________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1240 ) उद्वद्ध (वि) [ उद् / वन्ध् |क्त ] 1. बाँधा हुआ | उद्वेगकर (वि०) [ उद्वग+कृ+ अच्, ण्वुल, गिनि 2. बाधित 3. दृढ़, संहत, कसा हुआ। | उद्वेगकारक वा ] चिन्ताजनक, क्षोभ करने वाला, कष्ट उद्ब्रहण (वि.) [ उद् + बृह, + ल्युट् ] बढ़ाने वाला, | उद्वेगकारिन् J कर या दुःखदायी। सशक्त करने वाला, सामर्थ्य देने वाला। उद्विबर्हगम् [ उद्---विबृह.+ल्युट ] बचाना, निकाउद्भङ्गः[ उद् -भज्+घञ ] तोड़ कर पृथक् कर देना, ! लना, उठाना रसां गताया भुव उद्विबहणम् ---भाग० विय क्त कर देना। 3 / 13 / 43 / उद्भ (भ्वा० पर०, प्रेर०) विचार करना, सोचना | उवर्तः [ उद् --- वृत्+घञ ] प्रलयकाल-रा० 6 / 44 / 18 / विक्रम. 9 / 19 / उद्वत्त (वि०) [ उद्+वृत्+क्त ] उलटा हुआ, उद्घाउद्यतायुध (शस्त्र) (वि.) [ब० स०] जिसने शस्त्र हाथ टित, प्रसारित / में ले लिया है। उद्वातः (पुं०) नाचते समय हाथों की मुद्रा। उधन्धा (स्त्री०) जंगल में या सूखी लकड़ी में रहने वाली उद्वेष्टनीय (वि.) [ उद्+ वेष्ट् +अनीय ] खोलने के एक काली चिऊँटी, दखौड़ी।। योग्य, बन्धनमुक्त करने के लायक-आद्ये बद्धा विरह उद्यामित (वि०) [ उद्+यम् + णिच् | क्त ] काम करने दिवसे या शिखादाम हित्वा, शापस्यान्ते विगलितशुचा __ के लिए जिसे प्रेरित किया गया है आत्मनो मधु- तां मयोद्वेष्टनीयम् मेघ० 93 / मदोद्यमितानाम्-कि० 1666 / उद्युदस (उद्+वि+उद्+अस् .. म्वा० पर०) पूर्णतः उद्यापनिका [उद् ।-या |-णिच् ।-पुक+ल्युट-+कन् / ' छोड़ देना, त्याग देना। +टाप् ] यात्रा से वापिस घर आना। उन्नादः [ उद्+नद्-घा 1 कृष्ण के एक पुत्र का नाम / उयोजित (वि)[उद्य ज-+-णिच् - क्त उठाया हुआ,एक ! उन्नत (वि.) [ उद्+नम्+क्त ] ओजस्वी, उल्लासपूर्ण, चित्र (जैसे कि बादल)। समाधाय समद्धार्थाः कर्मसिद्धिभिरुन्नता:-रा० 5 / उद्योतः (पुं०) [ उत्+द्युत्+घा 11. चमक, उद्दीप्ति, 615 / सम० काल: छाया को माप कर समय उज्ज्वलता, 2. इस नाम का भाष्य जो रत्नावली, निर्धारित करने की प्रणाली,-कोकिला एक प्रकार काव्यप्रकाश और महाभाष्यप्रदीप पर उपलब्ध है। का वाद्ययंत्र। उद्योतकरः ( पुं०) महाभाष्यप्रदीप के भाष्यकार का | उन्नतिः [ उद्+नम् + क्तिन् ] दक्ष की पुत्री जिसका नाम / विवाह धर्म के साथ किया गया था। उद्योतनम् [ उद्+द्युत् +-णिच् + ल्युट ] चमकने या प्रका- | उन्नहन (वि०) [ उत्+नह +ल्युट् ] अशृंखल, खुला, शित होने की क्रिया। मुक्त, बन्धन रहित-मत्संश्रयस्य विभवोन्नहनस्य उद्रिक्तिः [ उद्+रिच् + क्तिन् ] आधिक्य-शिवमहिम्न नित्यम् ---भाग० 1111 / 4 / स्तोत्र-३०। उन्नाहः [ उद्-+ नह+घञ्] धृष्टता, हेकड़ी, औद्धत्य, उद्रेचक (वि.) [ उद्+रिच्+ण्वुल ] बढ़ाने वाला, ___अहंकार / वृद्धि करने वाला। उग्निद्र (वि०) [ उद्गता निद्रा यस्मात् ब० स०] उद्वामिन् (वि.) [ उद्+वम् + णिनि ] उलटी करने 1. तेजस्वी, देदीप्यमान (जैसे कि चन्द्रमा)---नीत्वा वाला। निर्भरमन्मथोत्सवररुन्निद्रचन्द्रा क्षपा:-कलि. उद्वहः [ उद्-+-बह+अन् ] कुल या वंश में प्रधान व्यक्ति, 2. (बालों की भांति) सीधा खड़ा होने वाला, फैला पुत्र (जैसा कि 'रघूद्वह' में)। हुआ। उदाहक्षम (उद्वाह+ऋक्षम्) [त० स०] विवाह के लिए उनिद्रकम् / उद्-+-निद्रा-कन, ता वा ] जागरूकता, शुभ नक्षत्र / उद्वाहक्षं च विज्ञाय रुक्मिण्या मधु- उन्निद्रता / जागते रहना। सूदनः---भाग० 10153 / उन्नेय (वि.) [ उद्+नी+ण्यत् 1 सादृश्य के आधार उद्वह्नि (वि.) [ब० स०] चिनगारियां या अग्निकण बर- पर जो अनुमान करने या निर्णय करने के योग्य हो, साने वाला (जैसे कि आँख)-उद्वह्निलोचनम् शि० -शि० भ०१७ 4 // 28 // उम्मणिः (पुं०)[ उत्क्रान्तो मणिम-अत्या० स०] सतह उद्वाश विलाप करते हुए नाम लेना, शोकाधिक्य के कारण पर पड़ा हुआ रत्न--गिरयो बिभ्रदुन्मणीन्--- भाग० रोने में नाम ले लेकर क्रन्दन करना.. उद्वाश्यमानः 1012726 / पितरं सरामम्-भट्टि० 3 / 32 / / उन्मयनम् [ उद्+मथ् + ल्युट् ] बिलो देना,- कूर्मे धृतोउद्विज् (पानी छिड़क कर) मनुष्य को होश में लाना / दिरमतोन्मथने स्वपृष्ठे---भाग० 114:18 / उद्वंगः [ उद्+विज्+घञ ] सुपारी-०७।४६ / / उन्मत्त (वि०) [ उद्+मद्+क्त ] 1. बहुत बड़ा, असा For Private and Personal Use Only