________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1267 ) चाक्षुष्यम् | चाक्षुष्+यत् ] एक प्रकार का आँखों का | 3 / 263 / 10 2. ज्ञानेन्द्रिय यं चेकितानमचिसय अंजन। उन्चकन्ति-भाग० 61648. 3. संध्यान, मनन चातुरः [ चतुर् एव, स्वार्थे अण् ] एक छोटा गावदुम | .. . चित्तिः स्त्रक चित्तमाज्यम-त. आ० 3 / 1 / तकिया। चित्य (वि.) [ चिता+यत] चिता से संबंध रखने चातुरन्त (वि०) [चतुरन्त+अण् ] चारों समुद्रों / वाला-चित्तमाल्याङ्गरागश्च आयसाभरणोऽभवत्समस्त पृथ्वी को अधिकार में करने वाला। रा०६५८।११। चातुरीक: [चातुरी+कप्] 1. हंस 2. एक प्रकार की बत्तख चित्रम् [ चित्र +अच, चि+ष्ट्रन् वा ] कमल का फूल -कलहंसे च कारण्डे चातुरीकः पुमानयम्--नाना। --मङ्गले तिलके हेम्नि पये नपुंसकम् -- नाना० / / चारः [चर एव, अण् ] 1. गति, चाल, भ्रमण 2. पैदल चिन्तामणिः (पु.) एक प्रकार का घोड़ा जिसकी गर्दन पर सैर करना 3. कारागार 4. हथकड़ी बेड़ी 5. पीपली बालों का बड़ा धूंधर हो। का वृक्ष, प्रियाल का पेड़।। चीचीकूची (स्त्री०) अनुकरणमूलक शम्न जो पक्षियों के चार्या (स्त्री०) 1. पथ, मार्ग, आठ हाथ चौड़ी सड़क कलरव को प्रकट करता है। --को० अ० 113 / चीनदारः (0) दारचीनी। चार्वाक: [ चारः लोकसंमतं वाकोवाक्यं यस्य --पृषो.] | चीरल्लि: (पु.) एक प्रकार की बड़ी मछली। दर्शनशास्त्र की चार्वाक शाखा का अनुयायी। चीरी (स्त्री) [चीरि+डीष / झींगुर, ('चीरीवाक: चिकित्सा [ कित्+ सन् + अ, स्त्रियां टाप् ] दण्ड-प्रम- भी) इसी अर्थ में रयुक्त होता है। त्तस्य ते करोमि चिकित्सा दण्डपाणिरिव जनतायाः चोदना [चद-यच-टाप / (पूर्वमीमांसा में) 'अपूर्व -भाग०५।१७। नामक श्रेणी-चोदनेत्यपूर्व ब्रूमः मी० मू० 7.17 चिकित्सु (वि.) [ कित्+सन् +उ ] बुद्धिमान् चालाक पर शा० भा०। ---अथ० 10 / 11 / चुमचुमायनम् (नपुं०) किसी घाव में खुजलाहट होना चिञ्चामलम् [10 त०] इमलो से तैयार किया गया जूष सुश्रुत० 1142111 / या झोल। चुमरिः (पुं०) एक राक्षस का नाम / चित्तम् [ चित्+क्त ] 1. हृदय, मन 2. ज्ञान-चित्तं चेरिका जुलाहों की एक उपनगरी-तदेव चेरिका प्रोक्ता चित्तादुपागम्य मुनिरासीत संयतः / यच्चित्तं तन्मयो / - नागरी तन्तुवायभूः--कामिकागम 2011566, मान० वश्यं गुह्यमेतत्सनातनम्- महा० 14151127 1 सम० / 1085-881 - अर्पित (वि०) दिल में प्ररक्षित चित्तापितनैषधे- | स्याग्निः [ष० त०] पुनात अग्नि, यज्ञीय अग्नि-पञ्च: श्वरा-नैषध० 9 / 31,-- नापः हृदय का स्वामी | -चित्तनाथमभिशकितवत्या --शि. 10128 / चौर्णय (वि.) [चूर्णा+ढक केरल प्रदेश के पास चित्तिः (स्त्री.) [ चित्+क्तिन् ] 1. मानसिक अवस्था 'चूर्णा' नामक नदी से प्राप्त मोती - को० अ० 2 / 11 / --आकृतीनां च चित्तीनां प्रवर्तक नतास्मि ते–महा. व्यवनः (पं.)च्य+णि ल्युट एक ऋषि का नाम / छत्रीक (छत्र+चि+तना० उभ०) छत्री की भांति / छाया [छो+य+टाप् ] प्राकृत मूल पाठ का. संस्कृत प्रयुक्त करना। भाषान्तर। सन्मस् (नपुं०) [छन्दयति-छन्द्+असुन्] एक पर्व, त्योहार | शिम् [छिद्+रक्] 1. प्रभाग --भूमिछिद्रविधानम् --वेदे वाक्ये वृत्तभेदे उत्सवेऽपि नपुंसकम् -नाना। --को० अ० 2 / 2 2. स्थान-भाग० 612634 छम्बरम (40) विकल कराने के लिए, जिससे कि 3. आकाश, अन्तरिक्ष-भाग० 1214130 / सफलता न मिले-कया. 1 / 4 / छेदनम् [छिद्+ल्पट् ] आयुर्वेद में एक प्रकार की शल्यइम्बदकर (वि.) [सम्बट्+1+अच] नष्ट भ्रष्ट करन प्रक्रिया। बाला,-करी (स्त्री०)-एषा धोरतमा सन्च्या कोक-इन्ह(९०) एक प्रकार का जन्तु-१० म०८६३३७ / छम्ब (म्फ) गरी प्रभो-भाग 3 / 18 / 26 / रितम् [छर+क्त] काट, खरोंच / बदकार[छम्बट्+1+पम् ] नाश, ध्वंस, बिनाया। एरिका (स्त्री०) बांश गाय / [ + ] एक प्रकार का झगड़ा जिसमें असं- का (का) भवन के आधारगर्त में बना बजकोष्ठ मततकाका प्रयोग किया जाय। तहखाना-कामिकामम० 3174 / For Private and Personal Use Only