क्षीणता [क्षि+क्त+ तल स्त्रियां टाप् ] क्षय, कृशता तथा / -क्षणाति च क्षणीते च क्षणोत्याप्लवनेऽपि च / छन्दते बलहीनता की दशा। क्षुन्दते चापि षडाप्लवनवाचिनः इति भट्टमल्लः / क्षिप् (तु० उभ०) 1. शीघ्रता से चलना 2. मर जाना | क्षुद्र (वि.) [क्षुद्+रक्] 1. छोटा 2. सामान्य 3. तुच्छ ___3. (गणित) जोड़ना। 4. क्रूर 5. गरीब। सम० तातः पिता का भ्राता, क्षिप्त (वि.) [ क्षिप+ क्त ] 1. फेंका गया, बखेरा गया चाचा,- पदम् लम्बाई नापने का एक गज, - शार्दूल: 2. परित्यक्त 3. उपेक्षित / सम०-उत्तरम् ऐसा चौता। भाषण जो उत्तर के योग्य न हो, योनिः नीच जाति | क्षुद्रकः [ क्षुद्र-+-कन् ] 1. जो तिरस्कार करता है 2. एक में उत्पन्न / प्रकार का बाण / क्षिप्तिः | क्षिप्- क्तिन् ] रहस्य का भंडाफोड़ (नाटक में)। क्षोदः क्षुिद +घा ] 1. वृंद 2. लौंदा, टुकड़ा 3. गौणा। क्षिप्रनिश्चय (वि.) [ब० स०] जो शीघ्र ही निश्चय क्षुधाशान्तिः / भूख शान्त करना। कर लेता है -- आयत्यां गुणदोषज्ञस्तदात्त्वे क्षिप्रनिश्चयः | क्षुदशान्तिः / ---मनु० 7.179 / | चन्द (म्वा० आ०) कुदना (दे० 'क्षु' भी)। क्षिप्रसन्धिः (पु०) एक प्रकार की संधि जो दो सहवर्ती क्षुरनक्षत्रम् (नपुं०) जो क्षौरकर्म, या हजामत बनवाने के स्वरों में से पहले को अर्धस्वर में बदल कर हो| लिए शुभनक्षत्र हो। सकती है। क्षेत्रलिप्ता (स्त्री०)[ष० त०] क्रान्तिवत्त की कला। क्षेपणिकः क्षेपण --ठा ] मल्लाह, नाविक / क्षेत्रांशः [प० त०] कान्तिवृत्त का अंश या घात / क्षीरः,(-रम) [ घस्+ईग्न, उपधालोपः घस्य ककारः | | क्षेमेन्द्रः (पुं०.) बृहत्कथामंजरी का प्रणेता एक कश्मीरी पत्वं च] 1. दूध 2. रस 3. पानी। सम०-- उत्तरा ___ कवि। जमाया हुआ दूध,-- थम् ताजा मक्खन,-कुण्डलम् | क्षौद्रक्यम् [क्षुद्रक+ध्या ] सूक्ष्मता / दुग्धपात्र---कथा० ६३।१८८,-प्रतम् प्रतिज्ञा के फल- | क्षौरपव्यम् (नपुं०) मजबूती से बनाया गया भवन / स्वरूप केवल दूध पीकर निर्वाह करना। / क्षमावलयः [ष० त०] क्षितिज / खसूचिः (पु०, स्त्री०) 1. तिरस्कारसूचक अभिख्या | खण्डितनत (वि०) [ब० स०] जिसने अपनी प्रतिज्ञा "(समासान्त में) जैसा कि 'वैयाकरणखसूचिः' (बुरा तोड़ दी है। वैयाकरण--जो अपने ज्ञान को भूल गया)। खण्डिन् (वि.) [खण्ड+इनि ] एक प्रकार की दाल, खजिका (स्त्री०) भूख लगाने वाली औषधि / पीले मुंग। खट्टकः (पु.) [खट्ट+अच्, स्वार्थे कन् ] खाट, आसन। खमीरः (पु०) दे० खण्डिन्' / / खड्गः [खड्-गन् ] तलवार / सम-धारा तलवार खतमालः (पु०) 1. धूआं 2. बादल / का फला,---धारावतम् अत्यन्त कठिन कार्य,-विद्या खनिका [खन्+इन्, स्वार्थे कन्, स्त्रियां टाप] पोखर, ताल / तलवार चलाने की कला। खरः [ख+रा+क] 1. गधा, खच्चर 2. उदग्र, कठोर खण्ड (वि.) [खण्ड+घा ] 1. टूटा हुआ, फटा हुआ 3. तीक्ष्ण, तेज़ 4. सघन 5. क्रूर 6. 60 वर्ष के चक्र 2. दूषित - गडः,--ण्डम् महाद्वीप, महादेश। सम० में पच्चीसवां वर्ष। सम-कण्डयनम, बुराई को ---इन्दुः दूज का चाँद-खण्डेन्दुकृतशेखरम् (शिवम्) और अधिक करना,-गेहम् तम्ब,-वर्मा (वि.) -- वेदपा०,-तालः संगीत शास्त्र में माप / मगरमच्छ,.. वृषभ (वि.) गधा, जडबुद्धि,-सारम् खण्डनखण्डखाद्यम् (नपुं०) हर्षकृत एक वेदान्त शास्त्र लोहा,-स्पर्श (वि०) गर्म, प्रचण्ड (आँधी, मक्कड़) का ग्रन्थ / -वाय तिखरस्पर्शः - भाग० 214116 / लपिकोपाध्यायः (पुं०) क्षुब्ध अध्यापक, उत्तेजित अध्यापक | खरक (वि०) जिसकी सतह खुरदरी हो ऐसा (मोती) ---खण्डिकोपाध्यायः शिष्याय चपेटिकां ददाति --पा० -को० अ० 2011 / / 1111 पर म० भा०। खरोष्ठी (स्त्री.) एक प्रकार की वर्णमाला। For Private and Personal Use Only