Book Title: Sanskrit Hindi Kosh
Author(s): Vaman Shivram Apte
Publisher: Nag Prakashak

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Page 1253
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1244 ) (पुं०) आसन -- एवमुक्त्वार्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपा-। प्रतिपत्र --उपाधिन मया कार्यों बनवासे जुगुप्सितः विशत्-भग० 1247 2. सतह-तं शयानं धरोपस्थे - रा०२।११।२९।। --- भाग० 7 / 13 / 12 / उपाध्वर्यः [प्रा० स०] अध्वर्य का सहायक / उपस्थानम् [ उप+स्था+ल्युट् ] न्यायालय का कक्ष उपारमः[ उप-+आ+रम्+अच ] समाप्ति, अन्त / --उपस्थानगतः कार्यार्थिनामद्वारासङ्गं कारयेत्-को० उपारद् (उदा० पर०) किसी बात के लिए रोना / अ० 1114 / उपार्जित (वि.) [ उप+अर्ज + क्त ] 1. उपलब्ध किया उपस्थापना [ उप+स्था+णिच् --युच्-+ टाप् ] जनसाधु हुआ अवाप्त। __ की दीक्षा से संबद्ध संस्कार। उपालभ् (भ्वा० आ०) (बलि पशु के रूप में) मारने के उपस्थितवक्त (पं)उपस्थित-वच+तच आशवक्ता लिए पकड़ना। उपस्नुत (वि.) [ उप+स्नु+क्त ] बहती हुई, प्रवण- / उपावृत (वि.) [उप+आ+ +क्त] ढका हुआ, गुप्त / शोल–स्वयं प्रदुग्धेऽस्य गुणरुपस्नुता कि० 1318 / : उपाश्लिष्ट (वि०) [ उप+आ+श्लिष्+क्त ] जिसके उपस्पर्शनम् [ उप+स्पृश् + ल्युट ] उपहार। / आलिङ्गन किया है, या जिसने पकड़ लिया है। उपहासकम् [उपहस्+घञ +कन् ] दिल्लगी, हास्यपूर्ण उपासीन (वि.) [उप+आस-+शानच, ईत्व ] 1. निकटउक्ति / स्थ, आसपास विद्यमान, उपासना करने वाला। उपहर्त (वि०) [ उप+ह+ तृच् ] उपहार प्रदान करने उपस्थित (वि०) [ उप+स्था+क्त ] 1. सवार, खड़ा वाला, आतिधेयी। हुआ, 2. घटित, प्रस्तुत, आटपका जैसे कि 'व्यसनं उपहा (जहो० आ०) उतरना, नीचे आना--- उपाजिहीथा समुपस्थितं' में। न महीतलं यदि---शि० 1137 / उपायः [ उप+अय्+घञ ] दीक्षा, यज्ञोपवीत संस्कार उपहार्यम् ) [ उप+ह-+ ण्यत्, ण्वुल, स्त्रियां टाप् च ] -उपायेन प्रवतरन् --- उपनयनेन सह प्रवतरन्-० उपहारकः उपहार, भेंट। सं० पर शा० भा०। सम-विकल्पः वैकल्पिक उपहारिका) तरकीब। उपहितिः (स्त्री०) [ उपधा -+-क्तिन् ] निष्ठा, भक्ति / उपेयिवस् (वि.) [उप-इण्+क्वसु-पा० 3 / 2 / 109] उपहत (वि.) [उप+हे+क्त ] आमन्त्रित, बलाया। निकट जाने वाला शि०२।११४ / "गया, आवाहन किया गया। उपेक्षणीय (वि.) [उप+ ईक्ष+-अनीयर] उपेक्षा करने उपांशु (अ०) [ उपगता अंशवो यक-ब०म०] 1. मन्द के योग्य, नजर अन्दाज़ करने के लायक, परवाह न आवाज में, कान में कहना। सम० जपः मन ही करने योग्य / मन में मन्त्रों का जप करना, ग्रहः यज्ञ में निचोड़। उपड़कीय [ना० धा० पर०-उप+एडक+क्यच-] कर निकाले हए सोमरस का परेपण, इण्ड: निजी ऐसा व्यवहार करना जैसा कि भेड के साथ किया रूप से दिया गया दण्ड,-वधः गप्त हत्या। : जाता है-पा० 6.1294 पर काशिका / उपाकृत (वि०) [उप+आ+ +क्त ] 1. अभिमन्त्रित : उपेन्द्र---अपत्यम् [प० त०] कामदेव / 2. उपयोग में लाया गया- यज्ञेप्रपाकृतं वित्त महा० उपास (वि.) उप-+आ+दा+क्त ] अवाप्त, अजित 12 / 268 / 22 / 2 --उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी-रघु० 5 / 1 / उपाक्रम् (म्वा० पर०) टूट पड़ना, हमला बोलना। उभय (वि.) [उभ+अयट ] दोनों। सम० -अन्वयिन् उपाघ्रा (म्वा० पर०) 1. संघना 2. चूमना (जैसा कि / (वि.) जो दोनों अवस्थाओं में लागू हो सके, 'मून्युपाघ्राय में)। -अलङ्कारः एक अलंकार जिसमें अर्थ और ध्वनि उपाङ्गः [प्रा० स०] जैमियों के धार्मिक ग्रंथों का समूह / / दोनों घट सके, .... च्छन्ना दोनों प्रकार की प्रहेलिकाओं उपात्तविद्यः [ब० स०] जिसने अपनी शिक्षा समाप्त / को दर्शाने वाला अलंकार,-पदिन (वि०) जिसमें कर ली है-उपात्तविद्यो गुरुदक्षिणार्थी रघु० 5 / 1 / / परस्म-आत्मने दोनों पद विद्यमान हों, विपुला एक उपादानम् [ उप-+आ+दा+ल्यट] सांख्य शास्त्र में छन्द का नाम,--विभ्रष्ट (वि०) जो न यहाँ का वर्णित चार अन्तर्वस्तुओं में से एक - प्रकृत्युपादान- रहे न वहाँ का, दोनों जगह से असफल,---कच्चिनोकालभागाख्याः-सा का० 50 / भयविभ्रष्टश्च्छिन्नाभ्रमिव नश्यति-भग० 6 / 38, उपाधा (ज हो० उभ०) (किसी स्त्री को सतीत्वसमर्पण ----स्नातक (वि.) जिसने अपना अध्ययन और के लिए) फुसलाना, चरित्रभ्रष्ट करना। ब्रह्मचर्यव्रत दोनों ही समाप्त कर लिये हैं.....मनु० उपाधिः [उप+आ+धा+कि] 1. किसी क्रिया का 4131 पर कुल्लूक। गौण उत्पादन, आनुषंगिक प्रयोजन 2. स्थानापत्ति, / उभयतः (अ) [ उभय+तसिल ] दोनों ओर से / सम० For Private and Personal Use Only

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