________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1245 ) ----- पाश (वि.) जिसके दोनों ओर जाल बिछा हो, | उल्वण (वि०) [ उन्--ब (व) ण् --अच, पृषो० साधुः] ----पुच्छ ( वि.) जिसके दोनों ओर पूंछ हो प्रज्ञ 1. भयानक 2. पापमय / सम० --रसः शौर्य / (वि०) जो बाहर और भीतर दोनों ओर देख सके। उल्लकः [ उद्ल क+अच् ] एक प्रकार की शराब। उमामहेश्वरव्रतम् (नपुं०) शिव को प्रसन्न करने के लिए उल्लस् (भ्वा० पर० प्रेर०) हिलाना, लहराना-जिह्वाविशेष प्रकार का एक धार्मिक ब्रत / शतान्युल्लासन्त्यजस्रम् -कि० 16 / 37 / उरगशयनः [ब० स० ] शेषनाग पर सोने वाला विष्णु। उल्लसत् (वि.) [ उद्+लस्+शतृ ] चमकता हुआ। उरस् (नपुं०) [ ऋ+असुन, उत्वं रपरश्च ] छाती।। उल्लाघ (वि०) [ उद्+ला+हन्-नक ] चतुर, प्रसन्न, सम० -कपाट: चौड़ी सबल छाती, --क्षयः तपैदिक, --. घः (पुं०) काली मिर्च / छाती का रोग, -स्तम्भः दमा। उवटः (पुं०) ऋग्वेद प्रातिशाख्य तथा यजुर्वेद का भाष्यकर्ता / उरुपराक्रम (वि.) [ब० स० बड़ा शक्तिशाली। उशत (नि.) [ वश्+शत ] 1. सुन्दर 2. प्रिय, प्यारा उरुषा (अ०) [ उरु+धा ] नाना प्रकार से--- पश्यतं 3. पवित्र, निष्पाप 4. अश्लील - वर्जयेदुशतीं वाचम् माययोरुघा - भाग०१११३१४७ / . महा० 12 / 235 / 10 / उर्वशीशापः [ष० त०] उर्वशी का अर्जुन को शाप, उशिजः (पुं०) कक्षीवान के पिता का नाम / जिसके फल-स्वरूप वह हिजड़ा बन गया और यह | उष्णगः [ब० स० ] सूर्य / / स्थिति अज्ञातवास में बहुत उपयुक्त रही। (यह उष्णोष्ण (वि०) [ उष्ण + उष्ण ] अत्यन्त गर्म-उणोष्ण उक्ति उस अवस्था में प्रयक्त होती है जब प्रतीयमान शीकरसृजः-शि० 5 / 45 / हानिकर घटना लाभदायक सिद्ध हो जाती है)। उषस् (स्त्री०) [ उष् +असि ] प्रभात, भोर / सम० उलड् (चुरा० पर० --- उलण्डयति) बाहर फेंक देना, करः चाँद, —कलः मुर्गा,--- पतिः अनिरुद्ध, ___ प्रक्षेपण (धातुपाठ)। ..-- पूषा पौषमास में प्रातः काल की जाने वाली उषा उलिः, उल्ली (स्त्री०) सफ़ेद प्याज़ / की विशेष पूजा। उलूकः [ वल+ऊ, संप्रसारण ] एक ऋषि जिसे वैशेषिक | उष्ट्रनिषदनन् (नपुं०) योग का एक आसन / का कर्ता कणाद समझा जाता है। उष्ट्रप्रमाणः (पुं०) आठ पैर का 'शलभ' नामक एक जन्तु / उलूकजित् (पुं०) कौवा। उष्ट्राक्षः [व० स० ] ऊंट जैसी आँखों वाला (घोड़ा), उलूलि। (वि०) 1. ज़ोर से क्रन्दन करने वाला, कोला- -- शालि०। उलल / हलमय विवाहादि शुभ अवसरों पर मधुर सम- उष्णीषः [ उष्णमीषते हिनस्ति ईष्+क] 1. पगड़ी "वेत गान, विशेषतः स्त्रियों का,-०१४।५१, अनर्घ० / 2. किसी भवन की चोटी। 3155 / | उहारः (पुं०) कछुवा। ऊखराः (ब० व०) शैव सम्प्रदाय / ऊर्जमेघ (वि० ) [ व० स० ] असाधारण बुद्धि से युक्त / ऊखरजम् (नपुं०) 1. लवणयुक्त भूमि से तैयार किया गया ऊर्ध्व (वि.) [ उद्+हा+ड, पृषो० र् आदेश:] ___ नमक 2. यवक्षार, कलमीशोरा। सीधा, उन्नत, उच्च, --ध्वम् (नपुं०) ऊँचाई, ऊतिः ( स्त्री०) [अव्+क्तिन् ] ऊतक, ताँत / ऊपर। सम० -गमः (पुं०) अग्नि; -तिलक: ऊन् (चुरा० पर०) घटना, घटाना। मस्तक पर जातिसूचक खड़ा तिलक-सूर्यस्पधिकिरीअनातिरिक्त (वि.) अत्यधिक या अतिन्यून / टमवंतिलकप्रोद्भासि फालान्तरम्-नाराय० 21 / ऊनाम्बिकम् (नपुं०) [ ऊनाब्द+ठक ] वर्ष से पूर्व ही -दृश (पुं०) कर्कट, केकड़ा, --प्रमाणम् शीर्षलम्ब, मनाया जाने वाला श्राद्ध। उन्नतांश, वालम् चमरी हरिण की पंछ,-शोधनः ऊनमासिक (वि.) [ ऊनमास-+ठक ] नियमित मासिक रीठे का वृक्ष / संक्रियाओं के अतिरिक्त जो प्रतिमास श्राद्ध किये जाँय | ऊर्मिका [ ऋमि अर्तेरुच्च, स्वार्थे कन् टाप् च ] चिन्ता। तथा जो दिनों की संख्या गिनकर एक वर्ष के भीतर ऊवध्यम् (नपुं०) अधपचा भोजन / ही भीतर मनाये जाय। ऊष्मायणम् ब० स०] ग्रीष्म ऋतु। ' ऊर+अङ्गम् (ऊर्वङ्गम् ) (नपुं०) खुम्भ, खुदरौ, छत्रक।.. अहगानम् (नपुं०) सामवेद के तीन प्रभागों में से एक / ऊर्जमासः (पुं०) कार्तिक महीना। ऊहच्छला (स्त्री०) सागवेदच्छला का तीसरा अध्याय / For Private and Personal Use Only